उस विस्तृत शिलामय प्रान्त में दबा हुआ हैसबसे कोमल स्वर में गीत गाने वाला वो आदमीहरे-भरे खेतों के बीच से अपने हाथों को लहराता हुआ वोअब हमारे सर के ऊपर छाया बनने नहीं आएगा,राजहंस बनकर पानी में खेलती हुई परियों से छीनकरअब वो प्रकाश जैसी परम आयु हमारे लिए नहीं लाएगा।गले में फंदे डालकर झूलती हुई औरत की तरहअब उसकी आवाज़ की स्तब्धता में टुकड़े-टुकड़े होकरटूट जाता है एक विशाल अन्धकार दर्पणहम सभी की भावनाओं के प्राणों पर,लोगों से भरपूर कस्बों और शहरों तक बहती हवा के हर झोंके पर।सबसे कोमल स्वर में गीत गाने वाला वो आदमीअलस्सुबह के सपनों की तरह उसकी आवाज़,उसके गीतों के हर चाँद और सूरजलाल फलों वाली झाड़ियों का हर पौधाअब हमारे अस्तित्व के अँधेरे गर्भ मेंएक नील उपलब्धि है।
पत्थर और झरनों से भरे पठार में जब बारिश होती हैवो लोग मुझे अकेला छोड़ जाते हैं।आड़ी तिरछी बरसती बूंदें मुझे भीतर से ढहाने लगतीआधी रात की हवाएं उन लोगों की आँखों में खोल देते हैंबाँध टूटकर बह जाने वाले नावों के पाल।रात की मूसलाधार बारिश के बीच किसी की यंत्रणा भरी चीख सुनता हूँ।पत्थरों के दबाव से निकलना मुश्किल है,कोई चीख रहा है।पत्थर और झरनों से भरे इस पठार में जब बारिश होती हैखेतों को हरा-भरा करने वाले जलातंक अँधेरे में दिखने लगता हैगले तक डूबी हुई कमला कुंवरी का चेहरा।
वो शुक्रवार था या रविवारहवाओं ने छीन लिया थामुँह के सामने से संतरासीने के अन्दर महसूस कर रहा था मैंजैसे कलेजे पर धक्का देती हुई,एक लाल रंग में रंगी हुई नदी रुक गई थी।दरख्तों के सामने कांपता हुआलटक रहा थाउस शाम जलकर राख होती हुई आत्मग्लानि।वो शुक्रवार था या रविवारदर्पणों में प्रतिध्वनित हो रही थीटूटे हुए तारों की चीखें
रजस्वला मैदान पार करके शायद अब तुमबहुत दूर पहुँच गई हो।पिंजरे में बंद है तुम्हारी वो चीखकिसानों के बीच किसी बात को लेकरकोहराम है।और अभी-अभी जैसे कुछ घट गयाखिले हुए गुलाब के फूलों मेंचकित करने वाली निस्तब्धता है।
क्या कोई जबाव मिलाअपने ही खून में खुद को तैरता हुआ क्या देख पाएये भी है एक तरह के चरम अनुभवों का क्रूर उद्दीपन।जीवन के साथ जीवन का अप्रत्याशित,भयानक रक्तरंजित साक्षात्कार।क्या वापस पाया खुद कोतुम्हारी प्यासतुम्हारा शोक।डरे हुए भूखे अनाथ बच्चे कीआंसू भरी आँखों कोक्या कोई जवाब दे पाए तुम।क्या अपने खून में खुद को तैरता हुआ देखा तुमने।बहुत समय बीता,बहुत समय।हे परितृप्त मानव।