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यह मुफ्तखोरी देश को बर्बाद करके छोड़ेगी

पिछले दिनों पांच राज्यों के चुनाव में वोटरों को लुभाने के तमाम तरीके अपनाये गये। लेकिन सबसे ज्यादा वादे खैरात के हुए। मुफ्त में जनता को काफी कुछ देने की घोषणाएं की गईं। पानी-बिजली, लैपटॉप, साइकलें, नकदी और भी काफी कुछ। पहले भी कई तरह की घोषणाएं होती रहीं और लोक सभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने तो नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी की सिफारिश पर 8,000 रुपये का बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा की। एक पार्टी ने तो लड़कियों की शादी में मंगल सूत्र तो एक अन्य ने सोने के लॉकेट का वादा किया था। यानी सरकारी खजाने को लुटाने का पूरा इंतजाम रहा। नतीजा सामने है, सारे राज्य कर्ज में डूबे हुए हैं। 

पंजाब में जहां राज्य सरकार पहले से ही 2.8 लाख करोड़ रुपये के कर्ज में डूबी हुई है, वहां भी मुफ्त बिजली-पानी की घोषणा हुई और महिलाओं के लिए हजार रुपये प्रति माह नकदी देने की भी घोषणा की गई है। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के सफल फॉर्मूले को वहां भी अपनाया। 300 यूनिट बिजली फ्री की घोषणा को लागू भी कर दिया गया जबकि वहां बिजली की भारी किल्लत है और अभी हाल में ही वहां 8 घंटे तक की कटौती हुई है। इसका कारण यह बताया गया कि कोयले का संकट है। 

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कोयला उत्पादक कंपनियां कह रही हैं कि बिजली उत्पादकों के पास उनका 6,000 करोड़ रुपया बाकी है। बिजली उत्पादक तो और भी भयानक दृश्य पेश कर रहे हैं। उनका कहना है कि बिजली बेचने वाली कंपनियों पर उनका हजारों करोड़ रुपये का बकाया है और उनकी हालत खस्ता है। यानी आने वाले समय में हालत और बिगड़ेगी। वे बिजली की आपूर्ति नहीं कर पाएंगी।इतना ही नहीं उनके पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने के पैसे नहीं हैं।उधर, कोल इंडिया भी चेतावनी दे रहा है कि उसके खदान आंशिक रूप से बंद हो सकते हैं क्योंकि उसके ग्राहक बिल नहीं चुका रहे हैं। बिजली के इस कारोबार में खुदरा उपभोक्ता, बिजली बेचने वाली कंपनियां, बिजली उत्पादक कंपनियां और कोयला उत्पादक कंपनियों का एक चेन बना हुआ है जिसमें एक भी बड़ा डिफॉल्ट उसे तोड़ने के लिए काफी है। 

पंजाब में मुफ्तखोरी की परंपरा पुरानी है और यहां पहले से ही मुफ्त की बिजली दी जा रही है। इसके अलावा फर्टिलाइजर सब्सिडी भी वहां बरसों से दी जाती रही है। इसका ही नतीजा रहा है कि राज्य कर्ज के दलदल में फंस गया है। नये मुख्यमंत्री इसे निकालने की बजाय उसे और धंसा रहे हैं। इसके अलावा यह राज्य एमएसपी का बड़ा हिस्सा ले लेता है और इसके लिए किसान गेहूं-चावल की बहुत ज्यादा खेती करने लगे। वे खूब फर्टिलाइजर इस्तेमाल करते हैं जो भारी सब्सिडी पर आधारित है। और साथ ही बड़े-बड़े ट्यूबवेल लगाकर जमीन के अंदर के पानी का अंधाधुंध दोहन कर रहे है जिससे भूजल स्तर खतरनाक स्तर तक नीचे जा चुका है। पांच-सात वर्षों में वहां तो खेती के लायक पानी भी नहीं मिलेगा। 

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने पानी भी मुफ्त देने की घोषणा की थी और उसे लागू भी किया। महानगर में पानी की आपूर्ति की व्यवस्था दिल्ली जल बोर्ड करता है। यह लगातार घाटे में चल रहा है और यह बोर्ड हर साल औसतन 660 करोड़ रुपये के घाटे से जूझ रहा है। बताते हैं कि उस पर करीब 54,000 करोड़ रुपये का बकाया है। इसकी हालत खस्ता है और यह दिन गिन रहा है।इसका ही नतीजा है कि दिल्ली की कम से कम दस प्रतिशत आबादी को पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। बहुत से समृद्ध इलाकों में भी पानी टैंकरों से पहुंचाया जाता है क्योंकि वहां सप्लाई बहुत कम है। लेकिन दिल्ली कोई अपवाद नहीं है।

कई राज्यों में ऐसी हालत है। पंजाब जिसकी अभी सबसे ज्यादा चर्चा है, वहां की हालत बहुत खराब है। वहां अभी पानी के अलावा बुजुर्ग पेंशन, विधवा पेंशन वगैरह 500 रुपये से बढ़ाकर 2500 रुपये करने का वादा है। इन सभी के पैसे कहां से आएंगे ? बातों के धनी और कुतर्क में विशेषज्ञ अरविंद केजरीवाल के पास इसका जवाब है कि भ्रष्टाचार रोक कर इसकी भरपाई हो सकती है। लेकिन यह कोई ठोस जवाब नहीं है। 

