क्या दो लोगों का आधार नंबर एक ही हो सकता है? भले ही वो दो अलग-अलग राज्यों के लोग हों। क्या दो गाड़ियों की नंबर प्लेट संख्या एक ही हो सकती है? यदि हो जाए तो यह कितना घातक हो सकता है, इसका कुछ अंदाज़ा है? क्या दो लोगों की पासपोर्ट संख्या एक हो सकती है? नहीं न? तो फिर एक से अधिक मतदाताओं की चुनावी फोटो पहचान कार्ड यानी ईपीआईसी एक कैसे हो सकती है?

ईपीआईसी में गड़बड़ी के आरोपों को लेकर चुनाव आयोग की सफ़ाई के बाद टीएमसी ने ये सवाल उठाए हैं। ममता बनर्जी के आरोपों पर चुनाव आयोग ने रविवार को एक बयान में कहा था कि ईपीआईसी संख्या में दोहराव का मतलब डुप्लिकेट या नकली मतदाता नहीं है। इसने कहा था कि 'मैनुअल त्रुटि' से दो राज्यों के मतदाताओं की ईपीआईसी संख्या एक हो गई। चुनाव आयोग के इसी दावे पर टीएमसी ने सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बड़ा आरोप लगाया। 
टीएमसी सांसद डेरेक ओब्रायन, सागरिका घोष और कीर्ति आज़ाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव आयोग को गड़बड़ी सुधारने का अल्टीमेटम दिया है। उन्होंने कहा है कि यदि चुनाव आयोग 24 घंटे में गड़बड़ी को मानकर नहीं सुधारता है तो टीएमसी ऐसी ही गड़बड़ियों के और दस्तावेज मंगलवार को जारी करेगी। 
सागरिका घोष ने कहा, "आज हमने ‘ईपीआईसी’ घोटाले पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की। टीएमसी ने सबूतों के साथ डुप्लीकेट ईपीआईसी कार्ड के घोटाले को उजागर किया है। जब आधार कार्ड पर यूनिक नंबर होते हैं, जब लाइसेंस प्लेट पर यूनिक नंबर होते हैं, तो कई लोगों के पास एक ही ईपीआईसी नंबर कैसे हो सकता है? चुनाव आयोग का जवाब पूरी तरह से असंतोषजनक है। टीएमसी ने चुनाव आयोग को अपनी ग़लती स्वीकार करने के लिए 24 घंटे का समय दिया है, अन्यथा हम कल एक और दस्तावेज़ जारी करेंगे।"
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सागरिका घोष, कीर्ति आज़ाद के साथ डेरेक ओब्रायन ने सोमवार को एक ही ईपीआईसी नंबर वाले वोटर आईडी कार्डों की सूची को दिखाया और कहा कि इनमें से अधिकतर बीजेपी शासित राज्यों से हैं। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि उस राज्य का वोटर ही किसी राज्य में चुनाव में मतदान करे जिस राज्य का वह रहने वाला है। ओब्रायन ने कहा कि सिर्फ़ बंगाल का वोटर ही बंगाल में वोट करे। उन्होंने कहा कि 'मतदाताओं को वोट नहीं डालने दिया जाएगा क्योंकि उसी ईपीआईसी नंबर से लोग उन मतदाताओं के वोट डाल चुके होंगे। ये लोग दूसरे राज्यों से वोट डालने के लिए लाए जाएँगे। यह अस्वीकार्य है।'

टीएमसी ने यह ताज़ा आरोप इसलिए लगाया है क्योंकि चुनाव आयोग ने रविवार को बयान जारी कर सफ़ाई दी थी। ममता बनर्जी के आरोपों पर चुनाव आयोग ने एक बयान में साफ़ किया कि ईपीआईसी संख्या में दोहराव का मतलब डुप्लिकेट या नकली मतदाता नहीं है।

ईसीआई ने कहा, 'ईपीआईसी नंबर के बावजूद कोई भी मतदाता अपने राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में अपने निर्वाचन क्षेत्र में अपने मतदान केंद्र पर ही वोट डाल सकता है, जहां वह मतदाता सूची में नामांकित है और कहीं और नहीं।' लेकिन टीएमसी ने चुनाव आयोग के इस बयान को मतदाता सूची में गड़बड़ी का सबूत बता दिया।
टीएमसी ने एक पोस्ट में लिखा, "ममता बनर्जी ने चेतावनी दी कि कैसे भाजपा लोकतंत्र का अपहरण कर रही है, और अब चुनाव आयोग का खुद का कबूलनामा उनकी सच्चाई को साबित करता है। राज्यों में डुप्लिकेट ईपीआईसी नंबर? एक 'मैन्युअल त्रुटि' या चुनावों में हेराफेरी करने के लिए बढ़िया से तैयार किया गया घोटाला? उन्होंने महाराष्ट्र और दिल्ली में मतदाता सूची में हेराफेरी की और बच निकले। उन्होंने बंगाल में भी यही कोशिश की, लेकिन पकड़े गए।"
इसने कहा, "'तटस्थ' ईसीआई भाजपा के चुनाव-धांधली विभाग में बदल गया है। लोकतंत्र मोदी द्वारा बनाया गया सामान नहीं है, जिसे छेड़छाड़ किया जा सकता है, तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है और बेचा जा सकता है। हम आपको चुनाव को चुराने नहीं देंगे।" 
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'एपिक स्कैम' करार देते हुए डेरेक ओब्रायन ने सोमवार को आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने रविवार को तब सफ़ाई जारी की जब टीएमसी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की घोषणा की। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग की सीमित तारीफ़ इसलिए कर रहा हूँ कि चुनाव आयोग ग़लती मान रहा है, लेकिन स्वीकार नहीं कर रहा है। 
बता दें कि ममता ने 27 फ़रवरी को आरोप लगाया था कि कई मतदाताओं के पास एक ही चुनावी फोटो पहचान पत्र यानी ईपीआईसी संख्या है। उन्होंने कहा था कि एक से अधिक मतदाताओं की पहचान पत्र संख्या एक कैसे हो सकती है, यह धांधली है। टीएमसी के लगातार हमलों के बाद चुनाव आयोग पर अब सफ़ाई देने का दबाव है। तो सवाल यह है कि क्या अब चुनाव आयोग चुनावी फोटो पहचान पत्र यानी ईपीआईसी संख्या के मामले में फँस गया है?

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है।)