लोकसभा में ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना मनरेगा को बदलने वाले नए बिल 'विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) बिल, 2025' यानी VB-G RAM G बिल को पेश किए जाने पर विपक्ष ने जोरदार हंगामा किया। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए इस बिल को वापस लेने की मांग की। उन्होंने कहा, 'मनरेगा का नाम बदलने के पीछे की सच्चाई यह है कि मोदी सरकार रोजगार के क़ानूनी अधिकार को ख़त्म करना चाहती है। इस योजना से देश के गरीब से गरीब मजदूरों को रोजगार की गारंटी मिलती है, लेकिन मोदी सरकार को योजनाओं के नाम बदलने की सनक है।' प्रियंका ने कहा कि यह बिल मौजूदा कानून को कमजोर करता है और इसे किसी की मनमानी, महत्वाकांक्षा और पूर्वाग्रह के आधार पर नहीं पारित किया जाना चाहिए।

केंद्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंगलवार को लोकसभा में इस बिल को पेश करने की अनुमति मांगी। यह बिल महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा की जगह लेगा, जो 2005 में यूपीए सरकार द्वारा लाया गया था। मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में हर परिवार को साल में 100 दिन के मजदूरी वाले काम की गारंटी देता है और इसने पिछले दो दशकों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई है।
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प्रियंका गांधी ने लोकसभा में बिल का विरोध दर्ज कराते हुए कहा, 'मैं इस बिल का पुरजोर विरोध दर्ज करती हूँ। मनरेगा ने 20 सालों से ग्रामीण भारत को आजीविका प्रदान की है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया है। यह इतना क्रांतिकारी कानून है कि जब इसे लाया गया था, तब संसद में सभी राजनीतिक दलों ने इसका समर्थन किया था। यह देश के सबसे गरीब लोगों को साल में 100 दिन का रोजगार प्रदान करता है।'

उन्होंने आगे कहा कि मनरेगा मांग-आधारित है, जिसमें केंद्र सरकार की फंडिंग भी मांग के अनुसार होती है। लेकिन नए बिल में केंद्र पहले से ही फंड आवंटन तय करेगा, जो नॉर्मेटिव फंडिंग पर आधारित होगा। इससे ग्राम सभाओं की भूमिका कमजोर होगी, जो स्थानीय स्तर पर काम की मांग तय करती हैं। प्रियंका ने चेतावनी दी कि 'रोजगार का अधिकार कमजोर किया जा रहा है, जो हमारे संविधान के खिलाफ है।'

'राज्यों पर बोझ बढ़ाया जा रहा'

कांग्रेस नेता ने यह भी कहा कि अधिकांश राज्यों के लिए केंद्र का फंड योगदान 60 प्रतिशत तक कम कर दिया गया है, जबकि राज्य पहले से ही जीएसटी बकाया का इंतजार कर रहे हैं। इससे राज्यों की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा। उन्होंने हर योजना का नाम बदलने की 'सनक' पर सवाल उठाते हुए कहा कि इससे हर बार सरकारी खजाने पर बोझ पड़ता है।

प्रियंका गांधी ने मांग की कि 'यह बिल जल्दबाजी में बिना चर्चा और सदन की सलाह के पारित नहीं किया जाना चाहिए। इसे वापस लिया जाए और नया बिल लाया जाए।' जब ट्रेजरी बेंच से किसी ने 'परिवार' संबंधी टिप्पणी की, तो प्रियंका ने करारा जवाब दिया, 'महात्मा गांधी मेरे परिवार के नहीं हैं, लेकिन मेरे परिवार जैसे हैं और पूरे देश की यही भावना है।'
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प्रियंका गांधी के अलावा विपक्ष के कई अन्य नेताओं ने भी बिल के प्रावधानों पर आपत्ति जताई, खासकर मांग-आधारित फंडिंग से नॉर्मेटिव फंडिंग पर शिफ्ट और केंद्र के योगदान में कटौती पर। कांग्रेस ने इसे महात्मा गांधी के नाम हटाने की साजिश क़रार देते हुए आरोप लगाया कि यह गरीबों और मजदूरों के खिलाफ है।

