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गौतम अडानी कैसे बने दुनिया के तीसरे सबसे अमीर शख्स?

गौतम अडानी की संपत्ति जितनी बढ़ेगी उनके शेयर की कीमत भी उसी हिसाब से बढ़ना तय है। अगर देश की आबादी का बड़ा हिस्सा इस रास्ते पर चले और अपनी कमाई का कुछ हिस्सा लगाकर अपनी अपनी कमाई बढ़ाने की कोशिश करे तो उद्योगों के लिए पूंजी जुटाना आसान हो जाएगा और बदले में कमाई का हिस्सा ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच बंटेगा भी। 
आलोक जोशी

बीते हफ्ते की सबसे बड़ी खबरों में से एक थी भारत के और एशिया के सबसे अमीर इंसान गौतम अडानी का दुनिया के अमीरों की लिस्ट में तीसरे नंबर पर पहुंच जाना। खबर आई कि उन्होंने बिल गेट्स को पीछे छोड़ने के बाद अब फ्रेंच फैशन ब्रांड लुई वितॉं के मुखिया को पछाड़ कर यह मुकाम हासिल किया है। जिस दिन यह खबर आई, उस दिन बताया गया कि गौतम अडाणी की संपत्ति 137 अरब डॉलर हो गई है और अब दुनिया में सिर्फ दो लोग हैं जो उनसे ज्यादा अमीर हैं। यह थे टेस्ला के सीईओ एलन मस्क (251 अरब डॉलर) और एमेजॉन के जेफ बेजोस (153 अरब डॉलर)। 

कहा यह भी जा रहा था कि इसी रफ्तार से बढ़ते रहे तो वो जल्दी ही जेफ बेजोस को भी पछाड़कर दूसरे नंबर पर पहुंच जाएंगे। 

अडानी की संपत्ति और अमीरों की लिस्ट में उनका तेज़ी से ऊपर जाना पहली बार खबरों में नहीं था। इससे पहले इसी साल फरवरी में खबर आई थी कि उन्होंने संपत्ति के मामले में भारत के सबसे अमीर आदमी मुकेश अंबानी को पीछे छोड़ दिया है। हालांकि कुछ ही दिनों के बाद फिर मुकेश अंबानी इस सूची में वापस शिखर पर पहुंच गए। यह कोई हैरतअंगेज़ बात भी नहीं थी क्योंकि अमीरों की सूची में ऊपर नीचे होने का आधार शेयर बाज़ार में इनके शेयरों की कीमत ही होती है। इसलिए अगर दो लोगों की संपत्ति में कुछ ही फर्क रह गया हो तो फिर इस तरह कभी कोई ऊपर तो कभी नीचे चलता है। पिछले छह महीनों में दो तीन बार यह ऊपर नीचे का सिलसिला चला। 

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हैरतअंगेज़ बात यह है कि 3 जून को जब मुकेश अंबानी ने पिछली बार गौतम अडानी को पीछे छोड़ा तब उनकी संपत्ति थी 99.7 अरब डॉलर, जबकि उस दिन अडानी की संपत्ति थी इससे बस एक अरब डॉलर कम यानी 98.7 अरब डॉलर। जबकि ब्लूमबर्ग बिलियनेयर इंडेक्स के अनुसार 2020 की शुरुआत में मुकेश अंबानी की संपत्ति 59 अरब डॉलर और अडानी की संपत्ति सिर्फ 10 अरब डॉलर थी। यह आंकड़ा एक जनवरी 2020 का है। कोरोना महामारी के प्रकोप से ठीक पहले। 
यानी अडानी की संपत्ति में तेज़ बढ़त का असली सिलसिला उसके बाद ही शुरू हुआ है। इसी साल जनवरी के बाद से उनकी संपत्ति में साठ अरब डॉलर से ज्यादा की बढ़ोतरी हो चुकी है।
यह रफ्तार कितनी तेज़ है इसका अंदाजा लगाना हो तो यह समझिए कि जिस दिन (पिछले मंगलवार तीस अगस्त को) ब्लूमबर्ग ने अडानी को दुनिया में तीसरे नंबर का अमीर बताया उस दिन उनकी संपत्ति 137 अरब डॉलर की आंकी गई थी। लेकिन इसके तीन ही दिन बाद शुक्रवार को यह लिखे जाने तक फोर्ब्स रियल टाइम बिलियनेयर इंडेक्स में गौतम अडानी की संपत्ति दस अरब डॉलर बढ़कर 147 अरब के आंकड़े पर पहुंच चुकी थी। यानी एक दिन में तीन अरब डॉलर से ज्यादा का उछाल। हालांकि यहां एक विवाद भी खड़ा हो गया। 
Gautam Adani become third richest person in the world - Satya Hindi

