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कर्नाटक में बेरोजगारी और गरीबी सबसे बडे़ चुनावी मुद्दे

कर्नाटक में मतदान होने में चंद दिन बचे हैं और सभी राजनीतिक दलों का प्रचार चरम पर है। ऐसे में लोकनीति-सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) की मदद से एनडीटीवी का सर्वे काफी चौंकाने वाला है। वहां की जनता के मुद्दे कुछ और हैं और राजनीतिक दल अपनी मंजिल किन्हीं और मुद्दों के आधार पर तलाश रहे हैं।

इस सर्वे के मुताबिक कर्नाटक में वोटरों के लिए बेरोजगारी और गरीबी सबसे बड़ा मुद्दा है। अधिकांश वोटरों का मानना ​​है कि कर्नाटक में पिछले पांच साल में भ्रष्टाचार बहुत बढ़ा है। एनडीटीवी-सीएसडीएस ने 13 मई को होने वाले मतदान से कुछ हफ्ते पहले 20 से 28 अप्रैल के बीच यह सर्वे किया था।
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बेरोजगारी-गरीबी बड़ा मुद्दा

लोकनीति-एनडीटीवी-सीएसडीएस के सर्वे में शामिल 28 फीसदी लोगों का मानना ​​है कि इस चुनाव में बेरोजगारी कर्नाटक का सबसे बड़ा मुद्दा है। 25 फीसदी लोगों ने गरीबी को दूसरे नंबर पर रखा है। राज्य के युवा वोटरों के लिए बेरोजगारी बड़ी समस्या है, वहीं ग्रामीण कर्नाटक में गरीबी बड़ा मुद्दा है।

महंगाई मार गई

सर्वे के दौरान कम से कम 67 फीसदी लोगों ने कहा कि पिछले पांच वर्षों में उनके इलाकों में कीमतें बढ़ी हैं। महंगाई चरम पर है और उनकी रोजमर्रा का जीवन काफी कष्ट देने वाला है।

भ्रष्टाचार कण कण में

भ्रष्टाचार आज भी कर्नाटक का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा है। सर्वे में आधे से अधिक (करीब 51%) मानते हैं कि भ्रष्टाचार बढ़ा है जबकि 35% का कहना था कि यह वैसा ही बना हुआ है। कई भाजपा समर्थकों (41%) ने कहा कि 2019 के पिछले आम चुनावों के बाद भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी हुई है।

आरक्षण का मुद्दा

लोकनीति-एनडीटीवी-सीएसडीएस के सर्वे में लिंगायतों और वोक्कालिगाओं के लिए कोटा बढ़ाने, मुसलमानों का 4 फीसदी ओबीसी कोटा खत्म करने और अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए कोटा बढ़ाने के राज्य सरकार के फैसले को रेट करने के लिए कहा गया था। सर्वे से पता चला कि सिर्फ एक तिहाई नए आरक्षण के फैसलों के बारे में जानते थे। नई कोटा नीति के समर्थक ज्यादातर वे हैं जो भाजपा के पक्ष में हैं, जबकि जो लोग इसका विरोध करते हैं, वे सर्वेक्षण के अनुसार कांग्रेस समर्थक हैं। 

टीपू सुल्तान का मुद्दा

सर्वे के दौरान टीपू सुल्तान की मौत से जुड़े विवाद पर सवाल पूछे गए थे। इसमें पाया गया कि तीन में से एक शख्स इस बारे में जानता है और 74% का मानना ​​है कि इस विवाद को उठाने से सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया।
हालांकि इस विवाद से वाकिफ लोगों में से 29% का मानना ​​है कि इस मुद्दे को उठाना उचित है। सर्वे से पता चलता है कि यह मुख्य रूप से भाजपा समर्थक हैं जो टीपू विवाद को उठाने को सही ठहराते हैं, जबकि इसका विरोध करने वालों में से अधिक कांग्रेस की ओर झुके हुए हैं।

क्षेत्रीय भेदभावः लोकनीति-एनडीटीवी-सीएसडीएस सर्वे में "क्षेत्रीय भेदभाव" का भी मूल्यांकन किया गया। अधिकांश लोगों (41%) का मानना है कि उत्तर कर्नाटक में भेदभाव होता है। करीब 66% लोगों का मानना था कि बेंगलुरु को अन्य क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा महत्व दिया गया।

सरकार का काम कैसा

सर्वे के दौरान लोगों से कर्नाटक और केंद्र में बीजेपी सरकारों के काम का आकलन करने को भी कहा गया था। सर्वे में शामिल अधिकांश लोगों ने कहा कि सड़क, बिजली सप्लाई और पेयजल में सुधार नहीं हुआ। अधिकांश का कहना था कि सरकारी अस्पतालों और स्कूलों में कोई सुधार नहीं हुआ है।
सर्वे में शामिल 27% का कहना था कि वे कर्नाटक में बीजेपी सरकार से "पूरी तरह संतुष्ट" हैं, और 24% केंद्र की बीजेपी सरकार को उसी तरह पसंद करते हैं। "कुछ हद तक संतुष्ट" लोगों में कर्नाटक में बीजेपी सरकार के लिए 36% और केंद्र सरकार के लिए 42% लोग संतुष्ट दिखे।

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सर्वे से पता चलता है कि सरकारी योजनाओं का मतदाताओं पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। केंद्र और राज्य दोनों की योजनाओं के लाभार्थी बीजेपी के समर्थन में दिखे।

कैसे किया गया

सर्वे सर्वे के दौरान 21 विधानसभा क्षेत्रों के 82 मतदान केंद्रों में कुल 2,143 मतदाताओं से बातचीत की गई। नमूने का आकार छोटा रखा गया, ताकि लोगों से सही जानकारी ली जा सके।

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क़मर वहीद नक़वी
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