loader

बेरोज़गारी से स्मार्ट सिटी नहीं, आम शहरों पर बढ़ेगा बोझ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल की यह विशेषता रही कि उन्होंने योजनाओं की झड़ी-सी लगा दी थी। यही नहीं, इनमें से उनकी अधिकाँश योजनाओं के पूरा होने की समय-सीमा उनके 5 साल के कार्यकाल को पार कर 2022 रखी गयी। इस समय-सीमा को लेकर विपक्षी दल चुटकी भी लेते थे, लेकिन मोदी ने लोकसभा चुनाव जीत कर अपनी सरकार का कार्यकाल 2024 तक कर लिया। अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या मोदी की वे महत्वाकांक्षी योजनाएँ 2022 में पूरी हो पाएँगी? जून 2015 में नरेंद्र मोदी ने स्मार्ट सिटी परियोजना की घोषणा करते हुए 2022 तक 100 स्मार्ट सिटी बनाने की बात की थी। इनमें कितने शहर स्मार्ट सिटी बन गए या नहीं? यह अलग सवाल है लेकिन सरकार के पीएलएफएस (पीरिऑडिक लेबर फ़ोर्स सर्वे) के जो आँकड़े आये हैं उनसे लगता है कि देश के शहरों पर आने वाले समय में और अधिक भार तेज़ी से बढ़ने वाला है। क्योंकि शहरों की तरफ़ पलायन और तेज़ी से बढ़ने वाला है। यानी हमारे जो शहर हैं वे और तेज़ी से बद से बदतर हालात की तरफ़ बढ़ने वाले हैं। 

दुनिया में शहरीकरण को भले ही विकास के नज़रिये से देखा जाता हो लेकिन हमारे देश में शहरीकरण अभी तक समस्या बनकर ही उभरा है।

गाँवों में काम नहीं मिलता है तो लोग शहरों की तरफ़ भागते हैं और जहाँ वे भाषावाद, क्षेत्रवाद, झोपड़पट्टी की मार तो सहते ही हैं, शहरों की मूलभूत सुविधाओं पर अतिरिक्त भार जैसी समस्याओं को जन्म देने वाले के नाम पर वे इसका शिकार भी होते हैं। आने वाले दिनों में यह समस्या और गंभीर होने जा रही है। सरकारी नीतियों के परिणाम से कृषि प्रधान देश में किसानों की हालात तो साल दर साल भयावह होती जा रही है। साथ ही कृषि और उससे जुड़े जो छोटे-मोटे काम-धंधे गाँवों में थे वे तेज़ी से सिमटते जा रहे हैं। 

ताज़ा ख़बरें

ग्रामीण युवाओं में बेतहाशा बढ़ी बेरोज़गारी 

आँकड़ों के मुताबिक़ गत छह साल में ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं में बेरोज़गारी की दर में तीन गुना से भी ज़्यादा की बढ़ोतरी हुई है। यदि 2004-05 से तुलना की जाए तो यह वृद्धि चार गुना है। अब तक जो परंपरा इन आँकड़ों में देखी जाती थी वह थी, ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी की दर शहरों की तुलना में कम हुआ करती थी। क्योंकि बड़ी संख्या में नौजवान कृषि या इससे जुड़े लघु उद्योगों में कार्य करते थे, लेकिन अब गाँव और शहरों की स्थिति एक जैसी होती जा रही है। मंत्रालय द्वारा हाल में जारी आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण (पीएलएफ़एस) में 15-29 साल के युवाओं में बेरोज़गारी के अलग से आँकड़े एकत्र किए गए हैं। 

सर्वे के मुताबिक़ 2011-12 में 15 से 29 आयु वर्ग के युवकों में बेरोज़गारी की दर पाँच फ़ीसदी थी जो 2017-18 में बढ़कर 17.4 फ़ीसदी हो गई। यह शहरी क्षेत्र के युवाओं में बेरोज़गारी दर से महज एक फ़ीसदी कम है।

पीएलएफ़एस के आँकड़ों के अनुसार पिछले छह साल में 15 से 29 वर्ष उम्र की शहरी युवतियों में बेरोज़गारी सबसे तेज़ी से बढ़ी है। यह 2011-12 के 13.1 फ़ीसदी की दर से बढ़कर 27.2 फ़ीसदी के उच्चतम स्तर पर पहुँच गई है। इस अवधि में ग्रामीण युवतियों में भी बेरोज़गारी दर 4.8 फ़ीसदी से बढ़कर 13.6 फ़ीसदी हो गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी में तेज़ी से बढ़ोतरी के पीछे दो प्रमुख कारण मान रहे हैं। 

  1. शिक्षा का स्तर बढ़ने से कृषि कार्य में युवाओं की हिस्सेदारी घट रही है।
  2. कृषि से जुड़े छोटे-मोटे ग्रामीण काम-धंधे बंद हो रहे हैं। 

असर यह हुआ कि हिंसा भी बढ़ गई

इसका असर शहरों की तरफ पलायन बढ़ने के रूप में हो रहा है। बीते वर्षों में शहरों में भी रोज़गार के अवसर में तेज़ी से गिरावट आयी है। ऐसे में 2018 में मध्य प्रदेश में जब वहाँ की नव निर्वाचित सरकार ने नौकरियों में 50% प्राथमिकता मध्य प्रदेश के लोगों को देने की बात की तो बवाल मचना शुरू हो गया। इसी दौरान गुजरात में भी बिहार व झारखंड के लोगों को मार-पीट कर भगाने की घटनाएँ सामने आयीं। महाराष्ट्र में मराठी बनाम उत्तर भारतीय, पश्चिम बंगाल में बंगाली बनाम बिहारी या दक्षिण भारत में हिंदी भाषी कामकाजी लोगों के साथ बढ़ते संघर्ष के मूल में जो सवाल है, वह है रोज़गार के लिए महानगरों और शहरों की तरफ़ पलायन का।

देश से और ख़बरें

वैसे तो पलायन की इस समस्या का स्वरूप सामाजिक होता है लेकिन हमारे देश में इसको लेकर राजनीतिक रंग दिया जाता है और उनके आधार पर राजनीतिक दलों का गठन भी किया जाता है। लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि विकास का जो मॉडल हम चुन रहे हैं वह वाक़ई में विकास की ओर ले जा रहा है या विसंगतियाँ पैदा कर रहा है? स्मार्ट सिटी देश को चाहिए लेकिन शहर स्मार्ट तभी बन सकते हैं जब उन पर जनसंख्या भार नियंत्रित होने के प्रयास भी किये जाएँ। गाँवों की अर्थव्यवस्था ध्वस्त कर हम स्मार्ट शहर क़तई नहीं बना सकते।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
संजय राय
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें