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महाराष्ट्र: किसानों की आत्महत्या नहीं, 370 है चुनावी मुद्दा?

कुछ साल पहले हमारे देश में एक सवाल बहुत चर्चा में हुआ करता था और वह था कि क्या देश में चुनाव मुद्दा विहीन होते जा रहे हैं? लेकिन अब सवाल यह खड़ा हो रहा है कि क्या चुनावों के लिए ही कोई मुद्दा खड़ा किया जा रहा है? यह दूसरा सवाल पहले सवाल का उत्तर नहीं है बल्कि कमोबेश पहले सवाल का नया रूप ही है और अपने आप में एक सवाल भी है। कहने का मतलब यह है कि चुनावों के लिए जो मुद्दे गढ़े जा रहे हैं उनसे जनता का कोई सरोकार है या नहीं? या वे जनता को उनके मूलभूत मुद्दों से भटकाकर उन्हें भावनात्मक स्थिति में ले जाने वाले हैं। 

भारतीय जनता पार्टी ने साल 2014 का चुनाव नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भ्रष्टाचार और कालाधन वापस लाकर देश की जनता के 'अच्छे दिन आने वाले हैं' के नारे के साथ लड़ा था। जनता ने परिवर्तन के नाम पर उन्हें बड़ा बहुमत दिया। लेकिन उसके बाद देश में जितने भी चुनाव हुए सरकार ने जिस परिवर्तन की बातें कही थीं उनके आधार या अपने कामकाज से ज़्यादा किसी नए मुद्दे या चर्चा को उभार कर ही लड़ने का प्रयास किया। 

बीजेपी और उसके नेतृत्व वाली सरकार की ओर से - बिहार विधानसभा चुनाव में विरोधियों की जीत हुई तो पाकिस्तान में फटाखे फूटेंगे, वे जीते तो पिंक रिवोल्यूशन (मांस कारोबार) में वृद्धि होगी, महामिलावटी गठबंधन और ठगबंधन जैसी बातें हुई।

गुजरात में विधानसभा चुनाव के दौरान कभी गुजरात मॉडल का जिक्र नहीं आया। मणिशंकर अय्यर की टिप्पणी और मनमोहन सिंह की पाकिस्तानी उच्चायोग के अधिकारियों से कथित बैठक और मोदी सरकार को गिराने की साज़िश का जिक्र रहा, जो कि बाद में आधारहीन साबित हुआ। इसे लेकर विपक्ष ने लोकसभा में हंगामा भी किया था कि प्रधानमंत्री अपने उस वक्तव्य के लिए माफ़ी मांगें। 

लोकसभा चुनाव 2019 में ना तो अच्छे दिन आयेंगे की बात हुई और ना ही काला धन वापस लाने की। पांच साल के कार्यकाल में मोदी सरकार द्वारा घोषित योजनाओं की भी चर्चा नहीं की गई। चर्चा हुई तो बालाकोट में की गई सर्जिकल स्ट्राइक की और उसके लिए देश के नए मतदाता को अपना वोट पाकिस्तान को सबक सिखाने वाली सरकार को दिया जाना चाहिए या नहीं? इसकी। 

लोकसभा चुनाव में पुलवामा, पठानकोट और उरी की विफलता की बातें नहीं की गयीं और इसके लिए सरकार और उसकी मशीनरी की विफलता के बजाय विपक्ष को घेरा गया कि वह इन पर सवाल नहीं उठाये। आज फिर देश के एक महत्वपूर्ण प्रदेश महाराष्ट्र में विधानसभा का चुनाव है। इसके साथ हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और दोनों प्रदेशों में भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों की सरकार है। 

आचार संहिता लगने से पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की जो सभाएं हुई थीं, उसमें जो बयान आये थे उससे यह संकेत मिलने लगे थे कि पूरा चुनाव प्रचार जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को धुरी बनाकर ही होगा। शरद पवार, राज ठाकरे और कांग्रेस के नेताओं ने इसी पूर्वानुमान को भांपते हुए अपनी सभाओं में लोगों से यह कहना शुरू कर दिया था कि जैसे ही प्रदेश में मोदी और शाह की सभाएं शुरू होंगी, 370 का शोर सुनाई देने लगेगा। 

