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झारखंड: कुल आरक्षण हुआ 77 फीसद, ओबीसी का आरक्षण बढ़कर 27 फीसद

झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने राज्य सरकार की नौकरियों में एससी-एसटी, ओबीसी और आर्थिक रुप से कमजोर तबकों के लिए आरक्षण को 77 फीसद कर दिया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में ओबीसी आरक्षण को 14 फीसद से बढ़ाकर 27 फीसद करने का फैसला भी लिया गया। इसके अलावा 1932 का खतियान भी लागू कर दिया गया है। 

सरकार ने कहा है कि इस कदम से झारखंड के मूल निवासियों, आदिवासियों को उनका हक मिल पाएगा। झारखंड में कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा और आरजेडी मिलकर सरकार चला रहे हैं। राज्य में लंबे वक्त से आरक्षण की सीमा को बढ़ाए जाने की मांग की जा रही थी।

कैबिनेट की बैठक के बाद सचिव वंदना दादल ने पत्रकारों को बताया कि राज्य सरकार केंद्र सरकार से इस विधेयक को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने का अनुरोध करेगी। 

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झारखंड सरकार ने नौकरियों में आरक्षण की जो नई नीति प्रस्तावित की है उसके अनुसार झारखंड के अनुसूचित जाति समुदाय के स्थानीय लोगों को 12 फीसद, अनुसूचित जनजाति समुदाय को 28 फीसद, अत्यंत पिछड़ा वर्ग को 15 फीसद, ओबीसी को 12 फीसद और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (अन्य आरक्षित श्रेणियों के लोगों को छोड़कर) 10 फीसद आरक्षण मिलेगा। अब इस तरह राज्य में कुल आरक्षण 77% हो गया है। 

वर्तमान में अनुसूचित जनजाति समुदाय को झारखंड में 26 फीसद का आरक्षण है जबकि अनुसूचित जाति समुदाय को 10 फीसद और ओबीसी को 14 फीसद आरक्षण मिलता है। 

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राज्य सरकार के फैसले के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि उनकी सरकार को कोई हिला नहीं सकता और यह सरकार सभी के साथ न्याय करेगी। उन्होंने कहा कि कुछ लोग सरकार को गिराने की कोशिश कर रहे हैं। 

क्या है 1932 का खतियान?

राज्य में आदिवासी समुदाय लगातार 1932 खतियान को लागू करने की मांग कर रहा था। 1932 में ब्रिटिश सरकार द्वारा अंतिम भूमि सर्वेक्षण किया गया था और जिन व्यक्तियों या जिनके पूर्वजों के नाम इस सर्वे के कागजातों में दर्ज होंगे, उन्हें ही झारखंड राज्य का स्थानीय निवासी माना जायेगा। 

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50 फीसद आरक्षण की सीमा 

कई राज्यों में कई जातियां आरक्षण की मांग करती रही हैं और राज्य सरकारें और अलग-अलग दल भी इसका समर्थन करते रहे हैं। यही कारण है कि कभी गुजरात तो कभी कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना आरक्षण की अधिकतम सीमा को पार करना चाहते हैं। 

लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 50 फ़ीसदी तक आरक्षण की सीमा इसमें आड़े आ जाती है, क्योंकि ओबीसी, एससी और एसटी का आरक्षण क़रीब 50 फ़ीसदी से अधिक नहीं हो सकता। हालांकि केंद्र सरकार के द्वारा ईडब्ल्यूएस को दिए गए 10 फीसदी आरक्षण के बाद यह सीमा पार हो चुकी है। 

कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना आरक्षण की सीमा को बढ़ाना चाहते हैं। राजस्थान और हरियाणा में भी कुछ जातियां आरक्षण की ज़ोरदार मांग करती रही हैं और यहां हिंसक प्रदर्शन तक हो चुके हैं।

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क़मर वहीद नक़वी
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