महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने बदलापुर नगर परिषद चुनाव में प्रभावशाली म्हात्रे परिवार के छह सदस्यों को टिकट देकर महायुति गठबंधन के अंदर राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। इस फैसले का सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे बड़े सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कड़ा विरोध किया है। इसकी खास वजह है। बीजेपी के सारे समीकरण निकाय चुनाव में गड़बड़ा गए हैं। कहीं तो उसे शिवसेना (शिंदे) से चुनौती मिल रही है। कहीं उसे सहयोदगी एनसीपी (अजित पवार) से चुनौती मिल रही है। निकाय चुनाव ने ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे को एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी के लिए मजबूर किया। शिंदे ने अप्रत्यक्ष तौर पर रावण का जिक्र किया तो फडणवीस ने कहा था कि वो राम वाले हैं, लंका जला देंगे। ये इशारा शिंदे और उनकी पार्टी की तरफ माना गया। 

बदलापुर का असरदार परिवार कौन है

शिवसेना के शहर अध्यक्ष वामन म्हात्रे, जो स्थानीय राजनीति में दबदबा रखते हैं, खुद अपनी पत्नी, बेटे, भाई, भाभी और भतीजे के साथ चुनाव मैदान में हैं। 39 सीटों वाली इस नगर परिषद में एक ही परिवार से जुड़े छह उम्मीदवारों को टिकट देने के फैसले पर भाजपा ने शिंदे सेना पर “खुलेआम परिवारवाद” को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। भाजपा का कहना है कि इससे यह साबित होता है कि पार्टी में जमीनी स्तर के सक्षम कार्यकर्ताओं की कमी है। इस विवाद ने परिवारवाद बनाम पुराने वफादार कार्यकर्ताओं की वफादारी के बड़े मुद्दे को फिर से गरमा दिया है। म्हारे परिवार के चुनाव लड़ने से बीजेपी को यह लड़ाई मुश्किल भरी दिख रही है। सरकार में सहयोगी दल होने के कारण बीजेपी म्हारे परिवार का समर्थन बीजेपी को मानकर चल रही थी। लेकिन म्हारे परिवार डिप्टी सीएम शिंदे से जुड़ा हुआ है।
बदलापुर में म्हात्रे परिवार का चुनावी दबदबा करीब एक दशक पुराना है। 2015 के नगर निकाय चुनाव में परिवार के चार सदस्य पार्षद चुने गए थे। इस बार उनका और विस्तार हुआ। महाराष्ट्र राजनीति में सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बदलापुर का मामला बन गया है।
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गठबंधन के अंदर असंतोष तब और बढ़ गया जब शिंदे गुट ने पूर्व पार्षद प्रवीण राऊत को भी तीन टिकट दिए, जिनकी पत्नी शीतल राऊत और साली विजया राऊत भी मैदान में हैं। परिवारवाद की इस दूसरी लहर से बीजेपी और भी बौखलाई। क्योंकि बीजेपी को शिवसेना के स्थानीय कार्यकर्ताओं से मदद की उम्मीद थी। लेकिन शिंदे ने टिकट देकर उन्हें बांध दिया। पार्टी के भीतर पुराने कार्यकर्ता खुद को हाशिए पर महसूस कर रहे हैं, हालांकि ज्यादातर ने खुलकर बोलने से परहेज किया है।

हालांकि परिवारवाद सिर्फ एक खेमे तक सीमित नहीं है। भाजपा में भी बदलापुर शहर अध्यक्ष राजेंद्र घोरपडे खुद पार्षद का चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि उनकी पत्नी रचिता घोरपडे को नगराध्यक्षा पद के लिए उतारा गया है।

विपक्षी शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) खेमे में भी परिवारवाद साफ दिख रहा है, जहां स्थानीय नेता प्रशांत पालांडे और प्राची पालांडे एक ही वार्ड में अलग-अलग पैनल से चुनाव लड़ रहे हैं। इन उम्मीदवारी से साबित होता है कि राजनीतिक परिवार सभी पार्टियों में अपना दबदबा बनाए हुए हैं और बदलापुर की स्थानीय चुनावी राजनीति में वंशवाद आज भी मजबूती से कायम है। बीजेपी भी उससे बच नहीं पाई लेकिन उसके समीकरण गड़बड़ाए हुए हैं तो वो शिंदे सेना पर हमला कर रही है।

