बीजेपी की सहयोगी तेलुगु देशम पार्टी यानी टीडीपी ने ही विशेष गहन पुनरीक्षण यानी SIR पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। इसने कहा है कि एसआईआर का दायरा ही साफ़ क्यों नहीं है और इसको नागरिकता से क्यों जोड़ा जा रहा है। चंद्रबाबू नायडू की पार्टी ने बिहार में एसआईआर प्रक्रिया पर यह कहते हुए सवाल खड़े कर दिए हैं कि 'किसी बड़े चुनाव से पहले छह महीने के अंदर तो एसआईआर प्रक्रिया नहीं ही होनी चाहिए'। टीडीपी ने इस मामले में चुनाव आयोग को पत्र लिखा है। तो सवाल है कि कहीं टीडीपी का यह क़दम बीजेपी के लिए गठबंधन में दरार की वजह तो नहीं बनेगा? और क्या अब चुनाव आयोग पर दबाव बढ़ेगा?

इन सवालों के जवाब से पहले यह जान लें कि आख़िर टीडीपी ने मुख्य चुनाव आयुक्त को पत्र क्यों लिखा है। दरअसल, इसकी शुरुआत बिहार में एसआईआर से हुई। बिहार में SIR की प्रक्रिया को लेकर पहले से ही विवाद चल रहा है। राजद, कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों ने इसे नागरिकता की जाँच जैसा बताकर इसका विरोध किया है। विपक्षी दलों का कहना है कि एसआईआर के माध्यम से सरकार राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी को पीछे के दरवाजे से लागू करना चाहती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि नागरिकता तय करने का अधिकार गृह मंत्रालय का है। इसी बीच ख़बरें आ रही हैं कि चुनाव आयोग अगस्त महीने से ही एसआईआर की प्रक्रिया को पूरे देश में शुरू करने की तैयारी की है।
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टीडीपी का पत्र और उसका मक़सद

और अब इसी बीच टीडीपी ने SIR की प्रक्रिया को लेकर कड़े सवाल किए हैं। टीडीपी ने आग्रह किया है कि यह प्रक्रिया नागरिकता के मुद्दे से जोड़े बिना केवल मतदाता सूची को अपडेट करने तक सीमित रहनी चाहिए। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी ने मुख्य चुनाव आयुक्त को लिखे पत्र में कहा, 'विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया को लेकर जनता में भ्रम की स्थिति है। कई लोग इसे नागरिकता की जाँच से जोड़ रहे हैं, जो ग़लत धारणा बना रही है। हम मांग करते हैं कि चुनाव आयोग इस प्रक्रिया का दायरा साफ़ करे और यह सुनिश्चित करे कि SIR केवल मतदाता सूची को ठीक करने तक सीमित रहे, न कि नागरिकता सत्यापन से जुड़े।' टीडीपी की यह आपत्ति इसलिए अहम है क्योंकि हाल ही में चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण की घोषणा के बाद कई क्षेत्रों में इसे राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी से जोड़कर देखा जा रहा है।

पार्टी ने यह भी तर्क दिया कि SIR की प्रक्रिया को लेकर अस्पष्टता से आम जनता में भय और अनिश्चितता का माहौल बन रहा है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां लोग पहले से ही एनआरसी और नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए जैसे मुद्दों को लेकर संवेदनशील हैं। 

टीडीपी ने कहा है कि यदि इस प्रक्रिया को ठीक ढंग से साफ़ नहीं किया गया तो यह अल्पसंख्यक समुदायों और सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों में अविश्वास को बढ़ा सकता है।

टीडीपी का विरोध क्यों?