विपक्षी नेताओं ने अपने भाषणों में कहना शुरू कर दिया था कि प्रदेश में पांच साल में 16 हज़ार किसानों की आत्महत्या की चर्चा प्रधानमंत्री की सभाओं में नहीं होगी। किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य, फसल बीमा योजना में अनियमितताओं, रोजगार संकट, मंदी की वजह से घटते रोजगार पर भी चर्चा नहीं होगी! और वैसा ही हुआ भी। 

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प्रधानमंत्री मोदी महाराष्ट्र में आये तो उन्होंने विपक्षी दलों को चुनौती दे दी कि यदि उनमें हिम्मत है तो वे अपने घोषणा पत्र में यह वादा करें कि उनकी सरकार आएगी तो वे 370 को फिर से लागू कर देंगे? प्रधानमंत्री के ऐसे ही बयानों पर प्रदेश में प्रचार करने आये कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने भी हमला बोला। उन्होंने कहा कि 'चाँद पर जाने से पेट नहीं भरता है, देश में भारतीय कंपनियां बंद हो रही हैं और चीनी कंपनियों का माल बाज़ार में बड़े पैमाने पर अपना कब्ज़ा जमाते जा रहा है। युवा बेरोजगार हैं, किसान आत्महत्या कर रहे हैं। लेकिन सरकार और मीडिया पाकिस्तान-पाकिस्तान कर रहा है।’ 

प्रधानमंत्री के अनुच्छेद 370 वाले बयान पर महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने एक सभा में अपने अंदाज में टिप्पणी की। उन्होंने कहा '370 हटाने के लिए अभिनन्दन, लेकिन आगे क्या? महाराष्ट्र की समस्याओं के बारे में क्या?’
शरद पवार इसे लेकर पहले से ही लोगों को आगाह करते रहे थे। पवार देवेंद्र फडणवीस की सरकार को किसानों की कर्ज माफी को लेकर हर सभा में घेरते हैं। पवार कहते हैं कि 50 हजार करोड़ रुपये की कर्ज माफ़ी की बात कही जाती है, आंकड़ा बहुत बड़ा है लेकिन कितने किसानों के खाते में पैसा गया यह किसी को पता नहीं और ना ही सरकार यह बताना चाहती है। 
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दरअसल, जिस तरह से जनता की समस्याओं से हटकर कुछ अलग ही मुद्दों पर चर्चाएं खड़ी कर जो चुनाव लड़े जा रहे हैं, वह देश और लोकतंत्र के लिए घातक हैं। पिछले कई सालों से महाराष्ट्र के किसान सूखे से पीड़ित हैं। इस बार प्रदेश के कुछ हिस्सों में आयी विनाशकारी बाढ़ की वजह से हजारों लोगों के घर, पशु बह गए और खेतों में खड़ी फसलें तबाह हो गयीं। 

महाराष्ट्र में हर साल पांच हजार से ज़्यादा किसान आत्महत्या कर रहे हैं। पुणे और नासिक जिले में ऑटो इंडस्ट्री में आई मंदी के कारण हजारों लोग बेरोज़गार हो रहे हैं। उद्योग-धंधे बंद हो रहे हैं और पंजाब-महाराष्ट्र जैसे को-ऑपरेटिव बैंक लोगों की जमा पूंजी को खतरे में डाल रहे हैं। लेकिन जनता से जुड़ी ये बातें चुनाव प्रचार के केंद्र में नहीं होकर हाशिये पर चली जायेंगी तो लोकतंत्र की इस परीक्षा में क्या सवाल उठाये जायेंगे और क्या उत्तर दिया जाएगा? 

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संजय राय
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