महाराष्ट्र में भाजपा का परिवारवाद 

भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर परिवारवाद के खिलाफ सबसे ऊँची आवाज उठाती है, लेकिन महाराष्ट्र में उसने भी धीरे-धीरे वंशवादी राजनीति को पूरी तरह अपनाया हुआ है। राज्य में भाजपा अब “परिवारवाद-मुक्त” पार्टी नहीं रही। 
रावसाहेब दानवे परिवार (जालना-मराठवाडा)-  रावसाहेब दानवे (केंद्रीय मंत्री, 5 बार सांसद) की बेटी संतोष दानवे जालना जिला परिषद अध्यक्ष रही हैं। बहू रचना दानवे वर्तमान में जालना की महापौर। दूसरा बेटा भी भाजपा युवा मोर्चा में सक्रिय।
गोपीचंद पडलकर परिवार (सातारा-फलटण)- गोपीचंद पडलकर (विधायक, जिला परिषद में लंबा प्रभाव), भाई, भतीजे और रिश्तेदारों को जिला परिषद, पंचायत समिति और सहकारी संस्थाओं में पद।
पंकजा मुंडे परिवार (बीड)- बीजेपी के बड़े नेताओं में शुमार स्व. गोपीनाथ मुंडे के निधन के बाद बेटी पंकजा मुंडे (पूर्व मंत्री, अब विधायक) को बीजेपी राजनीति में लाई। भतीजी यशोमती ठाकुर भी बीजेपी में रहीं। लेकिन दूसरे भांजे धनंजय मुंडे बाद में एनसीपी में चले गए। पंकजा की बेटी को भी अब मंच पर लाया जा रहा है।
विनोद तावड़े परिवार (मुंबई-ठाणे)-  विनोद तावड़े (पूर्व मंत्री) के भाई और रिश्तेदार पालघर-बोइसर क्षेत्र में सक्रिय।
चंद्रशेखर बावनकुले परिवार (नागपुर-कामठी)- प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले के भाई और बेटे को नगरसेवक और जिला परिषद में स्थान मिला।
सुरेश हलवंकर-घोरपडे परिवार (ठाणे-बदलापुर)- बदलापुर शहर अध्यक्ष राजेंद्र घोरपडे (नगरसेवक) की पत्नी रचिता घोरपडे को नगराध्यक्षा पद का टिकट (हालिया विवाद) मिला।
आशीष शेलार परिवार (मुंबई बांद्रा)- आशीष शेलार (विधायक) की पत्नी प्रतिभा शेलार मुंबई भाजपा महिला मोर्चा की प्रमुख।

स्थानीय निकायों में भी परिवारवाद

ठाणे, पुणे, नाशिक, औरंगाबाद, नागपुर महानगरपालिका में 25–30% भाजपाई नगरसेवक या तो मौजूदा विधायक/सांसद के रिश्तेदार हैं या पूर्व विधायक के परिवार से हैं। जिला परिषद चुनावों में भाजपा अब खुलकर “पति-पत्नी”, “भाई-बहन”, “ससुर-बहू” की जोड़ियाँ उतारती है। मौजूदा चुनाव में भी ये सब चल रहा है।
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राष्ट्रीय नेतृत्व भले ही “परिवारवाद नहीं चलेगा” का नारा देता रहे, लेकिन महाराष्ट्र में भाजपा ने पिछले 10 साल में पूरी तरह वंशवादी ढांचा अपना लिया है। आज अगर आप भाजपा में बिना किसी राजनीतिक परिवार के बैकग्राउंड के विधायक या महापौर बनना चाहते हैं तो यह लगभग असंभव हो गया है। ठीक यही स्थिति जो कभी कांग्रेस और एनसीपी-शिवसेना में दशकों से थी। महाराष्ट्र की भाजपा अब “परिवारवाद विरोधी” नहीं, बल्कि “परिवारवाद अपनाने वाली” पार्टी बन चुकी है।