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फाइल फोटो

बहिष्कार के बाद भी चीन से आयात एक खरब डॉलर कैसे पहुँचा?

जिस चीन को कभी 'लाल आँख' दिखाने की बात कही गई और जिन चीनी सामानों का समय-समय पर बहिष्कार किया जाता रहा है, उसी चीन के साथ भारत में आयात रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया। चीन से भारत में आयात 100 बिलियन डॉलर यानी एक ख़रब डॉलर से ज़्यादा का हो गया। इस मामले में अब अमेरिका भी चीन से पीछे हो गया है। यानी दुनिया में सबसे ज़्यादा जिस देश से भारत में आयात होता है, वह देश अब चीन है। 

ऐसा तब है जब भारत में बार-बार चीन के सामानों के बहिष्कार की चेतावनी दी जाती रही है। केंद्र का चीन को लेकर रुख किस तरह का रहा है और किस तरह से बहिष्कार का असर रहा है, यह जानने से पहले यह जान लें कि भारत और चीन के बीच व्यापार की क्या स्थिति है। 

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दरअसल, थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव यानी जीटीआरआई ने आँकड़ा जारी किया है कि वित्त वर्ष 2024 में चीन से आयात 100 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया है। इसके साथ ही चीन दो साल बाद फिर से भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है। चीन ने अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है। इससे पहले वित्त वर्ष 2021 में चीन सबसे बड़ा भागीदार था, लेकिन वित्त वर्ष 2022 व 23 में अमेरिका आगे निकल गया था। 

जीटीआरआई के आँकड़ों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2024 में चीन के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार 118.4 बिलियन डॉलर का रहा। आयात 3.24 प्रतिशत बढ़कर 101.7 बिलियन डॉलर हो गया और वित्त वर्ष 2023 की तुलना में वित्त वर्ष 24 में निर्यात 8.7 प्रतिशत बढ़कर 16.67 बिलियन डॉलर हो गया।

हालाँकि इस एक वित्त वर्ष में आयात की तुलना में निर्यात में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन पिछले पाँच सालों में स्थिति इसके उलट रही है और भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा काफी ज़्यादा बढ़ा है। 
2019 और 2024 के बीच चीन को भारत से निर्यात में 0.6 प्रतिशत की मामूली गिरावट देखी गई। यह 16.75 बिलियन डॉलर से घटकर 16.66 बिलियन डॉलर हो गया था। जबकि चीन से आयात 44.7 प्रतिशत बढ़कर 70.32 बिलियन डॉलर से 101.75 बिलियन डॉलर हो गया।

इसके उलट भारत-अमेरिका व्यापार कम हुआ है। पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में निर्यात 1.32 प्रतिशत घटकर 77.5 बिलियन डॉलर हुआ है जबकि आयात भी 20 प्रतिशत घटकर 40.8 अरब डॉलर रह गया। 2024 में भारत-अमेरिका दोतरफा व्यापार 118.3 बिलियन डॉलर पर आ गया।

पीसी के कुल आयात का 90% चीन से

भारत में चीन से पीसी आयात को लेकर पिछले महीने अप्रैल में ही एक बड़ी ख़बर आई थी। देश में पीसी यानी पर्सनल कम्प्यूटर और लैपटॉप का जितना आयात जनवरी में हुआ उसका 90 फ़ीसदी तो 'मेड इन चीन' था। उससे एक महीने पहले यानी दिसंबर में यह 89 फीसदी था। नवंबर में यह 83 फ़ीसदी था। तो क्या भारत पर्सनल कम्प्यूटर और लैपटॉप के लिए पूरी तरह चीन से आयात पर निर्भर है? इससे भी बड़ा सवाल तो यह है कि पिछले कुछ वर्षों में बात-बात में चीन के सामान का बहिष्कार करने, हैशटैग चलाने और चीन को लाखों करोड़ डॉलर का नुक़सान पहुँचाने के दावे का क्या हुआ? 

india imports from china reached 100 billion dollars top trade partner - Satya Hindi

केंद्र द्वारा लगातार 'मेड इन इंडिया' का अभियान चलाए जाने के बाद भी चीन से आयात पर इतनी निर्भरता एक दूसरी ही कहानी कहती है। चीन से आयात की ऐसी स्थिति तब है जब सोशल मीडिया पर बहिष्कार का अभियान चलाया जाता है। ख़ासकर, गलवान में संघर्ष के बाद तो बड़े पैमाने पर इसका अभियान चलाया गया था। गलवान घाटी लद्दाख और अक्साई चीन के बीच स्थित है। यहाँ पर एलएसी अक्साई चीन को भारत से अलग करती है। जून 2020 में इसी गलवान घाटी में हिंसक झड़प हुई थी जब 20 भारतीय सैनिक देश के लिए शहीद हो गए थे और 40 से अधिक चीनी सैनिकों के मारे जाने या घायल होने के दावे कई मीडिया रिपोर्टों में किए गए थे।

गलवान संघर्ष के बाद आर्थिक बहिष्कार की मांग उठी थी। बीजेपी के कई नेताओं और समर्थकों ने चीनी सामानों के बहिष्कार की मुहिम चलाई थी और उसे राष्ट्रवाद से जोड़ दिया था। सोशल मीडिया पर चीनी मोबाइल फ़ोन, टेलीविज़न, दूरसंचार उपकरण और दूसरे उपकरणों के बहिष्कार की अपील की गई थी। 

