साहित्य अकादमी ने अपने वार्षिक साहित्यिक पुरस्कारों की घोषणा करने के लिए तय प्रेस कॉन्फ्रेंस को अंतिम क्षणों में रद्द कर दिया। यह फैसला केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के निर्देश के बाद लिया गया, जिसने पुरस्कारों को फिर से तय होने तक कोई घोषणा न करने का आदेश दिया।

18 दिसंबर को दिल्ली में दोपहर 3 बजे यह प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई गई थी। जिसमें 24 भाषाओं में उत्कृष्ट साहित्यिक कृतियों के लिए पुरस्कार विजेताओं की घोषणा होनी थी। अकादमी की कार्यकारी बोर्ड की बैठक में पुरस्कार विजेताओं को सर्वसम्मति से मंजूरी भी मिल चुकी थी। लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस शुरू होने से ठीक पहले इसे रद्द करने की घोषणा कर दी गई और पुरस्कार प्रक्रिया को स्थगित कर दिया गया।

संस्कृति मंत्रालय ने उसी दिन अकादमी को एक नोट भेजा। जिसमें उसे जुलाई महीने में हस्ताक्षरित समझौते (एमओयू) का हवाला दिया गया। एमओयू में सभी चार स्वायत्त सांस्कृतिक संस्थानों - साहित्य अकादमी, संगीत नाटक अकादमी, ललित कला अकादमी और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के साथ पुरस्कारों को फिर से तय करने के लिए मंत्रालय की सलाह से करने की शर्त शामिल है। मंत्रालय के नोट में कहा गया कि नई प्रक्रिया मंजूर होने तक बिना पूर्व अनुमति के कोई पुरस्कार घोषणा नहीं की जा सकती।

इस पूरे खेल के पीछे कौन है, एमए बेबी का जवाब

सीपीएम के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री एमए बेबी ने साहित्य अकादमी और सरकार की इस हरकत को संस्थागत स्वायत्तता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अभूतपूर्व हमला करार दिया है। उन्होंने इसे अकादमी के इतिहास में पहली बार किसी स्वायत्त सांस्कृतिक संस्था का सत्ताधारी शक्तियों के सामने घुटने टेकने का मामला बताया। बेबी ने अपने बयान में कहा, "यह अत्यंत निंदनीय है कि अकादमी, जो वर्तमान में सचिव के बिना कार्यरत है, सरकार की अनुमति के लिए घुटनों पर बैठ गई है। इससे उसके प्रतिष्ठित संस्थापकों के विजन का विश्वासघात हुआ है।" उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी-शाह-भगवत त्रिमूर्ति भारत के सांस्कृतिक और साहित्यिक संस्थानों पर नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास कर रही है। बेबी ने लेखकों, बुद्धिजीवियों और साहित्य प्रेमियों से लोकतांत्रिक एवं रचनात्मक स्वतंत्रताओं पर इस हमले का प्रतिरोध करने का आह्वान किया।




अभी तक पुरस्कारों की घोषणा बहाल नहीं हुई है। संस्कृति मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, प्रेस कॉन्फ्रेंस मंत्रालय की जानकारी के बिना बुलाई गई थी, इसलिए इसे रोका गया। अकादमी के सदस्य सचिव के पद पर अक्टूबर से मंत्रालय के एक निदेशक स्तर के अधिकारी कार्यवाहक के रूप में कार्यरत हैं। इस मुद्दे पर साहित्य जगत में बहस जारी है, लेकिन कोई नई घोषणा नहीं की गई है।

यह घटना साहित्यिक जगत में स्वायत्त संस्थाओं पर सरकारी हस्तक्षेप के आरोपों को जन्म दे रही है। कार्यकारी बोर्ड के एक सदस्य ने पुष्टि की कि पुरस्कार विजेता आमराय से चुने गए थे।