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एमपीः एक करोड़ महिला वोट के लिए 12 हजार करोड़ का दांव

मध्य प्रदेश राज्य पर 3 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज है। लेकिन इसके बावजूद लाडली बहना योजना लाई जा रही है। बीजेपी और पीएम मोदी फ्रीबीज के खिलाफ रहे हैं। ऐसे में इस योजना पर 12 हजार करोड़ का खर्च क्या बताता है। यह चुनावी दांव के अलावा और कुछ नहीं है। 
क़मर वहीद नक़वी

मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने एक करोड़ महिला वोटों के लिए ‘बड़ा दांव’ खेला है। इस दांव ने प्रतिपक्ष कांग्रेस को बेचैन कर दिया है। चूंकि मामला बड़े वोट बैंक से जुड़ा है, लिहाज़ा शिव ‘राज’ के इस ‘दांव’ पर सूबे के किसी बड़े कांग्रेसी नेता ने अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। मध्य प्रदेश की सरकार ‘लाड़ली बहना’ योजना लांच करने जा रही है। इस योजना के अंतर्गत 23 से 60 वर्ष तक की महिलाओं को 1 हजार रुपये मासिक की राशि सीधे खाते में पहुंचाई जाएगी।

शिवराज सिंह चौहान कैबिनेट ने शनिवार को योजना को हरी झंडी दे दी है। यह योजना ऐसे समय में लाई गई है जब मध्य प्रदेश में विधानसभा के चुनाव इसी साल होने हैं।

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राज्य में इस बार भाजपा की स्थिति बहुत अच्छी नहीं मानी जा रही है। असल में पुराने कांग्रेसी ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों की मदद से कमलनाथ की सरकार को गिराकर सत्ता हासिल करने वाली बीजेपी भारी अंर्तद्वंद्वों से गुजर रही है। अंर्तद्वंद्व के अलावा भी ऐसे अनेक कारण हैं जिनके चलते बीजेपी को मुश्किलों में माना जा रहा है।

मध्य प्रदेश में 2003 से 2018 तक निरंतर 15 साल सत्ता में रही भाजपा 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से ज्यादा वोट पाकर सतत चौथी बार जीत दर्ज करने में असफल रही थी। कमल नाथ की अगुवाई में बनी सरकार को गिराकर पुनः सरकार बनाने वाली भाजपा सरकार के मुखिया (मुख्यमंत्री) शिवराज सिंह चौहान हैं।

बीजेपी की 2003 से 2018 तक की हैट्रिक में कुल 15 सालों में से 13 सालों से ज्यादा वक्त तक शिवराज सिंह लगातार मुख्यमंत्री रहे। नाथ सरकार के गिरने और बागडोर पुनः भाजपा के हाथों में आने के बाद 23 मार्च 2020 से सत्ता की बागडोर शिवराज सिंह के हाथों में ही है। वर्तमान में जो दृश्य है उसे देखते हुए तय माना जा रहा है कि इस साल के आखिर में होने वाले राज्य विधानसभा का चुनाव भाजपा शिवराज सिंह के चेहरे पर लड़ने वाली है।

शिवराज सिंह इन दिनों ताकत के साथ पूरा मध्य प्रदेश नापने में लगे हुए हैं। चुनावी साल है, लिहाजा सरकार और संगठन ने वादों की झड़ी लगाई हुई है। हर दिन करोड़ों रूपयों के निर्माण कार्य वाले शिलान्यास/भूमि पूजन के कार्यक्रम हो रहे हैं।

चुनावी वादों और तमाम उधेड़बुन के बीच शनिवार को मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार ने बड़ा दांव खेला है। सूबे में 5 करोड़ से कुछ ज्यादा वोटरों में 2 करोड़ 60 लाख महिला वोटर हैं। इसी वोट बैंक को कैश कराने के लिए ‘लाड़ली बहना योजना’ की घोषणा की गई है।

टारगेट पर 1 करोड़ महिलाएंः मध्य प्रदेश में ‘लाड़ली बहना’ योजना का जिस तरह का स्वरूप बनाया गया है, उसके अनुसार राज्य की एक करोड़ से कुछ ज्यादा महिलाएं 1 हजार रुपये मासिक पाने की हकदार मानी जा रही हैं।

एमपी सरकार 5 मार्च से योजना का लाभ पाने के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू करने जा रही है। रजिस्ट्रेशन से लेकर स्क्रूटनी और फाइनल सूची बना लेने का कार्यक्रम भी तय हो गया है। जून माह से योजना की लाभार्थी ‘बहन’ को 1 हजार रुपये सीधे खाते में पहुंचा देने का कार्यक्रम भी सरकार बना चुकी है।

