देश के दस बड़े केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने मोदी सरकार द्वारा लागू की गईं चार नई श्रम संहिताओं को 'श्रमिकों के साथ खुला धोखा और धोखाधड़ी' करार देते हुए इन्हें तत्काल प्रभाव से वापस लेने की मांग की है। यूनियनों ने 26 नवंबर को पूरे देश में बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन करने का ऐलान किया है।

पांच साल पहले 2020 में संसद से पारित चार श्रम संहिताओं को सरकार ने शुक्रवार से पूरे देश में लागू कर दिया। ये चार संहिताएँ हैं–
  • मजदूरी संहिता
  • औद्योगिक संबंध संहिता
  • सामाजिक सुरक्षा संहिता
  • व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य दशा संहिता
सरकार का दावा है कि ये संहिताएं ब्रिटिश काल के पुराने श्रम कानूनों को सरल बनाएंगी, निवेश को बढ़ावा देंगी और श्रमिकों को बेहतर सुरक्षा देंगी। लेकिन श्रम संगठनों ने इसे छलावा क़रार दिया है।

श्रमिकों के अधिकार छीने: ट्रेड यूनियन

दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों- INTUC, AITUC, HMS, CITU, AIUTUC, TUCC, SEWA, AICCTU, LPF और UTUC ने संयुक्त बयान में कहा, 'ये नई संहिताएँ श्रमिकों के साथ धोखा हैं। इनसे कंपनियों को बिना वजह कर्मचारी निकालने (हायर एंड फायर) की खुली छूट मिल गई है। 100 की जगह अब 300 कर्मचारियों वाली फैक्ट्रियों को भी बिना सरकारी अनुमति के छँटनी की इजाजत होगी। फैक्ट्री में 12-12 घंटे की शिफ्ट और महिलाओं से रात की पाली कराने का प्रावधान श्रमिकों की सेहत और सुरक्षा के लिए ख़तरनाक़ है।'

यूनियनों ने कहा कि पिछले पांच साल में कई बार देशव्यापी हड़तालें की गईं, लेकिन सरकार ने एक भी मांग नहीं मानी। अब क़ानून लागू कर श्रमिकों पर जबरदस्ती थोपे जा रहे हैं।

छोटे-मध्यम उद्यमी भी परेशान

नई संहिताओं से सिर्फ़ मज़दूर ही नहीं, उद्यमी भी चिंतित हैं। एसोसिएशन ऑफ इंडियन एंटरप्रेन्योर्स ने बयान जारी कर कहा कि नये नियमों से छोटे-मध्यम उद्योगों की परिचालन लागत बहुत बढ़ जाएगी और कई क्षेत्रों में कारोबार में रुकावट आएगी।

विवाद की वजह क्या?

भारत सरकार ने 21 नवंबर 2025 को चार नई श्रम संहिताओं को औपचारिक रूप से लागू कर दिया है। ये देश के 29 पुराने श्रम कानूनों को समाहित करती हैं। सरकार का दावा है कि ये सुधार 'आत्मनिर्भर भारत' को मजबूत करेंगे, निवेश आकर्षित करेंगे और 50 करोड़ से अधिक श्रमिकों को लाभ देंगे। 

ये संहिताएं 2020 से संसद में पारित होने के बाद पांच वर्षों से अधर में थीं, और अब अचानक लागू होने से बड़ा विवाद पैदा हो गया है। विवाद श्रमिक अधिकारों, कॉर्पोरेट हितों और कार्यान्वयन की प्रक्रिया पर केंद्रित है।

छंटनी और 'हायर एंड फायर' नीति

ट्रेड यूनियनों का विरोध: 300 से कम कर्मचारियों वाली कंपनियां बिना सरकारी अनुमति के छंटनी कर सकती हैं। इससे स्थायी रोजगार खत्म होगा, ठेका प्रथा बढ़ेगी और शोषण होगा।

सरकार का पक्ष: इससे कंपनियों को लचीलापन मिलेगा, निवेश बढ़ेगा और रोजगार सृजन होगा। छोटी फर्मों के लिए अनुपालन आसान।

हड़ताल और यूनियन अधिकार

ट्रेड यूनियनों का विरोध: हड़ताल के लिए 14 दिन का नोटिस अनिवार्य, और यूनियन मान्यता के लिए 51% सदस्यता जरूरी। सामूहिक सौदेबाजी कमजोर होगी।

सरकार का पक्ष: विवाद निपटान तेज होगा, इंस्पेक्टर-कम-फैसिलिटेटर सिस्टम से दंड की बजाय मार्गदर्शन पर जोर।

कार्य घंटे और ओवरटाइम

ट्रेड यूनियनों का विरोध: फैक्टरी शिफ्ट 12 घंटे तक बढ़ सकती है, महिलाओं को रात्रि कार्य की अनुमति। ओवरटाइम पर दोगुना भुगतान, लेकिन शोषण का खतरा।

सरकार का पक्ष: लचीलापन निवेश को बढ़ावा देगा, महिलाओं को समान अवसर मिलेंगे।

सामाजिक सुरक्षा और असंगठित श्रमिक

ट्रेड यूनियनों का विरोध: गिग/प्लेटफॉर्म वर्कर्स के लिए सुरक्षा का वादा, लेकिन फंडिंग और क्रियान्वयन अस्पष्ट। अदृश्य श्रम (घरेलू कामगार) की अनदेखी।

सरकार का पक्ष: 40 करोड़ असंगठित श्रमिकों को पीएफ, पेंशन और दुर्घटना बीमा। ग्रेच्युटी सीमा 20 लाख तक बढ़ी।

कार्यान्वयन और परामर्श

ट्रेड यूनियनों का विरोध: एकतरफा फैसला, बिना पर्याप्त चर्चा। छोटी कंपनियों पर अनुपालन का बोझ बढ़ेगा।

सरकार का पक्ष: 2024 से 12 से ज़्यादा परामर्श हुए। राज्यों को नियम बनाने का अधिकार।

बीएमएस ने किया समर्थन

सभी ट्रेड यूनियन एक मत नहीं हैं। बीजेपी से जुड़ा भारतीय मजदूर संघ यानी बीएमएस ने नई संहिताओं का स्वागत किया है। इसने कहा कि कुछ बिंदुओं पर विचार-विमर्श के बाद सभी राज्य सरकारें इन्हें लागू करें।

ट्रेड यूनियनों की मांग पर श्रम मंत्रालय की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई। मंत्रालय के एक आंतरिक दस्तावेज के अनुसार जून 2024 से अब तक यूनियनों के साथ 14 से ज्यादा दौर की बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन कोई सहमति नहीं बनी।

राज्यों की भूमिका अहम

चारों संहिताओं के तहत अब राज्यों को अपने-अपने नियम बनाकर इन्हें लागू करना है। कई राज्य अभी तक अपने ड्राफ्ट नियम भी अधिसूचित नहीं कर पाए हैं। आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर केंद्र और राज्यों के बीच भी तनातनी बढ़ने की आशंका है।

26 नवंबर को होने वाले देशव्यापी प्रदर्शन को देखते हुए सभी बड़े शहरों में पुलिस-प्रशासन ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। श्रमिक संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर संहिताएं वापस नहीं ली गईं तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा।