1200 लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई
इस पूरे मामले में पुलिस ने 1200 से ज़्यादा लोगों के ख़िलाफ़ एहतियाती कार्रवाई की है। पुलिस के मुताबिक़, जिन लोगों के ख़िलाफ कार्रवाई की गई है उनमें दक्षिणपंथी हिन्दू नेता मिलिंद एकबोटे व सांस्कृतिक समूह कबीर कला मंच के सदस्य शामिल हैं।
शुक्रवार को हुई थी चंद्रशेख़र की गिरफ़्तारी
भीम आर्मी के संस्थापक और नेता चंद्रशेख़र आज़ाद उर्फ रावण को पुलिस ने शुक्रवार मुंबई के एक होटल में ही नज़रबंद रखा और शाम को गिरफ्तार कर लिया। दरअसल, चंद्रशेख़र भीम राव आंबेडकर की चैत्य भूमि में दादर जाकर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहते थे लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही उन्हें पकड़ लिया गया था। भीमा कोरेगाँव में सभा करने के लिए पुलिस ने उन्हें इजाज़त नहीं दी थी उसके बावजूद भी वह सभा करने पर आमादा थे। जिसके चलते पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। बता दें कि चंद्रशेखर ने एक वीडियो जारी करके कहा कि वे अपने सहयोगियों से बात करना चाहते थे लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक लिया। उन्होंने सरकार से पूछा कि उन्होंने कौन सा कानून तोड़ा है जिसके लिए उन्हें गिरफ़्तार किया गया है।
पिछले साल भड़क उठी थी हिंसा
पिछले साल 31 दिसंबर 2017 को 'भीमा कोरेगाँव शौर्य दिन प्रेरणा अभियान' के बैनर तले तमाम संगठनों ने एक साथ आकर भव्य रैली का आयोजन किया था। इस सभा के दौरान 'लोकतंत्र और संविधान बचाने' की बात कही गई थी। इसमें कई नामी गिरामी हस्तियाँ जैसे, प्रकाश आंबेडकर, हाईकोर्ट के पूर्व चीफ़ जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल, गुजरात से विधायक जिग्नेश मेवानी, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र उमर ख़ालिद शामिल हुए थे। इनके भाषणों के साथ-साथ कबीर कला मंच ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों को भी सबके सामने पेश किया था।![Bombay High Court denies interim relief to Bhim Army - Satya Hindi Bombay High Court denies interim relief to Bhim Army - Satya Hindi](https://satya-hindi.sgp1.digitaloceanspaces.com/app/uploads/30-12-18/5c28adb4482b2.jpg)
दलितों के लिए सालगिरह के मायने
भीमा कोरेगाँव पेशवाओं के नेतृत्व वाले मराठा साम्राज्य और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुए युद्ध के लिए मशहूर है। इस युद्ध में मराठा सेना को क़रारी हार का सामना करना पड़ा था। ऐसी मान्यता है कि ईस्ट इंडिया कंपनी को महार रेजीमेंट के सैनिकों की बहादुरी की वजह से ही जीत मिली थी। बाद में भीमराव आंबेडकर यहां हर साल आते रहे। इसके बाद यह जगह पेशवाओं पर महारों यानी दलितों की जीत के एक स्मारक के तौर पर स्थापित हो गई। इसके बाद हर साल इस दिन उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।
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