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बिलकिस केस के दोषियों की रिहाई में तरजीह मिली या नहीं इसे जांचेगा सुप्रीम कोर्ट 

सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार 14 सितंबर को बिलकिस बानो केस की सुनवाई हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, वह इस बात की जांच करेगा कि है क्या बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले के दोषियों को समय से पहले जेल से रिहा करने के मामले में कोई तरजीह दी गई थी।  
सुप्रीम कोर्ट में अब इस केस की अगली सुनवाई 20 सितंबर को होगी। सुप्रीम कोर्ट 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार करने और उसके परिवार के कई सदस्यों की हत्या करने वाले 11 दोषियों को मिली सजा में छूट देने के गुजरात सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई कर रहा था। 
उम्र कैद की सजा पाए इन दोषियों को गुजरात सरकार ने राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले रिहा कर दिया था। इसके बाद  सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई थी। इन याचिकाओं में इन दोषियों को सजा में दी गई इस छूट को चुनौती दी गई थी।  
लॉ से जुड़ी खबरे देने वाली वेबसाइट बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक गुरुवार को हुई इस सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट इस तर्क से सहमत था कि किसी अपराध की प्रकृति और किसी मामले में सबूत दोषियों की शीघ्र रिहाई के लिए छूट या आवेदन पर विचार करने के कारक नहीं हैं। 
हालांकि, जस्टिस बीवी नागरत्ना और उज्जल भुइयां की पीठ ने यह भी सवाल किया कि क्या इस मामले में दोषियों को कोई तरजीह दी गई थी। 
जस्टिस नागरत्ना ने पूछा कि क्या कुछ दोषियों के साथ अलग व्यवहार किया जा रहा है। उन्होंने कहा  सवाल यह है कि क्या कुछ दोषियों को दूसरों की तुलना में अधिक विशेषाधिकार प्राप्त हैं?

अपराध के लिए सजा पहले ही दी चुकी है

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक बिलकिस बानो केस में दोषियों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने अपनी दलीलें देते हुए कहा कि  दोषियों को सिर्फ इस आधार पर माफी के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता कि अपराध जघन्य था। 
उनकी इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने जवाब देते हुए कहा कि सवाल यह है कि क्या इस मामले में दोषियों को कानूनी तौर पर छूट का लाभ दिया गया था। 
लूथरा ने जवाब दिया, हम समीक्षा में नहीं बैठे हैं। मेरे विद्वान मित्रों ने अपराध की प्रकृति और सबूतों पर बहस की। यह वह पहलू नहीं है जिस पर अब ध्यान दिया जाए।  इस मामले में केवल दोषियों की रिहाई पर बात होनी चाहिए, मामले की क्रूरता पर नहीं। उन्होंने कहा कि इस केस में दोषियों को अपराध के लिए सजा पहले ही दी चुकी है।
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कानून ने अपना काम किया है 

सिद्धार्थ लूथरा ने तर्क दिया कि कानून ने अपना काम किया है। अब सवाल यह है कि सज़ा कब ख़त्म होगी? क्या इन लोगों को आज़ादी से वंचित किया जाना चाहिए?  सवाल है कि क्या कार्यपालिका के पास इस पर निर्णय लेने की शक्ति नहीं है?  

इससे पूर्व अगस्त में इस मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि आपराधिक मामले में आरोपी को समाज में फिर से शामिल होने का संवैधानिक अधिकार है। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात और केंद्र सरकार से यह भी पूछा था कि छूट नीतियों को चुनिंदा तरीके से क्यों लागू किया जा रहा है। 

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15 अगस्त को रिहा किए गए थे दोषी

 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप किया गया था। तब बिलकिस बानों करीब 21 वर्ष की थीं और पांच माह की गर्भवती थीं।  दंगे में उनकी तीन वर्ष की बेटी समेत परिवार के कई लोगों की हत्या भी कर दी गई थी। इस मामले में 11 लोगों को दोषी ठहराया गया था।
ये सभी दोषी जेल में अपनी सजा काट रहे थे लेकिन पिछले वर्ष 15 अगस्त को गुजरात सरकार ने इन सभी दोषियों को जेल से रिहा कर दिया था। इसके बाद बिलकिस बानो ने 30 नवंबर 2022 को गुजरात सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए याचिका दायर की थी। इसके साथ ही कई अन्य लोगों ने भी जनहित याचिका दायर की थी।  
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क़मर वहीद नक़वी
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