सुप्रीम कोर्ट में इन याचिकाओं की सुनवाई करने का राजी होना और यह सवाल उठाना अपने आप में महत्वपूर्ण है। इससे यह संकेत मिल रहा है कि निकट भविष्य में सरकार संविधान को बदल सकती है। जैसा कि कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि ऐसा नहीं है कि संविधान की प्रस्तावना में संशोधन नहीं किया जा सकता। अगर संविधान की प्रस्तावना से निकट भविष्य में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द हटते हैं तो यह संविधान की मूल भावना से हटना माना जाएगा। अगर ये दोनों शब्द हटे तो संविधान में अन्य बदलाव का रास्ता भी साफ हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में जब अप्रैल में सुनवाई होगी तो उस समय देश में लोकसभा चुनाव चल रहे होंगे और नई सरकार सत्ता में आने वाली होगी। नई सरकार के सामने संविधान में बदलाव का मुद्दा दरपेश होगा।
"समाजवादी" और "धर्मनिरपेक्ष" शब्द 1976 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा पारित 42वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़े गए थे। पहली पंक्ति में अब "संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य" का उल्लेख है।