प्रेक्षक मान रहे हैं बीजेपी 2023 के विधानसभा चुनाव में भले ही राजनीतिक पंडितों द्वारा प्रतिपक्ष कांग्रेस से बराबरी के मुकाबले में कुछ कमतर आंकी जा रही हो लेकिन ‘लाड़ली बहना’ योजना चुनावी गणित बदलने वाली साबित हो सकती है।

शिवराज सिंह बहनों और बेटियों को अपनी विशिष्ट वाकशैली और अंदाज से रिझाने में कोई कोर एवं कसर नहीं छोड़ते हैं। उनके प्रत्येक भाषण में भांजे-भांजी और बहनें शब्द बारंबर आते हैं। मुख्यमंत्री पद के अपने आरंभिक कार्यकाल में लाड़ली लक्ष्मी योजना लागू करके शिवराज सिंह ने जमकर लीड हासिल की थी। देश भर में मध्य प्रदेश की इस योजना की न केवल तारीफ हुई थी, बल्कि अनेक राज्यों ने अपने सूबों में इसे लागू किया था। नये नामों से इसे अपने राज्यों में लागू करते हुए सरकारों ने अपने हाथों अपनी पीठ थपथपाई थी।

दरअसल कांग्रेस करिश्मा करने जैसा कोई जतन खुद होकर मध्य प्रदेश में करती नज़र नहीं आ रही है। कमल नाथ द्वारा स्वयं को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट कर लेने से मुख्यमंत्री कुर्सी के दावेदार कई नेताओं ने मीडिया में बयानबाजी भी की। रायपुर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में राहुल गांधी ने दो टूक कह दिया है, ‘मध्य प्रदेश के 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की और से सीएम का चेहरा कमल नाथ जी ही हैं। चेहरे को लेकर ना-नुकूर और पार्टी फैसले के खिलाफ बयानबाजी बर्दाश्त नहीं की जायेगी।

राहुल गांधी ने भले ही दो टूक कह दिया है, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी के दावेदार नेता मान गए हैं, ऐसा कतई नहीं है। भाजपा की तरह कांग्रेस में भी गुटबाजी पूरे चरम पर है। टिकिटों के बंटवारे के बाद गुटबाजी कम होने की जगह बढ़ना तय माना जा रहा है। कह सकते हैं, ‘भाजपा की तरह कांग्रेस को भी डैमेट को कंट्रोल करने में जमकर पसीना आने वाला है।’

तमाम अंर्तद्वंद्वों से गुजर रही कांग्रेस की आस शिवराज सरकार के कथित एंटी इन्कम्बेंसी वोटों पर ज्यादा है। कांग्रेस की चुनावी जीत का गणित केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ कथित विरोधी माहौल भी है।

मध्य प्रदेश में हिन्दू-मुस्लिम फैक्टर काफी संख्या में सीटों को प्रभावित करता है। यूं भी कह सकते हैं कि इसी फैक्टर के मद्देनजर अनेक सीटों पर नतीजे आते हैं। यदि इस बार भी यही दांव चला (चुनाव के समय पोलराइजेशन के प्रयास तेज होना तय माना जा रहा है) तो कांग्रेस की कठिनाइयां बढ़ेंगी और बीजेपी की वापसी के मौके अच्छे होंगे।

उपरोक्त सारे गणित के बीच थोक बंद नारी शक्ति वोटों को भुनाने से जुड़े बीजेपी के प्रयास ने कांग्रेस के खेमे में बेचैनी बढ़ाई है। मसला सीधे ‘लाभ’ का है, लिहाज़ा कांग्रेस चाहकर भी कुछ बोल नहीं पा रही है।

लाड़ली बहना योजना को मंजूरी पर पूर्व मुख्यमंत्री और मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ का कोई बयान अथवा ट्वीट अभी सामने नहीं आया है। सरकार के फैसलों पर प्रतिक्रिया देने और आलोचना करने में देर नहीं करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने अभी तक कोई भी ‘चुटकी’ राज्य की सरकार की नहीं ली है।

दूसरी और तीसरी पंक्ति के कांग्रेस नेताओं ने अलबत्ता इस योजना को बहनों के साथ छलावा करार दिया है। अनेक योजनाएं गिनाते हुए मध्य प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के.के.मिश्रा ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, उनकी सरकार और भाजपा घोषणाओं के दम पर जीतती आयी। साल 2018 में जनता ने उसे सत्ता से बाहर किया। विधायक खरीद कर और गद्दारों से हाथ मिलाकर सरकार में वापसी कर ली।’

