क्या सदियों से बनी भारत की धर्मनिरपेक्ष, बहुलतावादी, समन्वयवादी छवि तार-तार हो गई है? क्या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की फ़जीहत हो रही है? क्या इसके लिए खुद भारत के लोग ज़िम्मेदार हैं?