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एमपी: टिकट वितरण में किसकी चली? जानें कांग्रेस की परेशानी क्या

मध्य प्रदेश विधानसभा के 2023 के चुनाव में प्रतिपक्ष कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी परेशानी क्या है? क्या एक्सटेंशन वाले अधिकारियों को चुनाव ड्यूटी पर रखा जा सकता है? ऐसे ही सवालों के जवाब राज्य के वरिष्ठ पत्रकार अरूण दीक्षित ने दिया। राज्य विधानसभा की 230 सीटों में से कांग्रेस की 144 प्रत्याशियों की बहुप्रतीक्षित पहली सूची आने के बाद ‘सत्य हिन्दी’ ने रविवार को अरूण दीक्षित से बातचीत की। पेश हैं, उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:-

कांग्रेस की 144 उम्मीवारों की पहली सूची को आप कैसे देखते हैं?

अरूण दीक्षित: सूची बेहद संतुलित और बहुत बढ़िया है। आमतौर पर कांग्रेस, प्रत्याशियों की ऐसी सूचियाँ नहीं दिया करती रही है। 

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सूची की सबसे बड़ी खासियत क्या है?

अरूण दीक्षित: सूची में प्रत्येक समीकरण का ध्यान रखा गया है। अनुभव के साथ-साथ 50 वर्ष से कम आयु वाले 65 के करीब युवाओं को टिकट एवं चुनावी राजनीति में तरजीह देने से स्पष्ट संकेत गया है कि कांग्रेस अब नई पीढ़ी को आगे बढ़ाने की राह पर चल पड़ी है।

कांग्रेस ने 39 ओबीसी और 19 महिलाओं को पहली सूची में जगह दी है, इसके पीछे क्या रणनीति देखते हैं?

अरूण दीक्षित: देश की राजनीति एक बार पुनः ‘मंडल’ (आरक्षण) की पुरानी दिशा में अग्रसर है। राहुल गांधी जाति जनगणना और आधी आबादी महिला शक्ति को आगे बढ़ाने के मुद्दों को पूरी ताकत से उठा रहे हैं। कांग्रेस की चुनावी रणनीति और विधानसभा चुनाव के लिए टिकटों के वितरण में यह सब दिख रहा है। मध्य प्रदेश के अलावा तेलंगाना एवं छत्तीसगढ़ के उम्मीदवारों का एलान भी किया गया है। तीन सूबों में कुल 229 सीटों के टिकट बँटवारे में सोशल इंजीनियरिंग के साथ-साथ...आधी आबादी को अवसर देने की झलक साफ़ मिल रही है। 

कमलनाथ खुद मैदान में हैं, नाथ सरकार में विधानसभा स्पीकर रहे विधायक का टिकट कटना क्या माना जाये?

अरूण दीक्षित: कयास लगाये जा रहे थे कि कमलनाथ अभी चुनाव नहीं लड़ेंगे। सरकार बन जाती है, तब लड़ेंगे। मगर यह संभावना समाप्त हो गई है। वे छिंदवाड़ा की अपनी पारंपरिक सीट से चुनावी रण में उतर गये हैं। विधानसभा स्पीकर रहे नरसिंहपुर जिले के गोटेगांव से विधायक एन.पी. प्रजापति का टिकट काटा जाना दर्शाता है कि सिर्फ जीत कांग्रेस का लक्ष्य है। प्रजापति कमजोर कड़ी के तौर पर सर्वे में निकलकर सामने आ रहे थे, लिहाज़ा कांग्रेस ने अपने इस बड़े लीडर का टिकट भी काट दिया।

आशंका जताई जा रही थी कि कमलनाथ-दिग्विजय सिंह मिलकर टिकटों की बंदरबाट कर लेंगे, इस पहली सूची में आखिर चली किसकी है?

अरूण दीक्षित: पूरी सूची जीत के मंत्र के आसपास सिमटी हुई है। प्रजापति, मूलतः सुरेश पचौरी कैंप के नेता माने जाते रहे हैं। दिग्विजय सिंह सरकार में वे इसी कोटे से मंत्री रहे। कमलनाथ कैंप में भी उनकी स्वीकारोक्ति रही, लेकिन कड़ी कमजोर थी - लिहाजा फिलहाल उसे दरकिनार कर दिया गया। पहली सूची देखने के बाद यही कहूंगा, सबकी चली है। आलाकमान की पसंद-नापसंद और जीत का मंत्र भी इस लिस्ट में पूरी तरह से दिखलाई पड़ रहा है। 

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दिग्विजय सिंह समर्थकों के टिकट रुके हुए हैं, भोपाल में कई सीटें इसका उदाहरण मानी जा सकती हैं, आपकी प्रतिक्रिया?