मिश्रा ने कहा, ‘राज्य की बहन-बेटियां, भांजे और भाई लोग इस सरकार को पूरी तरह से समझ चुके हैं। शिवराज सिंह कितना ही बरगलायंे अब उनकी और भाजपा की दाल राज्य में गलने वाली नहीं है। विधानसभा के 2023 के चुनाव में भाजपा रूपी खोटा सिक्का जो किसी काम का नहीं रहा है, वोटर उसे पूरी तरह से चलन से बाहर कर देंगे।’

भाजपा के वरिष्ठ विधायक रामेश्वर शर्मा फरमा रहे हैं, ‘खोटा सिक्का कौन है, जनता साल 2003 से बता रही है। धोखे से 2018 में सिक्के ने चलन में आने का प्रयास किया था, उसी के लोगों ने सिक्के को चलन से बाहर कर दिया है।’

बीजेपी हर वर्ग की दुःखहर्ता है। मध्य प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों बीजेपी और केन्द्र में मोदी जी की सरकार ने आमजन की सरकार के रूप में स्वयं को स्थापित किया हुआ है। इस बार के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में कांग्रेस का हश्र यूपी से भी बदतर हो जाने वाला है। कुछ महीने बचे हैं।

शर्मा आगे तंज कसते हुए कहते हैं, ‘दिया बूझने वाला है, लिहाजा ज्यादा भभक रहा है।’ वे यह भी जोड़ते हैं, ‘लाड़ली बहना योजना वोटों के लिए बताना या इस जनोन्मुखी योजना को चुनावी घोषणा बताना आधी आबादी का अपमान है। महिलाएं उसकी हकदार हैं, जो हमारी सरकार उन्हें दे रही है।’

वित्त विभाग ने क्या कहाः जानकार सूत्रों के अनुसार वित्त विभाग ने योजना पर विचार के वक्त कैबिनेट के सामने साफ कर दिया था, ‘योजना लागू होने पर बहुतेरे विकास के कार्यों को रोक देना पड़ेगा।’ वित्त विभाग की ‘इस साफगोई’ को दरकिनार करते हुए कैबिनेट ने योजना को हरी झंडी दे दी। योजना लागू होते ही 12000 हजार करोड़ रुपये सालाना का भार ख़जाने पर बढ़ना सुनिश्चित हो जायेगा।

जून से राशि खाते में भेजना है। ऐसे में चुनाव की तारीख का ऐलान होने के पहले तक (नवंबर आखिर में होने की संभावना है, चुनाव की तारीख घोषित होते ही आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है। चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक योजनाओं का लाभ स्थगित रहता है, ऐसे में) करीब 6 महीने तो यह राशि शिवराज सिंह सरकार को पात्र महिला हितग्राहियों को वितरित करना ही होगी।

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दरअसल सरकारी खज़ाने की हालत अच्छी नहीं है। कोविड काल में मध्य प्रदेश सरकार की आय भी जमकर गिरी थी। खर्च कम होने की जगह बढ़े थे। स्वास्थ्य पर बड़ा व्यय हुआ था। कोविड के बाद से हुए तमाम प्रयास के बावजूद गाड़ी पटरी पर लौट नहीं पायी है। हाल के दिनों में शिवराज सरकार ने 20 हजार करोड़ रुपयों का नया कर्ज लिया है।

अगले सप्ताह मध्य प्रदेश की सरकार का बजट आने वाला है। चुनावी वर्ष के चलते अनेक लोक-लुभावन घोषणाएं बजट में होना तय है। नया टैक्स नहीं लगाया जायेगा, जानकार यह भी मानकर चल रहे हैं। विधानसभा का बजट सत्र सोमवार से आरंभ हो रहा है। सोमवार को राज्यपाल का अभिभाषण होने वाला है। बजट आने के पहले शिवराज सरकार मार्च महीने में 3 हजार करोड़ रूपयों का नया कर्ज बाजार से उठाने से जुड़ी तमाम औपचाकिताएं पूरा कर चुकी है।

जानकारों का कहना है, ‘यदि कर्ज लेने की रफ्तार पर एमपी ने लगाम नहीं लगाई और मुफ्त वितरण बंद नहीं किया तो मुश्किलें बेहद बढ़ जायेंगी। बाजार के हाथ खींचते ही कर्मचारियों को तनख्वाह बांटना और पेंशनरों को पेंशन देना भी मुश्किल हो जायेगा।’

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