चीन विवाद के बाद सबसे पहले बड़े नेताओं में तत्कालीन उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने स्वदेशी की बात की थी। तब सरकारी खरीद पोर्टल पर यह बताना अनिवार्य किया गया था कि उत्पाद किस देश का बना है।

भारत सरकार ने चीन के ऐप पर प्रतिबंध लगाने के साथ बिजली उपकरणों की बगैर पूर्व अनुमति आयात प्रतिबंधित कर दिया था। बिजली मीटरों के ठेके रद्द कर दिए गए थे। स्मार्ट टीवी के आयात पर रोक लगा दी गई थी।

गलवान संघर्ष के बाद पश्चिम बंगाल के बीजेपी नेता जॉय बनर्जी ने लोगों से अपील की थी कि वे चीनी उत्पादों का बहिष्कार करें। बनर्जी ने कहा था कि जो लोग इनका इस्तेमाल जारी रखते हैं, उनकी टांगें तोड़ दी जानी चाहिए और उनके घरों में तुरंत तोड़फोड़ की जानी चाहिए। 

उसी बीच सरकार ने कई चीनी ऐप को प्रतिबंधित कर दिया था और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश क़ानून में संशोधन कर चीनी प्रत्यक्ष निवेश पर एक तरह से रोक लगा दी थी। लेकिन इसका नतीजा क्या हुआ? क्या व्यापार कम भी हुआ?

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2022 में आई रिपोर्ट में कहा गया था कि आयात बढ़ गया था। खुद सरकार ने ही यह माना था। तत्कालीन राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल द्वारा पेश किए गए आँकड़ों के मुताबिक़, गलवान संघर्ष वाले वर्ष के दौरान भारत में 2020-21 में चीन से कुल आयात 65.21 बिलियन डॉलर का था जो कि 2021-22 में यह बढ़कर 94.57 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया था। मोटे तौर पर कहें तो एक साल में आयात 45% तक बढ़ गया। आयात से मतलब है कि चीन में बने हुए सामान भारत में मंगाये जा रहे हैं। तो फिर चीनी सामानों के बहिष्कार का क्या हुआ?

बहिष्कार की बात छोड़ भी दें तो आयात और निर्यात के बीच खाई को देखिए। ऐसा लगता है कि मानो चीन ने भारत के सामानों का बहिष्कार कर रखा हो! 2022 के आँकड़े को ही देख लें। अप्रैल से अक्टूबर, 2022 के बीच चीन से कुल आयात 60.27 बिलियन डॉलर का था। जबकि अप्रैल से अक्टूबर, 2022 के बीच भारत से चीन को निर्यात सिर्फ 8.77 बिलियन डॉलर का हो पाया था। कहीं चीन ने तो आर्थिक बहिष्कार नहीं कर रखा है?

अब यदि व्यापार की बात की जाए तो भी बहिष्कार की स्थिति नहीं दिखती है। भारत-चीन के बीच कुल व्यापार 2020-21 में 86.39 बिलियन डॉलर था जो 2021-22 में बढ़कर 115.83 बिलियन डॉलर हो गया था। फिर बहिष्कार कहाँ था?

2023 के बहिष्कार का नतीजा क्या?

पिछले साल यानी 2023 में भी ऐसा ही अभियान शुरू किया गया था। व्यापारियों के संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स यानी सीएआईटी ने व्यापारियों से त्योहारी सीजन में चीनी सामानों का बहिष्कार करने का आग्रह किया था, जिससे व्यापारियों और आयातकों द्वारा त्योहारी और अन्य सामानों का आयात न करने के कारण चीन को 1 लाख करोड़ रुपये का व्यापार नुकसान उठाना पड़ेगा। 

क्या बहिष्कार एक तरह से बच्चों के हाथ में झुनझुना पकड़ाने जैसा नहीं है? क्या बहिष्कार सोशल मीडिया पर 'उग्र राष्ट्रवादियों' के हाथ में पकड़ाने वाला सिर्फ़ एक हथियार नहीं है जिससे कि वे सोशल मीडिया पर ही लड़ते रहें और मुद्दा शांत होते ही बहिष्कार का 'भूत' भी उतर जाए?

क्या यह संभव है कि जो भारतीय उद्योग चीनी सामान पर निर्भर हों, उस सामान का आयात बंद कर दिया जाए? भारत चीन से खिलौने, बिजली की लैंप, इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद, कंप्यूटर के पार्ट्स, मोटर गाड़ी और मोटर साइकिल के कल पुर्जे, उर्वरक, एंटीबायोटिक्स, दवाएं, व मोबाइल फ़ोन खरीदता है। 

सबसे बड़ी बात यह है कि इलेक्ट्रॉनिक्स, मोटर कार, मोटर साइकिल, मोबाइल फ़ोन, उवर्रक व दवा उद्योग पूरी तरह चीनी आयात पर निर्भर है। चीन से भारत इंटरमीडिएट प्रोडक्ट्स लेता है, यानी वे उत्पाद जिनके आधार पर कोई दूसरा उत्पाद तैयार होता है। इनमें दवा व वाहन प्रमुख हैं।

इसके अलावा मोबाइल और कंप्यूटर उद्योग तो मोटे तौर पर चीनी कल-पुर्जों को जोड़ कर नया उत्पाद बनाने तक सीमित है। इन चीनी कल-पुर्जों के बिना इन उद्योगों को चलाना बेहद मुश्किल होगा। तो क्या आयात पर निर्भरता कम होना मुश्किल है?

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क़मर वहीद नक़वी
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