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जीडीपी पर कौन सही, मोदी की सलाहकार परिषद या पूर्व सलाहकार?

जीडीपी के आँकड़े ‘बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने’ के मामले में अब प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद और मोदी के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन आमने-सामने आ गये हैं। परिषद ने जीडीपी के आँकड़े पर सुब्रमण्यन के शोध को ‘मोस्ट अनयूजूअल एक्सरसाइज़’ यानी सबसे असामान्य अभ्यास कहकर उनके दावों को ख़ारिज़ कर दिया है। ऐसे में अब सही किसे माना जाए। जैसा कि परिषद आरोप लगा रही है, क्या प्रधानमंत्री का आर्थिक सलाहकार रहे अर्थशास्त्री ने शोध सही नहीं किया है? अरविंद सुब्रमण्यन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही आर्थिक सलाहकार रहे थे और यह परिषद भी प्रधानमंत्री मोदी को ही सलाह देती है। तो गड़बड़ी कहाँ होने की संभावना है? आर्थिक मोर्चे पर सबकुछ ठीक है या नहीं? यही सवाल तब भी उठा था जब क़रीब एक साल पहले सुब्रमण्यन ने प्रधानमंत्री के मुख्य सलाहकार पद से इस्तीफ़ा देने की घोषणा की थी। 

अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय की अध्यक्षता वाली परिषद ने फ़िलहाल सुब्रमण्यन के शोध के हर तर्क को नहीं नकारा है, लेकिन एक बयान में परिषद ने यह भी कहा है कि सही समय पर हर एक बात का खंडन किया जाएगा।

बता दें कि अरविंद सुब्रमण्यन ने नए शोध में दावा किया है कि 2011-2012 से 2016-17 तक हर साल क़रीब 2.5 प्रतिशत अंकों से भारत की जीडीपी को बढ़ा-जढ़ा कर पेश किया गया लगता है। पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार का निष्कर्ष था कि 2011 और 2016 के बीच 6.9% की वृद्धि के बजाय, वास्तविक विकास 3.5% और 5.5% के बीच होने की अधिक संभावना है।

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आधार वर्ष में बदलाव

सुब्रमण्यन के शोध में कहा गया है कि जीडीपी की गणना 2011-12 को आधार वर्ष मान कर करने में गड़बड़ी आई है। बता दें कि भारत ने अपनी जीडीपी की गणना के तरीक़े में बदलाव किया है। जनवरी 2015 में केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने जीडीपी के लिए आधार वर्ष 2004-2005 की जगह 2011-2012 कर दिया। 

प्रधानमंत्री आर्थिक विकास परिषद (पीएमईएसी) ने उस तरीक़े की ख़ामियों की ओर इशारा करते हुए बयान में कहा है कि सुब्रमण्यन ने ‘क्रॉस कंट्री रिग्रेशन’ का इस्तेमाल यह अनुमान लगाने के लिए किया कि भारत की जीडीपी क्या होनी चाहिए’। परिषद ने यह भी कहा कि जीडीपी का अनुमान लगाने के लिए क्रॉस-कंट्री रिग्रेशन का उपयोग करना सबसे 'असामान्य तरीक़ा' है। बता दें कि क्रॉस-कंट्री रिग्रेशन विश्लेषण एक सांख्यिकीय पद्धति है जिसमें कई देशों के डाटा के बड़े नमूनों का इस्तेमाल किया जाता है।

परिषद ने सुब्रमण्यन के शोध की आलोचना की और कहा कि उनका यह ‘असामान्य तरीक़ा’ उत्पादकता लाभ के आधार पर जीडीपी में वृद्धि को शामिल नहीं करता है। 

सुब्रमण्यन का दावा- 17 में से 11 संकेतक नकारात्मक

सुब्रमण्यन ने 2001-02 से 2017-2018 की अवधि के लिए 17 प्रमुख संकेतक भी बताए हैं जो ‘जीडीपी वृद्धि के साथ जुड़े हैं’। 2011 तक 17 में से 16 संकेतक सकारात्मक रूप से भारत की जीडीपी वृद्धि के साथ जुड़े थे, लेकिन यह उस वर्ष के बाद बदल जाता है। 2011 के बाद 17 में से 11 संकेतक ‘जीडीपी के साथ नकारात्मक रूप से जुड़ जाते’ हैं।

पीएमईएसी यानी परिषद ने बयान में कहा, ‘इस समय, यह महसूस किया जा रहा है कि भारत की सांख्यिकीय प्रणालियों की स्वतंत्रता और गुणवत्ता के संरक्षण के लिहाज़ से उचित अकादमिक बहस होनी चाहिए, न कि सनसनीखेज मामला बनाना चाहिए। इससे सभी पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अच्छी तरह परिचित हैं। ये निश्चित रूप से ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें डॉ. सुब्रमण्यन ने निश्चित रूप से उठाया होगा जब वह मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में काम कर रहे थे। हालाँकि उन्होंने ख़ुद स्वीकार किया है कि उन्होंने भारत के विकास के आँकड़ों को समझने के लिए समय लिया है और वह अभी भी अनिश्चित हैं।’

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सरकार के भीतर सुब्रमण्यन ने उठाया था मुद्दा

द इंडियन एक्सप्रेस के मंगलवार को प्रकाशित एक लेख में सुब्रमण्यन ने लिखा है कि कुछ स्तर की आलोचना स्वाभाविक रूप से इस मुद्दे पर उनकी भूमिका के इर्द-गिर्द होगी, क्योंकि तब वह मुख्य आर्थिक सलाहकार थे। इस मुद्दे पर उन्होंने कहा कि उनकी टीम ने ‘इन परस्पर विरोधी आर्थिक आँकड़ों को अक्सर सरकार के भीतर’ उठाया था। लेकिन उन्होंने कहा कि उन्हें सरकार के बाहर समय चाहिए था क्योंकि विस्तृत शोध के लिए महीनों लगता। 

सुब्रमण्यन ने क्यों दिया था इस्तीफ़ा?

अरविंद सुब्रमण्यन ने पिछले साल जून में मुख्य आर्थिक सलाहकार पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद सुब्रमण्यन को मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया था। उनका इस्तीफ़ा इस वजह से भी चर्चा में रहा था क्योंकि इसकी घोषणा तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने की थी। तब सुब्रमण्यन ने ही कहा था, ‘केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने अपने ब्लॉग में मेरे जाने की घोषणा की है। मेरी विदाई की डेडलाइन सितंबर की शुरुआत है, जब मेरे पोते का जन्म होगा। मुझे लगता है कि अगले एक से दो महीने में मेरी विदाई होगी, अभी तारीख़ तय नहीं हुई।’ 

मुख्य आर्थिक सलाहकार का कार्यकाल मई 2019 तक था। लेकिन अपने कार्यकाल के ख़त्म होने के क़रीब एक साल पहले उन्होंने इस्तीफ़ा क्यों दिया, इस पर भी सवाल उठे। हालाँकि तब उन्होंने कहा था कि उन्होंने महत्वपूर्ण निजी पारिवारिक कारणों से इस्तीफ़ा दिया है। उन्होंने कहा था, ‘मेरे पहले पोते का जन्म सितंबर के शुरू में होने वाला है। यह एक बड़ी वजह है मेरे पद छोड़ने की, साथ ही मैं अपनी पुरानी ज़िंदगी में लौटूँगा, जिसमें रिसर्च करना, लिखना और पढ़ाना शामिल है।’

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क़मर वहीद नक़वी
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