टेलीग्राफ अखबार ने धनकुबेरों की संपत्ति का हिसाब लगाने वाली दोनों साइटों को खंगाला और यह पाया कि अडानी अभी दुनिया में तीसरे नंबर के अमीर बने हैं या नहीं इसपर मतभेद है। मतभेद की वजह यह है कि ब्लूमबर्ग 137 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ उन्हें दुनिया में तीसरे नंबर का अमीर बता रहा है, जबकि फोर्ब्स के हिसाब से उनकी संपत्ति इससे लगभग दस अरब डॉलर ज्यादा होने के बावजूद वो चौथे स्थान पर ही हैं। यही नहीं फोर्ब्स तो जेफ बेजोस को भी तीसरे पायदान पर ही रख रहा है। उसके हिसाब से सबसे ऊपर टेस्ला के एलन मस्क और उसके बाद लुई वितॉं के बर्नार्ड आर्नोल्ट हैं जिन्हें फ्रांस में लक्जरी रिटेल का बादशाह कहा जाता है। लेकिन यहां भी अडानी के लिए राहत की बात है कि अब वो जेफ बेजोस से सिर्फ लगभग पांच अरब डॉलर और बर्नार्ड से भी लगभग आठ अरब डॉलर ही पीछे हैं। 

अगर कोई चुनौती है तो वो एलन मस्क ही हैं जिनकी हैसियत लगभग 251 अरब डॉलर आंकी गई। 

Gautam Adani become third richest person in the world - Satya Hindi

इन दोनों लिस्टों में जो फर्क है वो तो हिसाब लगाने का तरीका अलग होने की वजह से है। लेकिन अमीरों की लिस्ट बनाने का काम मोटे तौर पर शेयर बाज़ार का ही कमाल है क्योंकि इसमें इन लोगों की लिस्टेड कंपनियों में इनकी हिस्सेदारी के बाज़ार भाव को ही जोड़ा जाता है। और शायद इसीलिए अडानी की संपत्ति का इस तेज़ी से बढ़ना कोई आश्चर्य नहीं है क्योंकि उनकी पहले से लिस्टेड छह कंपनियों और अभी बाज़ार में आई अडानी विल्मार ने पिछले डेढ़ साल में बेहद तेज़ बढ़त दिखाई है। अडानी समूह की कुल सात लिस्टेड कंपनियां हैं और इनके शेयरों में सौ डेढ़ सौ परसेंट से लेकर एक हज़ार परसेंट से ज्यादा तक का उछाल पिछले दो साल में आया है। गणित जोड़ने वालों ने हिसाब लगाया है कि भारत के बाज़ार में 2022 में आई कुल बढ़त का 79% हिस्सा सिर्फ अडानी की कंपनियों से आया है। 

अमीरों की इस लिस्ट में एक और खास बात है। मुकेश अंबानी अभी भले ही अडानी से काफी पिछड़ते दिख रहे हों, लेकिन ब्लूमबर्ग के मुताबिक दुनिया के दस बड़े अमीरों में अडानी के अलावा वो अकेले हैं जिनकी संपत्ति इस साल बढ़ी है। बाकी सभी की दौलत में कोरोना ने सेंध लगा दी। कहीं कम कहीं ज्यादा।

अंबानी के कारोबार के बढ़ने और उनके तौर-तरीकों पर वर्षों से सवाल उठते रहे हैं। अब गौतम अडानी पर भी उठ रहे हैं। जिस तेज़ी से उनका कारोबार फैल रहा है उसी तेज़ी से सवाल भी बढ़ रहे हैं। इस वक्त का सबसे बड़ा सवाल है अडानी समूह पर कर्ज को लेकर।

फिच रेटिंग की सहयोगी क्रेडिटसाइट्स ने एक रिपोर्ट में चेतावनी भी दी है कि हालात बहुत बिगड़े तो कर्ज पर डिफॉल्ट का डर भी हो सकता है। यह खतरा काफी गंभीर लगता है, खासकर यह देखते हुए कि मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज 2020 में ही खुद को नेट डेट फ्री या कर्जमुक्त घोषित कर चुकी है। लेकिन असलियत यह है कि मार्च 22 में भी रिलायंस इंडस्ट्रीज़ पर लगभग तीन लाख करोड़ रुपए का कर्ज था। 

