समाचार एजेंसी आईएएनएस से बात करते हुए उत्पल ने यह भी कहा कि अब इस बात का फ़ैसला समय ही करेगा कि बीजेपी के समर्पित कार्यकर्ता दूसरी पार्टियों से आए हुए नेताओं और विधायकों को स्वीकार करेंगे या नहीं। उत्पल को उनके पिता की खाली हुई सीट से उपचुनाव में टिकट मिलने की चर्चा थी लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट ही नहीं दिया।
यह पूछे जाने पर कि क्या वह अपने पिता के दिखाए हुए विश्वास के रास्ते पर चलेंगे, उत्पल ने कहा, ‘मैं ऐसा करने के लिए तैयार हूँ। इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं लेकिन मैं उनका मुक़ाबला करना चाहता हूँ।’
इससे पता चलता है कि नेताओं की अपने दल के प्रति कोई निष्ठा ही नहीं है, देश के लोकतंत्र और संविधान के प्रति निष्ठा की तो बात ही छोड़िए। जब तक कोई पार्टी सत्ता में है, वे उसके साथ रहते हैं लेकिन सत्ता जाते ही सत्ता में आने वाले दूसरे दलों का हाथ पकड़ने की कोशिश करते हैं।
कांग्रेस में रीता बहुगुणा जोशी, टॉम वडक्कन जैसे वरिष्ठ नेताओं के उदाहरण हमारे सामने हैं। ऐसे नेताओं से आप क्या लोकतंत्र को मजबूत और इसे अक्षुण्ण रखने की उम्मीद कर सकते हैं, क़तई नहीं। क्योंकि ऐसे हालात में यह उम्मीद की भी नहीं जानी चाहिए।