सरकारी बैंकों ने पिछले 10 साल में 12 लाख करोड़ रुपये के ख़राब कर्ज को राइट ऑफ़ कर दिया। एक तरह से ये कर्ज डूब गए। ये ख़राब कर्ज नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स यानी एनपीए हैं। ऐसे हालात में अब एनपीए के मामले में बैंकों की स्थिति सुधरती दिख रही है और एनपीए 9.11 फीसदी से घटकर अब 2.58% हो गया है। इसके साथ ही, बैंकों ने 1629 ऐसे लोगों और कंपनियों को चिह्नित किया है जो विलफुल डिफॉल्टर हैं। यानी ये लोग जानबूझकर कर्ज नहीं चुका रहे। इन पर 31 मार्च 2025 तक 1.62 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा का बकाया है। यह जानकारी वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने संसद में दी है।

समझें, 12 लाख करोड़ कैसे डूबे

दरअसल, सरकारी बैंकों ने 12 लाख करोड़ के कर्ज को राइट ऑफ़ कर दिया है। इसको आसान भाषा में कर्ज माफी कह सकते हैं। इस कर्ज माफी का मतलब यह नहीं है कि कर्जदार को पूरी तरह माफ कर दिया गया। बैंक अपने खातों को साफ़ करने और साफ़ सुथरा दिखाने के लिए ख़राब कर्ज यानी एनपीए को अपनी बैलेंस शीट से हटाते हैं। लेकिन, कर्जदार को अभी भी वह पैसा चुकाना होता है। बैंक इसके लिए कोर्ट, डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल यानी डीआरटी, या इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड यानी आईबीसी जैसे रास्तों से पैसा वसूलने की कोशिश करते हैं। हालाँकि, वसूली की राशि बहुत कम होती है।
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एनपीए में कमी के क्या मायने?

संसद में वित्त मंत्रालय ने बताया है कि पिछले एक दशक में बैंकों का एनपीए 9.11% था, जो अब मार्च 2025 तक घटकर 2.58% हो गया है। इसका मतलब है कि बैंकों के पास अब कम खराब कर्ज हैं, और उनकी वित्तीय स्थिति मजबूत हो रही है। एनपीए वह कर्ज होता है, जिसका ब्याज या मूलधन 90 दिन से ज्यादा समय तक नहीं चुकाया जाता। सरकार का कहना है कि बैंकों ने कर्ज वसूली के लिए कर्ज को री-स्ट्रक्चर करने, संपत्ति बेचने, और कानूनी कार्रवाई करने जैसे कई कदम उठाए।

1629 विलफुल डिफॉल्टर्स पर कार्रवाई

विलफुल डिफॉल्टर वे लोग या कंपनियां हैं जो कर्ज चुकाने की क्षमता होने के बावजूद जानबूझकर पैसा नहीं लौटाते। 31 मार्च 2025 तक इन 1629 डिफॉल्टर्स पर 1.62 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज बकाया है। इनके नाम CIBIL जैसी क्रेडिट इन्फॉर्मेशन कंपनियों की वेबसाइट पर सार्वजनिक किए जाते हैं। बैंकों ने इनके खिलाफ कई कदम उठाए हैं-
  • नया कर्ज नहीं: विलफुल डिफॉल्टर्स को एक साल तक कोई नया कर्ज नहीं मिलेगा।
  • नये कारोबार पर रोक: इन्हें पांच साल तक नया व्यवसाय शुरू करने की अनुमति नहीं होगी।
  • कानूनी कार्रवाई: बैंकों को आपराधिक मुकदमे दर्ज करने के निर्देश दिए गए हैं।
  • संपत्ति जब्ती: ईडी ने 9 भगोड़े आर्थिक अपराधियों की 15,298 करोड़ रुपये की संपत्ति पीएमएलए के तहत और 750 करोड़ रुपये की संपत्ति एफ़ईओए के तहत जब्त की है।
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बड़े डिफॉल्टर्स कौन हैं?

हालाँकि 2025 की लिस्ट में कोई विशेष नाम नहीं बताए गए, लेकिन पहले की रिपोर्टों में मेहुल चोकसी की गीतांजलि जेम्स (7,848 करोड़ रुपये), एरा इंफ्रा इंजीनियरिंग (5,879 करोड़ रुपये), और री अगरो लिमिटेड (4,803 करोड़ रुपये) जैसे बड़े डिफॉल्टर्स का जिक्र था। ये कंपनियां बैंकों से भारी कर्ज लेकर उसे नहीं चुका रही हैं।

सोशल मीडिया पर लोग इस मुद्दे पर नाराजगी जता रहे हैं। कई यूजरों का कहना है कि किसानों या छोटे कारोबारियों जैसे छोटे कर्जदारों को थोड़ा सा कर्ज न चुकाने पर सख्त कार्रवाई का सामना करना पड़ता है, लेकिन बड़े डिफॉल्टर्स आसानी से बच निकलते हैं। लोग पूछ रहे हैं कि इतने बड़े कर्ज बिना जांच के कैसे दिए गए और बैंकों ने इन्हें रोकने के लिए पहले क्या किया?
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सरकार, आरबीआई के क़दम

भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई ने 2023 में नए नियम बनाए, जिनमें विलफुल डिफॉल्टर को घोषित करने से पहले उसे अपनी बात रखने का मौक़ा देना ज़रूरी है। साथ ही छह महीने के अंदर डिफॉल्टर की पहचान करनी होगी। सरकार का कहना है कि वह बैंकों को मजबूत करने और कर्ज वसूली को तेज करने के लिए काम कर रही है। लेकिन, विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक बड़े डिफॉल्टर्स से पूरी वसूली नहीं होती और कर्ज देने की प्रक्रिया को और पारदर्शी नहीं किया जाता, तब तक यह समस्या पूरी तरह खत्म नहीं होगी।

12 लाख करोड़ रुपये का कर्ज माफ होना और 1.62 लाख करोड़ रुपये का बकाया दिखाता है कि बैंकिंग सेक्टर में अभी भी कई चुनौतियां हैं। हालांकि, एनपीए में कमी एक सकारात्मक संकेत है। सरकार और बैंकों को चाहिए कि वे कर्ज वसूली को और तेज करें और भविष्य में ऐसी स्थिति को रोकने के लिए कड़े नियम लागू करें। आम जनता को उम्मीद है कि उनकी मेहनत की कमाई का दुरुपयोग रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे।