UGC Draft Curriculum Controversy: केरल सरकार ने यूजीसी पाठ्यक्रम के मसौदे को खारिज करते हुए इसे खास विचारधारा से प्रेरित बताया है। प्रभात पटनायक के नेतृत्व वाले एक पैनल ने इसमें पक्षपातपूर्ण चैप्टर थोपने की आलोचना की है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के ड्राफ्ट पाठ्यक्रम को केरल सरकार ने पूरी तरह खारिज कर दिया है। राज्य सरकार द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के आधार पर यह फैसला लिया गया है। जिसमें यूजीसी के प्रस्ताव को ‘वैचारिक रूप से प्रेरित सामग्री थोपने वाला’ करार दिया गया है। समिति का कहना है कि यह पाठ्यक्रम बौद्धिक अनुशासन और शैक्षणिक स्वायत्तता का सम्मान नहीं करता। यूजीसी ने 9 विषयों के पाठ्यक्रम को बदलते हुए सभी राज्यों को इसका ड्राफ्ट भेजा था।
प्रभात पटनायक पैनल की रिपोर्ट
केरल सरकार ने यूजीसी ड्राफ्ट का अध्ययन करने और रिपोर्ट देने के लिए प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक की अध्यक्षता में एक पैनल बनाया। इस पैनल की रिपोर्ट गुरुवार को सार्वजनिक की गई। प्रभात पटनायक पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यूजीसी का लर्निंग आउटकम्स-आधारित पाठ्यक्रम ढांचा नौ विषयों के लिए ‘भारतीय नॉलेज सिस्टम’ के बहाने पुरानी सामग्री और वैचारिक पूर्वाग्रहों को थोपने की कोशिश है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह ड्राफ्ट विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता को खत्म करने की कोशिश करता है, जो है। समिति ने सुझाव दिया है कि इस ढांचे की मूल अवधारणा पर ही पुनर्विचार किया जाए, न कि सिर्फ सुधार के संदर्भ में विचार किया जाए।
ब्रिटिश और अमेरिकी किताबों का असर
रिपोर्ट में यूजीसी के ड्राफ्ट की कड़ी आलोचना की गई है। इसमें ब्रिटिश और अमेरिकी पाठ्यपुस्तकों को मिलाकर शामिल किया गया है। साम्राज्यवाद की शोषणकारी भूमिका को नजरन्दाज करते हुए ‘हिंदू-विशिष्ट धारणा’ को भारतीय नॉलेज सिस्टम के रूप में पेश किया गया है। यह ड्राफ्ट हिंदुत्व से प्रेरित आत्मसंतुष्टि है। समिति ने उल्लेख किया कि विभिन्न जातीय, जातिगत और धार्मिक समूहों के योगदानों को नजरअंदाज किया गया है, खासकर बौद्ध और इस्लामी योगदानों को। अरब और भारतीय विद्वानों के बीच ऐतिहासिक आदान-प्रदान, जिसने भारतीय विचारों को पूरी दुनिया में फैलाया, को भी अनदेखा किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय योगदानों को हिंदू योगदानों के बराबर ठहराया गया है, जबकि अन्य महत्वपूर्ण प्रभावों को दरकिनार कर दिया गया। समिति में विशेष अतिथि के रूप में शामिल इतिहासकार रोमिला थापर ने कहा, “मैं विभिन्न संदर्भों में ‘भारतीय नॉलेज सिस्टम’ के सामान्य उल्लेख पर सवाल उठाती हूं। वर्तमान शैक्षणिक निकायों ने इसका कोई परिभाषित अर्थ नहीं दिया है, न ही इसके बारे में कोई विश्लेषणात्मक लेखन है। इसलिए... यह फिर से वही होगा जो कोई सत्ताधारी व्यक्ति पढ़ाना चाहे। यह सही कहा गया है कि इसे पूरी तरह हिंदू योगदान के रूप में देखा जा सकता है।”
केरल सरकार ने इस महीने की शुरुआत में ही यूजीसी को यह रिपोर्ट भेज दी है। राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह इस ड्राफ्ट को अपनाने से इनकार करती है और यूजीसी से पाठ्यक्रम ढांचे में व्यापक बदलाव की मांग करेगी।
यूजीसी ने पिछले महीने नौ विषयों के लिए यह ड्राफ्ट जारी किया था और टिप्पणियों के लिए आमंत्रित किया था। केरल सरकार ने तुरंत एक विशेषज्ञ समिति गठित की। इस समिति में केरल राज्य उच्च शिक्षा परिषद के उपाध्यक्ष राजन गुरुकुल, भारतीय विज्ञान संस्थान के रिटायर्ड प्रोफेसर एनजे राव और कोच्चि के सीयूएसएटी में प्रोफसर एनआर माधव मेनन अंतर्विषयक अनुसंधान नैतिकता केंद्र की निदेशक वाणी केसरी जैसे प्रमुख सदस्य शामिल थे। समिति ने ड्राफ्ट की गहन समीक्षा की और राज्य सरकार को अपनी सिफारिशें सौंपीं।
यह विवाद उच्च शिक्षा में केंद्रीकृत नियंत्रण बनाम राज्य स्वायत्तता के मुद्दे को फिर से उजागर करता है। केरल सरकार का यह कदम अन्य राज्यों के लिए एक उदाहरण बन सकता है, जो यूजीसी के प्रस्तावों पर अपनी राय रखने में हिचकिचा रहे हैं।