कोरोना संकट और लॉकडाउन के बाद से अधिकतर भारतीयों के सामने आर्थिक तंगी की रिपोर्टें आती रही हैं और अब जीवन बीमा को लेकर एक ऐसी ही रिपोर्ट है जिससे इस सवाल का जवाब मिलता है कि क्या सच में लोगों के सामने आर्थिक संकट रहा।
एक रिपोर्ट के अनुसार 2021-22 में पॉलिसीधारकों द्वारा 2.30 करोड़ से अधिक जीवन बीमा पॉलिसियों को मैच्योरिटी से बहुत पहले सरेंडर कर दिया गया था। यह 2020-21 में समय से पहले सरेंडर की गई पॉलिसियों 69.78 लाख के तीन गुना से अधिक है। भारत में कोरोना संक्रमण का पहला मामला 2020 में ही जनवरी महीने में मिला था और मार्च 2020 में बेहद सख़्त लॉकडाउन लगाया गया था।
यह वही लॉकडाउन था जिसने देश की आर्थिक स्थिति को काफ़ी ज़्यादा नुक़सान पहुँचाया। बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियाँ जाने की रिपोर्टें आती रहीं। लोगों की आमदनी कम होने की ख़बरें आईं। रिपोर्टें आईं कि मध्य वर्ग को राशन की लाइन में लगने को मजबूर होना पड़ा। महामारी और लॉकडाउन ने गरीबों को और ग़रीबी में धकेल दिया। नौकरियों के हालात तो ऐसे हो गए कि कामकाजी क़रीब आधी आबादी ने नौकरी ढूंढना ही छोड़ दिया। महामारी में चिकित्सा आपात स्थितियों के कारण खर्चों में भी वृद्धि हुई। संकट को कम करने के लिए, सरकार ने ऋणों पर मोरेटोरियम यानी वसूली स्थगन और ईपीएफ शेष से आंशिक निकासी सहित कई उपायों की घोषणा की। लेकिन इसके बावजूद 2021-22 में भी इस महामारी के बने रहने के कारण कई लोगों ने अपनी जीवन बीमा पॉलिसियों को समय से पहले बेचना शुरू कर दिया ताकि उन्हें पैसे मिल सकें।
बीमाकर्ताओं की पॉलिसी सरेंडर करने पर इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट दी है। इसमें कहा गया है कि सरकारी जीवन बीमा निगम कंपनियों ने पिछले वर्ष की तुलना में 2021-22 में सरेंडर करने वाली पॉलिसियों की संख्या में तेज उछाल देखा। जीवन बीमा कारोबार में एलआईसी की बाजार हिस्सेदारी करीब 64 फ़ीसदी है।
अन्य बीमा कंपनियों की भी पॉलिसियों को समयपूर्व सरेंडर किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021-22 में कुल 2 करोड़ 30 लाख से ज़्यादा पॉलिसी सरेंडर की गईं। यह 2020-21 में 69 लाख 78 हज़ार से क़रीब 230 फ़ीसदी ज़्यादा है।
यदि सिर्फ़ एलआईसी की बात करें तो 2021-22 में कुल 2 करोड़ 12 लाख से ज़्यादा पॉलिसी सरेंडर की गईं। यह एक साल पहले 53 लाख 35 हज़ार से क़रीब 300 फ़ीसदी ज़्यादा है।
माना जाता है कि ऐसा लोगों ने अपने खर्च की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए किया। यह वह समय था जब कोरोना और लॉकडाउन की वजह से लोगों की आय पर ज़बरदस्त असर पड़ने की रिपोर्टें आ रही थीं।
क्या इस ख़तरे का अंदाज़ा लगाया जा सकता है जिसमें कामकाजी आधी से ज़्यादा आबादी नौकरी ढूंढना ही छोड़ दे? अपने लिए उचित नौकरी नहीं मिलने की वजह से निराश होकर ऐसे लोगों ने काम की तलाश ही छोड़ दी है। ऐसे लोगों की संख्या लगातार देश में बढ़ती जा रही है। यानी ये लोग श्रम बल से पूरी तरह बाहर हो गए हैं। इसमें ख़ासकर महिलाओं की संख्या ज़्यादा है। मुंबई में एक निजी शोध फर्म सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई ने इसी साल अप्रैल में यह रिपोर्ट जारी की है।
बेरोजगारी
पिछले साल जुलाई में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई की रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ़ मई महीने में 1.5 करोड़ से अधिक भारतीयों की नौकरी चली गई थी। मई ही वह महीना था जब कोरोना की दूसरी लहर चरम पर थी।
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आमदनी घटी
कोरोना संकट ने बड़ी संख्या में लोगों के सामने भूख का संकट खड़ा कर दिया था और यही स्थिति राशन के लिए लगने वाली लंबी-लंबी लाइनों में दिख रही थी। यह संकट इसलिए आया क्योंकि एक तो बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियाँ गईं, जिनकी नौकरी बची भी उनकी तनख्वाह कम हो गई, दूसरी आमदनी पर निर्भर लोगों की आय भी घटी और जो कुछ रुपये बचत के थे वे बीमारों के इलाज में खर्च हो गए। सीएमआईई के एक सर्वे की रिपोर्ट में कहा गया था कि 97 फ़ीसदी लोगों की आय घट गई थी।
पिछले साल आई प्यू रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी ने भारत में 3 करोड़ 20 लाख लोगों को मध्य वर्ग से दूर कर दिया। इसने कहा था कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कोरोना महामारी और लॉकडाउन में बड़े पैमाने पर नौकरियाँ गईं और इसने लाखों लोगों को ग़रीबी में धकेल दिया।
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