सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पति-पत्नी के बीच की गुप्त रूप से की गई रिकॉर्डिंग कुछ मामलों में वैवाहिक विवादों में वैध सबूत मानी जा सकती है। जानिए फैसले का कानूनी आधार क्या।
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फ़ैसले में कहा है कि वैवाहिक विवादों और ख़ासकर तलाक के मामलों में पति या पत्नी द्वारा गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई टेलीफोन पर बातचीत को सबूत के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। इस फ़ैसले ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के उस निर्णय को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि पत्नी की जानकारी के बिना उसकी टेलीफोनिक बातचीत को रिकॉर्ड करना गोपनीयता के मौलिक अधिकार का साफ़ तौर पर उल्लंघन है और इसे फ़ैमिली कोर्ट में सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने यह फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 के तहत वैवाहिक बातचीत को बिना सहमति के उजागर करने पर रोक है, लेकिन इसमें अपवाद भी है। यह अपवाद वैवाहिक विवादों में लागू होता है, जहाँ पति-पत्नी के बीच क़ानूनी कार्यवाही चल रही हो। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में गोपनीयता का उल्लंघन नहीं हुआ है और धारा 122 गोपनीयता के अधिकार को मान्यता नहीं देती।
यह मामला एक एसएलपी यानी विशेष अनुमति याचिका के रूप में सामने आया। इसमें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के 2021 के फ़ैसले को चुनौती दी गई थी। इस मामले में एक पति ने 2017 में तलाक के लिए याचिका दायर की थी और अपनी पत्नी के साथ हुई टेलीफोनिक बातचीत की एक कॉम्पैक्ट डिस्क यानी सीडी या मेमोरी कार्ड को सबूत के रूप में पेश किया था। पति का दावा था कि ये रिकॉर्डिंग उनकी पत्नी द्वारा की गई मानसिक क्रूरता को साबित करती हैं। बठिंडा फैमिली कोर्ट ने इस सीडी को सबूत के रूप में स्वीकार करने की अनुमति दी थी, बशर्ते इसकी प्रामाणिकता सत्यापित हो।
हालाँकि, पत्नी ने इस निर्णय को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी, जहां कोर्ट ने कहा कि बिना जानकारी के रिकॉर्डिंग गोपनीयता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है और इसे सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि ऐसी रिकॉर्डिंग की परिस्थितियों और संदर्भ का पता लगाना मुश्किल है, क्योंकि यह साफ़ तौर पर गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट का तर्क
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फ़ैसले को खारिज करते हुए कहा कि धारा 122 का अपवाद निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के साथ संतुलित होना चाहिए, जो संविधान के अनुच्छेद 21 का हिस्सा है। कोर्ट ने कहा, 'यदि विवाह उस स्थिति में पहुंच गया है, जहां पति-पत्नी एक-दूसरे की जासूसी कर रहे हैं, तो यह अपने आप में रिश्ते के टूटने का लक्षण है और उनके बीच विश्वास की कमी को दिखाता है।'
जस्टिस नागरत्ना ने अपने फ़ैसले में उन तर्कों को खारिज कर दिया कि ऐसी रिकॉर्डिंग को अनुमति देने से वैवाहिक रिश्तों में घरेलू सामंजस्य बिगड़ेगा और जासूसी को बढ़ावा मिलेगा, जिससे धारा 122 का मक़सद विफल हो जाएगा।
कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा, 'हम नहीं मानते कि यह तर्क टिकाऊ है। यदि विवाह उस स्तर पर पहुँच गया है, जहां जासूसी हो रही है तो यह रिश्ते के टूटने का संकेत है।'
कोर्ट ने यह भी साफ़ किया कि धारा 122 के तहत गोपनीयता का अधिकार पूर्ण नहीं है और इसे वैवाहिक विवादों में निष्पक्ष सुनवाई के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। इसके अलावा, फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984 की धारा 14 और 20 का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि ये प्रावधान वैवाहिक विवादों में सचाई का पता लगाने और निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं।
याचिकाकर्ता (पति) की ओर से पेश वकील अंकित स्वरूप ने तर्क दिया कि गोपनीयता का अधिकार पूर्ण नहीं है और इसे अन्य अधिकारों और मूल्यों के साथ संतुलित करना होगा। उन्होंने कहा कि धारा 122 का अपवाद वैवाहिक संवाद को तलाक़ की कार्यवाही में उजागर करने की अनुमति देता है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि वैवाहिक मामलों में और ख़ासकर मानसिक क्रूरता के आरोपों में घटनाएँ अक्सर निजी होती हैं और उनके पास गवाह या दस्तावेजी सबूत नहीं होते। ऐसी स्थिति में आधुनिक तकनीक और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग करके सबूत पेश करना ज़रूरी हो जाता है।
फ़ैमिली कोर्ट को निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने बठिंडा फ़ैमिली कोर्ट के 2020 के आदेश को बहाल करते हुए कहा कि रिकॉर्ड की गई बातचीत को वैवाहिक कार्यवाही के दौरान ध्यान में लिया जा सकता है, बशर्ते इसकी प्रामाणिकता सत्यापित हो। कोर्ट ने फैमिली कोर्ट को निर्देश दिया कि वह इस मामले को आगे बढ़ाए और रिकॉर्डिंग को न्यायिक रूप से ध्यान में ले।