मैंने अपने फैसले में 1949 में डॉ. बीआर अंबेडकर के एक भाषण का जिक्र किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि जब तक हमारे पास सामाजिक लोकतंत्र नहीं होगा, तब तक राजनीतिक लोकतंत्र का कोई फायदा नहीं है।
अनुच्छेद 14 जाति के उप-वर्गीकरण की अनुमति देता है।
संवैधानिक बेंच ने माना कि सामाजिक समानता के सिद्धांत राज्य को अनुसूचित जातियों के बीच सबसे पिछड़े वर्गों को भी मौका देने का अधिकार देते हैं। सुप्रीम कोर्ट पंजाब अधिनियम की धारा 4(5) की संवैधानिक वैधता की समीक्षा कर रहा था, जो इस बात पर निर्भर है कि क्या अनुसूचित जाति या जनजाति के भीतर उप-वर्गीकरण किया जा सकता है या क्या उन्हें उन्हीं समूहों के रूप में माना जाना चाहिए।
यहां यह बताना जरूरी है कि केंद्र सरकार ने कोर्ट में भी यही कहा था कि वह एससी और एसटी के बीच उप-वर्गीकरण के पक्ष में है। यानी सुप्रीम कोर्ट का गुरुवार का फैसला केंद्र सरकार की लाइन पर ही है।