दिल्ली के गलियारों में चहल-पहल या बेंगलुरु की चमचमाती तकनीकी गलियों में कोई भी सोच सकता है कि भारत की अर्थव्यवस्था कोई रॉकेट है, जो सुपरपावर की ओर सरपट दौड़ रहा है।
भारत का आर्थिक मायाजाल: बढ़े चढ़े आंकड़ों के रास्ते आ रहीं रोजमर्रा की मुसीबतें!
- अर्थतंत्र
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- 20 Sep, 2025

चमकदार आर्थिक आंकड़ों के पीछे भारत की असलियत छुपी है- जहाँ आम लोग रोज़मर्रा की महंगाई और बेरोज़गारी से जूझ रहे हैं। क्या है भारत के आर्थिक मायाजाल की सच्चाई?
सरकारी आंकड़े तो मानो रंगीन चश्मों से देखते हैं: 2025-26 की पहली तिमाही में जीडीपी यानी देश की अर्थव्यवस्था 7.8% की रफ्तार से बढ़ी, और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) कहता है कि 2025 में हमारी अर्थव्यवस्था 4.19 लाख करोड़ डॉलर की हो गई।
लेकिन अर्थशास्त्रियों की खुसर-पुसर, और कभी-कभी चिल्ल-पों, बताती है कि ये चमक-दमक कोई स्थायी रोशनी नहीं, बल्कि ऐसी लौ है जो रास्ता भटकाकर दलदल में ले जाती है।
सितंबर 2025 में इंटरनेट पर एक तीखा सा संदेश वायरल हुआ, जिसमें भारत पर 2015 से आर्थिक आंकड़ों को “मसाला लगाकर” परोसने का इल्ज़ाम लगा।
कहा गया कि जीडीपी 2 लाख करोड़ डॉलर तक फुला दी गयी है! नोटबंदी को आर्थिक भूकंप और जीएसटी को लागू करने में गड़बड़झाला बताया। साथ ही ये दावा कि हमारी अर्थव्यवस्था विदेशों में पसीना बहाने वाले भारतीयों की कमाई पर टिकी है। भ्रष्टाचार को रोज़मर्रा का “गुप्त कर” बताया, और तंज कसा कि भारतीय अपनी धार्मिकता को समृद्धि से ज़्यादा प्यार करते हैं।