कर्नाटक में कांग्रेस की सत्ता की अंदरूनी क़लह ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है। सरकार के ढाई साल पूरे होने के ठीक बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर चली आ रही खींचतान खुलकर सामने आ गई है। सोमवार को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने साफ शब्दों में कहा कि कांग्रेस हाईकमान जो भी फैसला लेगा, वह और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार दोनों को उसे स्वीकार करना होगा।

मीडिया से बातचीत में सिद्धारमैया ने कहा, 'हाईकमान तय करेगा कि मुझे मुख्यमंत्री पद पर बने रहना है या नहीं। अगर वे कहेंगे कि मुझे जारी रखना है तो मैं जारी रखूँगा। अंतिम फैसला हाईकमान का होगा। मुझे भी और शिवकुमार को भी उसे मानना पड़ेगा।' जब उनसे पूछा गया कि क्या ढाई साल बाद सत्ता हस्तांतरण का कोई समझौता था तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा, 'हाईकमान जो कहेगा, हम मानेंगे।'
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शिवकुमार खेमे का दिल्ली कूच फिर शुरू

इसी बीच, डीके शिवकुमार के समर्थक विधायकों का दिल्ली जाना जारी है। मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि रविवार रात को छह और कांग्रेस विधायक दिल्ली पहुँचे। कहा जा रहा है कि कुछ और विधायक जल्द ही दिल्ली जाने वाले हैं। इन सबका एक ही मक़सद है- हाईकमान से डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाने की माँग करना।

पिछले हफ्ते भी क़रीब दस विधायक दिल्ली जाकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मिल चुके हैं। उस समय शिवकुमार ने कहा था कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है, लेकिन अब लगातार दूसरे बैच का दिल्ली पहुँचना साफ दिखाता है कि उनके खेमे में बेचैनी बढ़ती जा रही है।

सिद्धारमैया ने खड़गे से की लंबी मुलाक़ात

शिवकुमार समर्थक विधायकों के दिल्ली जाने के ठीक बाद शनिवार को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बेंगलुरु में मल्लिकार्जुन खड़गे के निवास पर एक घंटे से अधिक समय तक बंद कमरे में बैठक की। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि इस बैठक में सिद्धारमैया ने मंत्रिमंडल में फेरबदल का प्रस्ताव जोर-शोर से रखा।
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क्या है विवाद की वजह?

कहा जा रहा है कि सिद्धारमैया चाहते हैं कि पहले कैबिनेट में फेरबदल हो जाए। अगर हाईकमान कैबिनेट रिशफल को मंजूरी दे देता है, तो इसका मतलब होगा कि सिद्धारमैया पूरा पाँच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे। वहीं शिवकुमार खेमा पहले नेतृत्व परिवर्तन का फ़ैसला चाहता है, फिर कैबिनेट फेरबदल।

‘पावर शेयरिंग फॉर्मूला’ पर चर्चा क्यों?

2023 विधानसभा चुनाव के बाद जब कांग्रेस ने सरकार बनाई थी, तब से ही यह चर्चा चल रही है कि सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच एक अनौपचारिक समझौता हुआ था – पहले ढाई साल सिद्धारमैया मुख्यमंत्री रहेंगे, फिर बारी शिवकुमार की आएगी। हालाँकि दोनों नेता सार्वजनिक रूप से इस समझौते को स्वीकार नहीं करते, लेकिन ढाई साल पूरे होने के साथ ही यह मुद्दा फिर गरमा गया है।
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कांग्रेस के लिए दोहरी चुनौती

कर्नाटक में कांग्रेस के पास 135 विधायकों का बहुमत है और सरकार पूरी तरह सुरक्षित है, लेकिन यह आंतरिक कलह पार्टी की छवि को नुकसान पहुँचा रही है। विपक्षी भाजपा और जद(एस) इसे मुद्दा बनाकर लगातार हमलावर हैं।

अब सबकी निगाहें दिल्ली पर टिकी हैं कि क्या हाईकमान सिद्धारमैया को पूरा कार्यकाल देगा या 2023 के कथित समझौते को मानते हुए शिवकुमार को कुर्सी सौंपेगा? फिलहाल कर्नाटक की सियासत में सस्पेंस बरकरार है।