अरूण दीक्षित: आपका पहला इशारा वर्तमान विधायक एवं कमल नाथ सरकार में मंत्री रहे पी.सी.शर्मा की दक्षिण-पश्चिम सीट से है। इसके अलावा गोविंदपुरा, भोपाल उत्तर और हुजूर पर भी उम्मीदवार घोषित नहीं किए गए हैं। भोपाल की 7 में से 3 सीटों पर ही उम्मीदवारों की घोषणा हुई है। दिग्विजय सिंह की दक्षिण-पश्चिम में पहली पसंद पीसी शर्मा हैं। गोविंदपुरा से वे अपने फॉलोअर रविन्द्र साहू को टिकट दिलाने की जुगत में हैं। हुजूर और उत्तर विधानसभा सीट पर भी दिग्विजय की रायशुमारी अहम है। देखिये क्या होगा, आने वाली सूचियों में साफ़ हो जायेगा।

कांग्रेस के सामने इस चुनाव में सबसे बड़ी चुनौतियाँ क्या देख रहे हैं?

अरूण दीक्षित: चुनाव में चुनौतियां… हर दल के सामने होती हैं। लंबी सूची चुनौतियों की होती है। हर दिन नई-नई चुनौतियों का सामना करना होता है। मैं देख पा रहा हूं, मध्य प्रदेश विधानसभा के इस चुनाव में कांग्रेस के सामने कई बड़ी चुनौतियाँ हैं। चुनाव आयोग और सरकार की दया पर दो मर्तबा एक्सटेंशन पा जाने वाले सूबे के चीफ सेक्रेट्ररी के मुद्दे भी हैं।

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चुनाव आयोग और चीफ सेक्रेट्ररी? क्या इसे विस्तार से समझा सकते हैं?

अरूण दीक्षित: पांच राज्यों के लिए चुनाव की तारीखों की घोषणा के समय चीफ इलेक्शन कमिश्नर से पत्रकारों ने मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव को लेकर सवाल किया था, माकूल जवाब नहीं मिला था। चुनाव आयोग के सुस्पष्ट निर्देश हैं कि ऐसे अफसर चुनाव की प्रक्रिया का अंग नहीं बनाये जायेंगे जो संविदा नियुक्ति पर हों, एक्सटेंशन पर हों। फ्री एवं फेयर इलेक्शन की इस व्यवस्था के आड़े, दूसरी बार एक्सटेंशन पर चले रहे मध्य प्रदेश में चीफ सेक्रेट्ररी इकबाल सिंह बैस आ रहे हैं। आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू हुए सप्ताह भर हो रहा है। सूबे भर में शिवराज सिंह चौहान के फोटो, उनकी सरकार की योजनाओं और लाभ वाले नारे-जुमले दीवारों से अभी तक हटे या मिटे नहीं हैं। इन्हें हटवाना-मिटवाना...चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है। आयोग नाकाम है। कांग्रेस की शिकायतों के बावजूद न तो चीफ सेक्रेट्ररी को हटाया गया है और न ही फ्री एवं फेयर इलेक्शन के लिए सरकारी मशीनरी की डिब्री टाइट की जा रही है।

अंत में, कांग्रेस की 144 की सूची और 136 की भाजपा की लिस्ट में किसकी बढ़त देख रहे हैं?

अरूण दीक्षित: फिलहाल बढ़त पर तो कांग्रेस ही है। पुनः दोहराऊंगा, कांग्रेस का मुकाबला अकेले भाजपा से नहीं है। चुनाव आयोग और चीफ सेक्रेट्ररी से भी कांग्रेस को कड़ा मुकाबला करना होगा। चीफ सेक्रेट्ररी यानी… राज्य भर की पूरी सरकारी मशीनरी से। यदि इस (चुनाव आयोग और चीफ सेक्रेट्ररी से) मुक़ाबले में कांग्रेस असफल हुई तो, (मुस्कारते हुए...दीक्षित आगे कहते हैं) सभी चुनावी सर्वे और आकलन धरे रह जायेंगे, बीजेपी सरकार बनाने में सफल हो जायेगी।

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संजीव श्रीवास्तव
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