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हेमंत करकरे की मौत कसाब नहीं, पुलिस की गोली से हुई थी: पूर्व जज

मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त राकेश मारिया की किताब 'लेट मी से इट नाउ' ने विवादों का एक पिटारा खोल दिया है और इसके चलते प्रदेश की पुलिस की कार्य प्रणाली संदेह के घेरे में आ गयी है। इस किताब के विमोचन पर मारिया ने विशेष रूप से शीना वोहरा हत्याकांड को लेकर अपने सहयोगी पुलिस अधिकारियों को कठघरे में खड़ा किया था कि 'मामले के अभियुक्तोें से संबंध होने के बावजूद उन अधिकारियों को इस जाँच से जोड़े रखा जबकि उन्हें इसकी सज़ा के रूप में दूसरे विभाग में पदोन्नत कर स्थानांतरण दे दिया गया।

मारिया की इस किताब से विवादों का जिन्न निकला ही था कि पूर्व जज बी. जी. कोलसे पाटिल, जो राज्य में एलायन्स अगेंस्ट सीएए, एनआरसी और एनपीआर संगठन के अध्यक्ष भी हैं, ने महाराष्ट्र के पूर्व एंटी टेररिस्ट स्क्वाड के प्रमुख हेमंत करकरे की हत्या का आरोप महाराष्ट्र पुलिस के ऊपर लगा दिया। नागपुर में एक सभा के दौरान कोलसे पाटिल ने कहा कि करकरे की मौत कसाब की गोली से नहीं, महाराष्ट्र पुलिस की पिस्टल में प्रयोग में आने वाली 'प्वाइंट नाइन' की गोली से हुई थी। उन्होंने कहा कि यह कृत्य महाराष्ट्र पुलिस में हिन्दू विचारधारा वाले पुलिसकर्मी द्वारा किया गया है।

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यह पहली बार नहीं है जब करकरे की हत्या पर सवाल उठे हैं। साल 2009 में वरिष्ठ वकील फ़िरोज़ अंसारी ने एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे की मृत्यु के पीछे षडयंत्र पर शक जताते हुए आरटीआई के तहत मुंबई पुलिस आयुक्त हसन गफूर से पूछा था कि जब कामा अस्पताल में पुलिस दल मौजूद था तो आतंकवादी ऑपरेशन के दौरान उन्हें क्यों बुलाया गया था? उन्हें आख़िरी फोन करने वाला पुलिसकर्मी कौन था? करकरे को कितनी गोलियाँ लगी थीं? गोलियाँ कितनी दूरी से मारी गई थीं? गोलियाँ किस हथियार से लगी थीं आदि।

यह भी सवाल उठाया गया कि जब मालेगाँव धमाके की जाँच करने वाले करकरे को जान से मारने की धमकियाँ मिल रही थीं तो उन्हें क्यों नहीं विशेष सुरक्षा दी गई और हमले के दिन क्या वह बुलेट प्रूफ़ गाड़ी में जा रहे थे? फ़िरोज़ अंसारी ने यह भी सवाल उठाया है कि जब करकरे कामा अस्पताल के लिए रवाना हुए थे तो उनके पास कौन से हथियार थे? उन्होंने क्या आतंकवादियों पर गोलियाँ चलाई थीं? 

यही नहीं, महाराष्ट्र पुलिस के एक पूर्व आईजी ने करकरे की मौत की दोबारा जाँच के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। जुलाई 2018 में कोर्ट ने जाँच कराने से इनकार कर दिया था।

ज़ाहिर है अब एक जज ने इस मामले में पुलिस के धार्मिक होने का आरोप लगाया है तो चर्चाएँ होना लाज़िमी है। वैसे मारिया की इस किताब के बाद आनन-फानन में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने पत्रकार परिषद लेकर कांग्रेस को घेर लिया कि उसने मुंबई पर हुए उस हमले को “हिंदू टेरर” का रूप देकर झूठे आरोपों से उस समय देश को गुमराह करने की कोशिश की थी। इसी कड़ी में बीजेपी नेता राम माधव ने कहा कि जिन कुछ बुद्धिजीवियों ने मुंबई आतंकवादी हमले को आरएसएस से जोड़ने का प्रयास किया था, उन्हें कांग्रेस नेताओं का समर्थन प्राप्त था। आज यह पता चला है कि यह आईएसआई द्वारा एक साज़िश थी और कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी इसे आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे।

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सरकारी वकील क्या कहते हैं?

लेकिन इस मामले में महाराष्ट्र सरकार के विशेष वकील उज्जवल निकम, जिन्होंने 26/11 के इस हमले में सरकार की तरफ़ से केस लड़ा और कसाब को फाँसी के फंदे तक पहुँचाया, ने इन सभी आरोपों का खंडन किया है। उन्होंने कहा कि इस हमले में शामिल 10 में से 9 आतंकी मारे गए थे, एक कसाब ज़िन्दा पकड़ा गया था। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी आतंकवादियों की इस हमले को हिंदू आतंकवादी हमला सिद्ध करने की कोई योजना थी, उससे वे सहमत नहीं हैं लेकिन उन्होंने माना कि दसों आतंकवादियों के पहचान पत्र फ़र्ज़ी बनाए गए थे। कसाब का पहचान पत्र समीर चौधरी हैदराबाद के नाम से था। और इस मामले में हुई जाँच के दौरान यह स्पष्ट भी हो गया था कि यह सिर्फ़ पकड़े जाने से बचाव के लिए तैयार किए गए थे। निकम के अनुसार कसाब ने आतंकी ट्रेनिंग आदि सभी बातें कबूल की थी। उन्होंने कहा कि इस किताब के आधार पर हिन्दू आतंकवाद की ख़बरों के सम्बन्ध को लेकर मारिया से उनकी बात भी हुई है जिसमें उन्होंने साफ़ कहा कि ऐसा कुछ उनकी किताब में लिखा नहीं गया है।

इस किताब ने पुलिस महकमे के साथ-साथ सत्ता के गलियारों में भी चर्चाओं का दौर शुरू कर दिया है। ऐसा होने पर हैरानी कैसी। जिस शीना वोहरा कांड की वजह से राकेश मारिया को मुंबई पुलिस आयुक्त का पद छोड़ना पड़ा था, उसी की मुख्य अभियुक्त इंद्राणी मुखर्जी की गवाही से देश के पूर्व गृह मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी सी चिदंबरम की गिरफ्तारी भी जुड़ी हुई है।
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संजय राय
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