दूसरी ओर, सरकार समर्थकों का कहना है कि नया क़ानून 'विकसित भारत 2047' विजन के अनुरूप है। नॉर्मेटिव फंडिंग से बजट में अनिश्चितता खत्म होगी और उद्देश्यपूर्ण पैरामीटर्स पर आधारित योजनाबद्ध आवंटन सुनिश्चित होगा। नए बिल में रोजगार के दिन 100 से बढ़ाकर 125 करने का भी प्रावधान है, जो ग्रामीण बुनियादी ढांचे, जल सुरक्षा और जलवायु अनुकूलन पर फोकस करेगा।

गांधी जी की विरासत का अपमान न करें: थरूर

शशि थरूर ने मनरेगा का नाम बदले जाने का संसद में कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा, 'मैं प्रस्तावित बिल, VB–G RAM G बिल को पेश किए जाने का विरोध करना चाहता हूँ, जो हमारे देश और हमारे देश की अपने सबसे कमज़ोर नागरिकों के कल्याण के प्रति प्रतिबद्धता के लिए एक बहुत ही दुखद और पीछे ले जाने वाला कदम है।'
इससे पहले उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया सोशल मीडिया पर दी। उन्होंने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा, "सरकार के प्रस्तावित नए G-RAM-G बिल में मनरेगा का नाम बदलने को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। ग्राम स्वराज की अवधारणा और राम राज्य का आदर्श कभी परस्पर विरोधी नहीं रहे, बल्कि ये गांधीजी की चेतना के दो जुड़वां स्तंभ थे। ग्रामीण गरीबों के लिए बनी योजना में महात्मा का नाम हटाना इस गहरे जुड़ाव को नजरअंदाज करता है। उनकी आखिरी सांस ‘राम’ के नाम की थी; ऐसी जगह बंटवारा करके गांधीजी की विरासत का अपमान न करें, जहां कोई बंटवारा था ही नहीं।"

उन्होंने साफ़ किया कि वे महात्मा गांधी का नाम हटाने का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि यह गांधीजी की ग्रामीण विकास और राम राज्य की विचारधारा के बीच के गहरे संबंध को अनदेखा करता है। थरूर का रुख कांग्रेस की लाइन से मेल खाता है, जो इसे गांधीजी की विरासत का अपमान बता रही है।
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राज्यों पर बोझ डालने से टीडीपी भी चिंतित

एनडीए की सहयोगी तेलुगु देशम पार्टी यानी टीडीपी ने विकसित भारत G RAM G योजना में प्रस्तावित फंडिंग पैटर्न पर चिंता जताई है। 16 लोकसभा सांसदों के साथ टीडीपी केंद्र में बीजेपी के बाद दूसरा सबसे बड़ा एनडीए घटक भी है। द इकोनॉमिक टाइम्स ने टीडीपी के एक वरिष्ठ राज्य मंत्री के हवाले से कहा, 'यह नया फंडिंग पैटर्न राज्य सरकार पर साफ तौर पर बोझ डालेगा। यह बहुत चिंता की बात है, खासकर आंध्र प्रदेश जैसे नकदी की कमी वाले राज्य के लिए।' मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर ईटी से यह बात कही।

मंत्री ने आगे कहा, 'यह फंडिंग पैटर्न ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को किसी भी दूसरी केंद्रीय योजना जैसा बना देता है।' रिपोर्ट में टीडीपी के सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि एनडीए का यह प्रमुख सहयोगी 'चाहता है कि बिल को आगे की जांच के लिए संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा जाए'।

बहरहाल, यह मुद्दा संसद के शीतकालीन सत्र में बड़ा विवाद बन गया है। विपक्ष ने संसद परिसर में प्रदर्शन भी किया। मनरेगा को बदलने का यह प्रस्ताव ग्रामीण भारत की आजीविका से जुड़ा होने के कारण राजनीतिक रूप से संवेदनशील है। आने वाले दिनों में इस पर और चर्चा होने की संभावना है।