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महाराष्ट्र में 2014 के नतीजे नहीं दोहरा पाएगी बीजेपी-शिवसेना?

लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र को लेकर तमाम तरह के चुनावी सर्वे आ रहे हैं। उनमें से कुछ में यह बताया जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी-शिवसेना वैसा प्रदर्शन नहीं कर पायेगी जैसा उसने पिछले चुनाव में किया था। लेकिन फिर भी बहुत से सर्वे यह दिखा रहे हैं कि महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना 33 के आसपास सीटों पर जीत हासिल कर लेगी। और शायद यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी सतत रूप से राज्य के दौरे कर रहे हैं। लेकिन यदि महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों के परिणामों के लिए हम इतिहास के पन्ने पलटते हैं तो तसवीर कुछ अलग दिखाई देती है। 2014 के अपवाद को छोड़ दें तो यहाँ का मतदाता कभी एकतरफ़ा मतदान करता नज़र नहीं आया है।

2014 के चुनाव परिणाम एकतरफ़ा रहे थे। लेकिन उनको एकतरफ़ा कराने में कई बातों का योगदान था। एक तो मोदी लहर और दूसरा उनका गुजरात मॉडल। ये दोनों बातें फली-फूलीं जन लोकपाल की माँग को लेकर शुरू हुए अन्ना आन्दोलन द्वारा तैयार की गयी उपजाऊ भूमि में।

अन्ना आन्दोलन की वजह से भ्रष्टाचार का जो पहाड़ लोगों के समक्ष आंकड़ों के रूप में हर समाचार पत्रों की आये दिन सुर्खियाँ बनता था, उसने जनमानस में परिवर्तन के विचार को मज़बूत कर दिया था।  जनता ने एकतरफ़ा परिवर्तन के नाम पर वोट डाले। लेकिन परिवर्तन क्या हुआ इसका आकलन अब मतदाताओं को करना है।  इस बार चुनाव में न तो वह मोदी लहर दिखाई दे रही है और न ही उनके विकास के गुजरात मॉडल की वह अबूझ पहेली जो मतदाताओं के दिलो-दिमाग पर मीडिया और सोशल मीडिया द्वारा बिठा दी गयी थी।

2014 के चुनाव प्रचार के दौरान किसी भी मीडिया द्वारा कथित गुजरात मॉडल का परीक्षण नहीं किया गया। 

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लेकिन आज नरेंद्र मोदी के पाँच साल सरकार के पूरे हो चुके हैं और जनता के सामने उनके अबूझ गुजरात मॉडल की तसवीर नहीं, उनके कार्यकाल की फ़िल्म है जिसमें नोटबंदी ,किसानों की आत्महत्या, बेरोज़गारी, पेट्रोल-डीजल की क़ीमतें और समाज में तेजी से बढ़ा उन्माद जैसे अनेक सीन हैं।

एकतरफ़ा मतदान संभव नहीं?

ऐसे में महाराष्ट्र में क्या मतदाता फिर से एकतरफ़ा मतदान करेगा, ऐसा नज़र नहीं आता और यदि मिश्रित मतदान हुआ तो उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र ऐसा दूसरा राज्य होगा जहाँ बीजेपी को बड़ा झटका लगने जा रहा है। महाराष्ट्र की राजनीति को समझने के लिए इसे हमें दो काल खंडों में बाँटना होगा। 

  1. एक राष्ट्रवादी कांग्रेस से उदय के पहले का।
  2. दूसरा उसके उदय के बाद का।

राष्ट्रवादी कांग्रेस की स्थापना साल 1999 में हुई। उससे पहले के चुनावों के परिणाम देखें तो महाराष्ट्र राज्य के गठन के बाद से पहली बार साल 1996 में हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन सबसे ख़राब रहा। उस चुनाव में कांग्रेस को 15 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी, जबकि भारतीय जनता पार्टी को 18 और शिवसेना को 15 सीटें मिली थीं। कांग्रेस का यह प्रदर्शन 1977 में आपातकाल के बाद हुए चुनाव से भी ज़्यादा ख़राब रहा था। 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 20 सीटें जीतने में सफलता मिली थी। जनता पार्टी के बैनर तले भारतीय लोकदल और भारत की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और अन्य छोटे दलों के गठबंधन को 28 सीटें जीतने में सफलता मिली थी। 1998 में हुए लोकसभा चुनावों में फिर से कांग्रेस ने अपना पुराना प्रदर्शन दोहराया था। पार्टी ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इण्डिया यानी आरपीआई के सभी गुटों को एक कर बड़ा गठबंधन बनाया था जिसमें प्रमुख भूमिका निभायी थी शरद पवार ने। 1998 के इस चुनाव में कांग्रेस गठबंधन ने 38 सीटें जीती थीं जिसमें आरपीआई का हिस्सा 6 सीटों का रहा। 

1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस का उदय हुआ और कांग्रेस के वोटों में बड़ा बँटवारा हुआ और कांग्रेस पार्टी 10 सीटों पर सिमट कर रह गयी। राष्ट्रवादी को उस चुनाव में 6 सीटें मिलीं लेकिन शिवसेना 14 और बीजेपी 13 सीटें जीत कर बड़ा गठबंधन बनीं।

2004 में कांग्रेस ने फिर अपनी स्थिति में थोड़ा सुधार किया और 13 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि एनसीपी को 9 सीटें मिलीं। बीजेपी को 13 व शिवसेना को 12 सीटें मिलीं। 1999 के चुनाव के बाद कमोबेश चुनाव परिणाम 60:40 के अनुपात के इर्द-गिर्द घुमते रहे।

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किस करवट बैठेगा ऊँट?

2009 के चुनावों में कांग्रेस ने 17 और एनसीपी ने 8 सीटें जीतीं जबकि शिवसेना 11 व बीजेपी ने 9 पर सफलता हासिल की। 2014 के परिणाम जिसमें बीजेपी ने 23 व शिवसेना ने 18 व एक उनके गठबंधन की स्वाभिमानी शेतकरी संगठन को मिलाकर कुल 42 सीटों पर जीत हासिल की। अब तक हुए 16 लोकसभा चुनावों में प्रदेश के मतदाताओं ने कांग्रेस और उसके गठबंधन को ही सबसे ज़्यादा सीटें दी हैं। अब 17वीं बार वे क्या करेंगे यह बड़ा सवाल है, लेकिन जो माहौल ज़मीनी स्तर पर दिख रहा है उससे एक बात तो साफ़ है कि ऊँट किसी भी करवट बैठ सकता है। पहले चरण की 7 सीटों पर मतदान हो चुका है और जो रिपोर्टें आ रही हैं वे भी यह संकेत कर रही हैं कि मामला फ़िफ़्टी-फ़िफ़्टी जैसा ही है।

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संजय राय
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