टीडीपी का यह कदम कई मायनों में अहम है। पहला, टीडीपी एनडीए की दूसरी सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी है, जिसने 2024 के लोकसभा चुनाव में 16 सीटें जीतीं और केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के लिए बेहद अहम समर्थन दिया। ऐसे में गठबंधन के भीतर से ही SIR जैसे मुद्दे पर असहमति का सामने आना बीजेपी के लिए एक चुनौती हो सकता है।
टीडीपी ने अपने पत्र में कई तर्क दिए हैं-
  • टीडीपी का कहना है कि SIR को लेकर स्पष्टता की कमी के कारण लोग इसे एनआरसी या नागरिकता सत्यापन से जोड़ रहे हैं। इससे खासकर आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में, जहां टीडीपी की मजबूत उपस्थिति है, जनता में भय का माहौल बन रहा है।
  • पार्टी ने चेतावनी दी कि यदि SIR को नागरिकता से जोड़ा गया तो यह सामाजिक तनाव को बढ़ा सकता है और अल्पसंख्यक समुदायों में अविश्वास पैदा कर सकता है।
  • टीडीपी ने कहा कि मतदाता सूची को अपडेट करने की प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष होनी चाहिए, ताकि चुनाव आयोग की विश्वसनीयता बनी रहे।

बीजेपी, टीडीपी में तनाव होगा?

टीडीपी का यह कदम बीजेपी के लिए असहज स्थिति पैदा कर सकता है, क्योंकि SIR को लेकर पहले से ही विपक्षी दलों की ओर से आलोचना हो रही है। विपक्षी दल इसे एनआरसी का एक परोक्ष रूप बताकर सरकार पर हमला बोल रहे हैं। टीडीपी का यह पत्र गठबंधन के भीतर मतभेदों को उजागर करता है, खासकर तब जब बीजेपी और उसके सहयोगी दल 2024 में सरकार बनाने के लिए एकजुट हुए।
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चंद्रबाबू नायडू की मजबूरी क्या?

टीडीपी के इस रुख को आंध्र प्रदेश की स्थानीय राजनीति से भी जोड़ा जा रहा है। हाल ही में आंध्र प्रदेश में विधानसभा चुनाव में शानदार जीत के बाद मुख्यमंत्री बने चंद्रबाबू नायडू अपने राज्य में सभी समुदायों के बीच संतुलन बनाए रखना चाहते हैं। आंध्र प्रदेश में अल्पसंख्यक और सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों का एक बड़ा वोट बैंक है और टीडीपी नहीं चाहती है कि SIR को लेकर कोई ग़लत संदेश जाए।

चुनाव आयोग पर बढ़ेगा दबाव?

टीडीपी के पत्र ने चुनाव आयोग पर दबाव बढ़ा दिया है। पहले से ही कई संगठनों और विपक्षी दलों ने SIR की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं, और अब एनडीए के एक प्रमुख सहयोगी दल की ओर से इस तरह की मांग ने स्थिति को और मुश्किल कर दिया है। जानकारों का मानना है कि चुनाव आयोग पर अब न केवल प्रक्रिया के दायरे को साफ़ करने के लिए, बल्कि यह भी सुनिश्चित करने के लिए दबाव बढ़ेगा कि यह जनता में भय या अविश्वास न पैदा करे।
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चुनाव आयोग ने हाल ही में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची से फर्जी और दोहरे नामों को हटाना और इसे और अधिक सटीक बनाना है। हालांकि, कुछ राज्यों में इस प्रक्रिया को एनआरसी से जोड़कर देखा जा रहा है, जिसके कारण कई समुदायों में चिंता बढ़ रही है। 

टीडीपी का मुख्य चुनाव आयुक्त को लिखा गया पत्र न केवल SIR की प्रक्रिया को लेकर सफ़ाई की मांग करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि एनडीए गठबंधन के भीतर कुछ मुद्दों पर एकरूपता की कमी है। यह कदम बीजेपी के लिए एक चुनौती हो सकता है, क्योंकि टीडीपी और जनता दल यूनाइटेड जैसे सहयोगी दलों के बिना केंद्र में सरकार बनाना और चलाना मुश्किल है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह पत्र SIR की प्रक्रिया को प्रभावित करता है या गठबंधन की आंतरिक राजनीति में नए समीकरण बनाता है।