क्या बीजेपी अपने सहयोगियों को भी नहीं छोड़ती है? क्या वह एकनाथ शिंदे और अजित पवार की पार्टी के लोगों को भी तोड़ने में लगी है? दरअसल, महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के महज एक साल बाद ही सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन के भीतर खाई गहरी होती दिख रही है। अपने सहयोगी दलों शिवसेना और एनसीपी के नेताओं-कार्यकर्ताओं को भी अपने पाले में लाने की बीजेपी की आक्रामक मुहिम ने गठबंधन में तनाव को नये स्तर पर पहुँचा दिया है। एक दिन पहले ही एकनाथ शिंदे को छोड़कर शिवसेना के बाक़ी सभी मंत्री मंगलवार को कैबिनेट की साप्ताहिक बैठक में शामिल ही नहीं हुए थे।

शिवसेना के मंत्रियों ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से अलग से मुलाक़ात की और राज्य बीजेपी अध्यक्ष रविंद्र चव्हाण की 'आक्रामक भर्ती मुहिम' की शिकायत की। हाल में कल्याण-डोंबिवली में शिवसेना के कई प्रमुख पार्षदों और पूर्व पार्षदों को बीजेपी में शामिल करने का मामला गरमाया हुआ है। यह इलाक़ा शिवसेना के सर्वेसर्वा एकनाथ शिंदे के बेटे और सांसद डॉ. श्रीकांत शिंदे का गढ़ माना जाता है।
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कल्याण-डोंबिवली में हुआ बवाल

राज्य बीजेपी अध्यक्ष रविंद्र चव्हाण ने सोमवार को ही कल्याण-डोंबिवली में शिवसेना के पार्षद अनमोल म्हात्रे, पूर्व पार्षद महेश पाटिल, सुनीता पाटिल, सायली विचारे सहित कई नेताओं को बीजेपी की सदस्यता दिलाई। चव्हाण ने स्वागत करते हुए कहा, 'ये सभी मेरे मित्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में विश्वास रखते हैं और हिंदुत्व की रक्षा करने वाली बीजेपी में शामिल हो रहे हैं।'

यह घटना इसलिए भी खटकी क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में भी कल्याण सीट पर श्रीकांत शिंदे की उम्मीदवारी का स्थानीय बीजेपी नेताओं ने खुला विरोध किया था। उस वक्त फडणवीस को खुद हस्तक्षेप करना पड़ा था।

शिवसेना ने खुलेआम जताई नाराज़गी

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार शिवसेना के वरिष्ठ मंत्री और शिंदे के क़रीबी संजय शिरसाट ने कहा, 'हम समन्वय की बात करते हैं, लेकिन गठबंधन में कुछ न्यूनतम नियम-क़ायदे होने चाहिए जिनका हर सहयोगी सम्मान करे।' एक अन्य शिवसेना मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर धमकी भरे लहजे में कहा, 'अगर भाजपा सहयोगी दलों को कमजोर करने पर तुली है, तो हमें भी विकल्प तलाशने पड़ेंगे।'
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अनौपचारिक समझौता की परवाह नहीं?

अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि नवंबर 2024 के विधानसभा चुनाव में महायुति की बड़ी जीत के बाद तीनों दलों भाजपा, शिवसेना, एनसीपी के बीच एक अनौपचारिक समझौता हुआ था कि विपक्षी दलों के नेताओं को कोई भी दल अपने यहां शामिल कर सकता है, लेकिन गठबंधन के अंदर एक-दूसरे के नेताओं की भर्ती नहीं की जाएगी, ताकि सरकार में समन्वय बना रहे और कार्यकर्ता स्तर पर टकराव न हो। लेकिन अब भाजपा इस समझौते से पूरी तरह पीछे हटती दिख रही है।

एनसीपी भी नाराज़

बीजेपी की इसी नीति से अजित पवार गुट की एनसीपी भी खफा है। पिछले महीने बीजेपी ने एनसीपी के पूर्व विधायक राजन पाटिल और यशवंत माने को अपने पाले में लिया था। द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार बीजेपी सूत्रों का कहना है कि पश्चिम महाराष्ट्र के सोलापुर में पैठ बनाने और स्थानीय निकाय चुनाव में मजबूती के लिए ये इंजीनियर्ड डिफेक्शन करवाए गए।

बीजेपी का पक्ष

रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने बेबाकी से कहा, 'प्यार और जंग में सब जायज है, चुनाव में भी यही नियम लागू होता है। स्थानीय निकाय चुनाव से पहले दल-बदल आम बात है। महाराष्ट्र और अभी बिहार विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद नेता खुद भाजपा में आना चाहते हैं।' स्टेट बीजेपी अध्यक्ष चव्हाण ने कहा, 'हमने कभी अपने सहयोगियों के मौजूदा जनप्रतिनिधियों को तोड़ने की कोशिश नहीं की। जो दूसरे-तीसरे दर्जे के नेता अपने दल में उपेक्षित महसूस कर रहे हैं और बीजेपी में बेहतर भविष्य देखते हैं, उन्हें हम क्यों रोकें? अगर कोई हमारे अच्छे काम में योगदान देना चाहता है तो स्वागत है।'
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एक के बाद एक विवाद

फडणवीस ने एकनाथ शिंदे की आपत्ति के बावजूद उद्धव ठाकरे को बाला साहेब ठाकरे स्मारक समिति का अध्यक्ष फिर से बनाया। ठाणे-नवी मुंबई में शिंदे के कट्टर विरोधी गणेश नाइक को बीजेपी ने स्थानीय निकाय चुनाव का प्रभारी बनाया। अजित पवार के बेटे पार्थ पवार से जुड़े विवादास्पद जमीन सौदे पर भी दिल्ली में चर्चा हुई।


पिछले कुछ दिनों में एकनाथ शिंदे और अजित पवार दोनों दिल्ली जाकर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से मिले थे। हालाँकि, उस बातचीत की जानकारी सामने नहीं आ पायी कि आख़िर उनके बीच क्या बातें हुईं।