सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम पर अंतरिम रोक लगाने की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनीं और कहा कि ऐसे आदेश के लिए ठोस आधार दिखाना ज़रूरी है। जानें इस सुनवाई के प्रमुख बिंदु।
सीजेआई बीआर गवई ने वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान काफ़ी अहम टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि संसद द्वारा पारित क़ानून में संवैधानिकता का कॉन्सेप्ट होता है और जब तक कोई साफ़ और ठोस मामला सामने नहीं आता तब तक अदालतें इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं। यह टिप्पणी वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर चल रहे विवाद के बीच आई है, जो पिछले महीने कानून बना था। मंगलवार को इस मामले में तीन घंटे से अधिक समय तक सुनवाई चली। इसमें अंतरिम आदेश पारित करने का सवाल भी शामिल था। सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि किसी क़ानून को स्थगित करने के लिए एक मज़बूत मामला पेश करना होगा। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार सीजेआई गवई ने कहा, 'प्रत्येक कानून के पक्ष में संवैधानिकता की धारणा होती है। अंतरिम राहत के लिए आपको बहुत मजबूत और स्पष्ट मामला बनाना होगा। ऐसा नहीं हुआ तो संवैधानिकता की धारणा बनी रहेगी और अदालतें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं।'
वक्फ संशोधन अधिनियम को हाल ही में संसद ने पारित किया है। यह अधिनियम वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और नियमन से संबंधित है। इस कानून का उद्देश्य वक्फ बोर्डों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाना, वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन सुनिश्चित करना और दुरुपयोग को रोकना बताया गया है। हालांकि, इस कानून के कुछ प्रावधानों को लेकर कई संगठनों और लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएँ दायर की हैं, जिनमें इसे संवैधानिकता के ख़िलाफ़ बताया गया है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दावा किया कि यह कानून वक्फ संपत्तियों को हड़पने के लिए बनाया गया है। उन्होंने कहा कि कानून में वक्फ बनाने के लिए कम से कम पांच साल तक इस्लाम का पालन करने की शर्त जैसे कुछ प्रावधान भेदभावपूर्ण हैं। सिब्बल ने यह भी तर्क दिया कि यह कानून वक्फ संपत्तियों को बिना किसी सही प्रक्रिया के हस्तांतरित करने की अनुमति देता है।
सीजेआई गवई ने यह साफ़ किया कि अदालत का काम कानून की संवैधानिक वैधता की जांच करना है, लेकिन यह तभी संभव है जब याचिकाकर्ता यह साबित करें कि कानून में कोई गंभीर संवैधानिक खामी है। उन्होंने कहा कि मौजूदा स्थिति में और कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है।
कपिल सिब्बल ने सुनवाई के दौरान कई महत्वपूर्ण बिंदु उठाए। उन्होंने कहा कि यह कानून वक्फ संपत्तियों की प्रकृति को बदल देता है और इसे वक्फ के रूप में मान्यता नहीं दी जाएगी। सिब्बल ने मस्जिदों और मंदिरों की तुलना करते हुए कहा कि संविधान के तहत राज्य धार्मिक संस्थानों को वित्तीय सहायता नहीं दे सकता। उन्होंने तर्क दिया कि मस्जिदों या कब्रिस्तानों का रखरखाव निजी संपत्तियों के माध्यम से होता है, और लोग अक्सर अपनी संपत्ति को वक्फ के रूप में समर्पित करते हैं। नए कानून के प्रावधान इस प्रक्रिया को मुश्किल बना सकते हैं। सिब्बल ने यह भी दावा किया कि कानून में प्रावधान ऐसे हैं कि वे वक्फ संपत्तियों को बिना किसी सही प्रक्रिया के लेने की अनुमति देते हैं, जो संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
वक्फ संशोधन अधिनियम में कई बदलाव किए गए हैं। वक्फ संपत्तियों का रिकॉर्ड डिजिटल रूप में रखा जाएगा ताकि पारदर्शिता बढ़े। गैर-मुस्लिम सदस्यों को वक्फ बोर्ड में शामिल करने का प्रावधान भी है। वक्फ बनाने के लिए व्यक्ति को कम से कम पांच साल तक इस्लाम का पालन करने की शर्त है। केंद्र सरकार को वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में अधिक अधिकार दिए गए हैं।वक्फ संशोधन अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
इन प्रावधानों को सरकार ने वक्फ प्रणाली में सुधार के रूप में पेश किया है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि ये प्रावधान धार्मिक स्वतंत्रता और वक्फ की स्वायत्तता पर सवाल उठाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने साफ़ किया कि जब तक याचिकाकर्ता कानून की संवैधानिकता के खिलाफ मजबूत और स्पष्ट आधार नहीं पेश करते, तब तक कानून को वैध माना जाएगा। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को अपने तर्कों को और मजबूत करने के लिए समय दिया है और मामले की अगली सुनवाई जल्द ही होगी।
वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई अभी जारी रहेगी। याचिकाकर्ताओं को अपने तर्कों को और मजबूत करना होगा ताकि वे कानून की संवैधानिकता पर सवाल उठा सकें। दूसरी ओर, सरकार का कहना है कि यह कानून वक्फ प्रणाली को और पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए बनाया गया है। मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी ने स्पष्ट कर दिया है कि अदालतें संसद के कानूनों में हस्तक्षेप करने से बचती हैं, जब तक कि कोई गंभीर संवैधानिक उल्लंघन साबित न हो।