एक दौर था जब मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन ने चुनाव नहीं होने दिया था। एक आज का दौर है कि चुनाव आयोग को उसकी शक्तियों की याद सुप्रीम कोर्ट को दिलानी पड़ रही है।
आदर्श आचार संहिता का आज का दौर और उसे लागू कराने में अक्षम-सा नज़र आता चुनाव आयोग कहीं लोकतंत्र के कमज़ोर होने में सहभागी तो नहीं हो रहा? ऐसे दौर में जब विपक्षी दल ‘संविधान की रक्षा’ को चुनावी मुद्दा बनाए हुए हैं, यह शक और गहराता जा रहा है।
टी. एन. शेषन जैसी सख्ती क्यों नहीं?
शेषन ने अपने आदेश में लिखा, था ‘जब तक वर्तमान गतिरोध दूर नहीं होता, जो कि सिर्फ़ भारत सरकार द्वारा बनाया गया है, चुनाव आयोग अपने-आप को अपने संवैधानिक कर्तव्य निभा पाने में असमर्थ पाता है। उसने तय किया है कि उसके नियंत्रण में होने वाले हर चुनाव, जिसमें हर दो साल पर होने वाले राज्यसभा के चुनाव और विधानसभा के उप-चुनाव भी, जिनके कराने की घोषणा की जा चुकी है, आगामी आदेश तक स्थगित रहेंगे।’ और एक आज का दौर है कि चुनाव आयोग को उसकी शक्तियों की याद सुप्रीम कोर्ट को दिलानी पड़ रही है।
चुनाव आयोग ने कुछ दिनों पहले एक आदेश निकाला था कि चुनाव प्रचार में सेना के शौर्य और उसकी बहादुरी का इस्तेमाल कोई नहीं करेगा, लेकिन क्या कोई उसका पालन कर रहा है?
आम आदमी ही नहीं, देश के साठ से अधिक पूर्व नौकरशाहों ने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और कामकाज के तरीक़ों पर सवाल उठाये हैं और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इस सन्दर्भ में पत्र लिख कर अपनी शिकायत दर्ज करायी है। लेकिन क्या हुआ? महज कुछ नोटिस जारी हुए। लेकिन क्या महज नोटिस जारी करके चुनाव आयोग अपना पल्ला झाड़ सकता है?
मिलिंद देवड़ा और सिद्धू के विवादित बोल
इन नेताओं ने भी लांघी सीमा
आज़म ख़ान ने भी अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया था और कहा था कि मैं 17 दिन में पहचान गया कि इनके नीचे का अंडरवियर खाकी रंग का है।
योगी आदित्यनाथ ने कहा था, 'जब गठबंधन के नेताओं को अली पर विश्वास है और वह अली-अली कर रहे हैं, तो हम भी बजरंगबली के अनुयायी हैं और हमें बजरंगबली पर विश्वास है।’
मायावती ने सहारनपुर के देवबंद की संयुक्त रैली में मायावती ने मुसलिमों को सचेत करते हुए कहा कि किसी भी सूरत में अपने वोट को बँटने नहीं देना।
मेनका गाँधी ने धमकी भरे लहज़े में मुसलिम मतदाताओं से कहा था कि यदि वे लोकसभा चुनाव में उनके पक्ष में मतदान नहीं करेंगे तो वह भी देख लेंगी।
हिमाचल प्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती ने तो राहुल गाँधी के लिए गाली का प्रयोग किया था।
चुनाव आयोग स्वायत्त संवैधानिक संस्था है और देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न कराने के लिए उसे संविधान के अनुच्छेद 324 से पर्याप्त अधिकार मिला हुआ है। लोगों को पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन का कार्यकाल याद होगा, जब उन्होंने चुनाव आयोग की भूमिका को काफ़ी प्रभावशाली बना दिया था। उन्होंने राजनीतिक दलों के बाहुबली नेताओं को आचार संहिता के दायरे में रहने के लिए मजबूर कर दिया था। शेषन को जो संवैधानिक अधिकार मिले थे, वे वर्तमान के मुख्य चुनाव आयुक्त को भी प्राप्त हैं। पर उस तरह की सक्रियता नहीं दिख रही है। ऐसे में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल क्यों ना खड़े हों? सांगली की महापौर के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज हो चुकी है लेकिन बाक़ी का क्या?