सच यह है कि आलोचकों को जवाब देने के लिए ये तर्क गढ़े गये हैं। ऐसा तो नहीं है कि दिल्ली भ्रष्टाचार से मुक्त हो गई है, यहां यह बदस्तूर जारी है। यह बात जुदा है कि दिल्ली बेहद छोटा सा राज्य है जिसकी आमदनी अपेक्षाकृत कहीं ज्यादा है। यहां खैरात थोड़ी बहुत चल भी जाती है लेकिन यहां भी सरकार को घाटे का बजट बनाना ही पड़ा है। इस बार के बजट में राजस्व घाटा एक प्रतिशत से ज्यादा (9194 करोड़ रुपये) दिखाया गया है जिसका असर अगले साल दिखाई देगा।अन्य राज्यों में उत्तर प्रदेश भी है जिस पर कर्ज बढ़कर 6.1 लाख करोड़ रुपये हो गया है। नन्हें से उत्तराखंड पर 68,000 करोड़ रुपये का कर्ज है और उसके पास अतिरिक्त राजस्व के स्रोत बहुत कम हैं। 

उत्तर प्रदेश में भी इस कर्ज को घटाने के लिए कोई ठोस उपाय होता नहीं दिख रहा है। 24 करोड़ की विशाल जनसंख्या वाले इस प्रदेश में सरकार प्रशासन चलाने पर भारी खर्च करती है। यह खर्च हर साल बढ़ता जाता है लेकिन सरकार की कमाई नहीं। इस बारे में कोई सोच नहीं है कि कर्ज कैसे कम किया जाये। चुनाव में यहां भी लुभावने आर्थिक वादे किये गये थे। हर साल गैस के दो फ्री सिलेंडर, लड़कियों की शादी में 25,000 रुपये की रकम जैसे वादों के अलावा छोटे-छोटे और भी वादे हैं। अगर इन वादों को लागू किया जायेगा तो सरकार पर 50,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा जिसकी भरपाई कैसे होगी, यह स्पष्ट नहीं है।

इस समय उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में मुफ्त में अनाज देने की परंपरा चल रही है। केन्द्र सरकार ने मुफ्त अनाज देने की स्कीम काफी वर्षों से चला रखी है और अन्य राज्य भी ऐसा ही करते हैं। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत पांच किलो अनाज देश के 80 करोड़ लोगों को देने की योजना कोविड महामारी में तो ठीक थी लेकिन सामान्य परिस्थितियों में कतई नहीं। इस अनाज का बहुत बड़ा हिस्सा लाभार्थी बाजार में बेच देते हैं। इस पर आ रहे खर्च को भी देखना चाहिए जो सितंबर 2022 तक कुल 3.40 लाख करोड़ रुपये बैठेगी। यह राशि देश के रक्षा बजट से थोड़ी ही कम है। 

समय आ गया है कि केन्द्र सरकार इस योजना से पल्ला झाड़ ले या फिर अनाज की मात्रा घटा दे। इस तरह से सारे देश को बिठाकर खिलाने से कोई समस्या हल नहीं होती है। इस सारे खर्च का भुगतान इस देश का मिडिल क्लास करता है जिसे कोई सरकारी मदद नहीं मिलती है। वह समय पर पूरा टैक्स देता है, खरीदारी भी करता है और अपनी कमाई में बचत भी करता है। इन सभी का लाभ सरकार और उद्योगों को मिलता है लेकिन उसे कुछ नहीं। उसके बचत के पैसे से ही सरकारी योजनाएं चलती हैं और खरीदारी से उद्योगों के पहिए घूमते हैं। लेकिन उसे टैक्स में कोई राहत नहीं मिल पाती क्योंकि मुफ्तखोरी की योजनाओं में सरकारे बड़ी रकम खर्च कर देती हैं।

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इसका सीधा-सादा कारण है कि मिडल क्लास कोई वोट बैंक नहीं है। यह सही है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के खैरात पर किसी तरह की रोक लगाने से इनकार कर दिया है क्योंकि ऐसा कोई कानून नहीं है। उसने इतना ही कहा है कि इस पर विचार करने का समय आ गया है। बहरहाल समय गया है कि सरकारें लोगों को खैरात बांटने की बजाय उनकी क्रय शक्ति बढ़ाये जो उनकी आमदनी से सीधे जुड़ी हुई है। लोगों की आमदनी बढ़ाने और रोजगार के नये रास्ते खोजने से ही समस्या को हल निकलेगा क्योंकि इस तरह से राजनीतिक दल एक पूरी पीढ़ी को काहिल बनाने में जुटी हुई हैं। इससे हमारा देश भी श्रीलंका और वेनेजुएला के रास्ते पर चला जायेगा जहां पॉपुलिस्ट कदमों और भ्रष्टाचार ने देश को नरक में धकेल दिया। कभी खुशहाल रहे ये देश आज भयंकर आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं। 

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मधुरेंद्र सिन्हा
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