उधर, अडानी समूह पर कर्ज का आंकड़ा लगभग दो लाख बीस हज़ार करोड़ रुपए का था। कर्ज की रकम कंपनी ने अपने कारोबार को ही बढ़ाने में लगाई है। अगर अडानी समूह इसी रफ्तार से बढ़ता रहा तो जो कर्ज आज बड़ा लग रहा है वही कल छोटा दिखने लगेगा। इसीलिए खतरे की घंटी बजानेवाली क्रेडिटसाइट्स की रिपोर्ट में ज्यादा चिंता इस बात पर दिखती है कि कंपनी में प्रोमोटर ज्यादा पैसा लगाने की बजाय कर्ज के भरोसे कारोबार बढ़ा रहे हैं। हालांकि उन्हें लगता है कि बैंकों और सरकार से कंपनी के रिश्ते आश्वस्ति का भाव देते हैं। 

दूसरी तरफ यह बात भी ध्यान देने लायक है कि अडानी समूह का कर्ज भले ही बढ़ा हो, उसकी कमाई के मुकाबले कर्ज का अनुपात काफी कम हुआ है, और इसे घटाने की कोशिशें भी चल रही हैं।

इस तरह के सवालों की लंबी फेहरिश्त बन सकती है। लेकिन दूसरी तरफ जिन लोगों ने तमाम आशंकाओं के बावजूद अडानी की कंपनियों में पैसा लगाया, पिछले दो सालों में उन्होंने धुआंधार कमाई की है। कुछ शेयर तो पंद्रह गुना से ज्यादा बढ़ गए। और यह ऐसे माहौल में जब कोरोना और लॉकडाउन की मार ज्यादातर कंपनियों पर पड़ रही थी। 

टीना फैक्टर 

अब जबकि बाज़ार से रूठे विदेशी निवेशकों के लौटने की उम्मीद बढ़ रही है तो इन निवेशकों के लिए शायद और अच्छे दिन आनेवाले हैं। स्टेट बैंक की एक रिसर्च रिपोर्ट का कहना है कि दुनिया के निवेशकों के सामने अब भारत का कोई विकल्प नहीं रह गया है, जिसे अंग्रेजी में टीना फैक्टर कहते हैं। उनके हिसाब से पश्चिमी दुनिया से आनेवाला पैसा इमर्जिंग मार्केट्स में भारत को नजरंदाज़ नहीं कर सकता। 

दुनिया की सबसे नामी गिरामी कंसल्टिंग फर्म मैकिंजी के सीईओ बॉब स्टर्नफेल्स का कहना है कि अब भारत का दशक नहीं भारत की शताब्दी आ रही है। यानी भारत तरक्की की एक लंबी छलांग के लिए तैयार खड़ा है। जाहिर है इसमें भारत की प्रतिभाओं के लिए दुनिया के दरवाजे खुलना भी शामिल है और दुनिया भर से पैसा लगाने और कारोबार करने की चाहत रखनेवाले उद्योगपतियों का भारत आना भी।

वेल्थ ऑफ नेशंस

ऐसे में राजनीतिक अर्थशास्त्र के पितामह कहलाने वाले एडम स्मिथ की मशहूर किताब वेल्थ ऑफ नेशंस याद आती है। 1776 में आई यह किताब औद्योगिक पूंजीवाद का सैद्धांतिक आधार तैयार करती है। उन्होंने लिखा था कि अपना भला करने की हमारी व्यक्तिगत इच्छा का फल पूरे समाज के लिए लाभदायक होता है। इसके पीछे जो शक्ति काम करती है उसे उन्होंने इनविजिबल हैंड या अदृश्य हाथ कहा था। इसपर विवाद हो सकता है लेकिन आज भारत में पांच परसेंट से ज्यादा लोग शेयर बाज़ार में पैसा नहीं लगाते हैं। उनमें से भी एक बहुत छोटा हिस्सा है जिसने अडानी अंबानी की कंपनियों में पैसा लगाया और कमाया। 

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अडानी की संपत्ति जितनी बढ़ेगी उनके शेयर की कीमत भी उसी हिसाब से बढ़ना तय है। अगर देश की आबादी का बड़ा हिस्सा इस रास्ते पर चले और अपनी कमाई का कुछ हिस्सा लगाकर अपनी अपनी कमाई बढ़ाने की कोशिश करे तो उद्योगों के लिए पूंजी जुटाना आसान हो जाएगा और बदले में कमाई का हिस्सा ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच बंटेगा भी। 

इस रास्ते को आजमाया जा सकता है। या पुराने अंदाज में हर उस आदमी पर सवाल उठाया जा सकता है जो अपनी कमाई बढ़ाने के तरीके तलाश रहा है। कहने का मतलब यह कतई नहीं है कि जो गलत है उसे गलत न कहा जाए। लेकिन क्या गलत है और क्या सही, इसकी जांच परख बारीकी से होनी चाहिए और रास्ते सबके लिए बराबर खुलने चाहिए। 

हिंदुस्तान से साभार। 
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