सोमनाथ की फोटो के साथ प्रदर्शन करते दलित कार्यकर्ता।
सोमनाथ के भाई प्रेमनाथ का कहना है कि “सोमनाथ सीखने को अपने जीवन को बेहतर बनाने और दूसरों की मदद करने का एक तरीका मानते थे, सोमनाथ कहते थे, 'जिथे स्थान, दशम काम, अनी दशम शिक्षण (जहाँ भी जाओ, काम और शिक्षा ढूँढ़ो)'।" सोमनाथ खुद भी इसी सिद्धांत पर चलते थे। उन्होंने अलग-अलग पाठ्यक्रमों के लिए दाखिला लिया। लेकिन रोटी-रोजी के लिए एक शहर से दूसरे शहर, जैसे औरंगाबाद, लातूर, परभणी और पुणे में रोटी-रोजी के लिए जाते रहते थे। प्रेमनाथ का कहना है कि सोमनाथ बड़ा वकील बनकर जरूरतमंदों को मुफ्त कानूनी मदद देने की बातें कहते थे।
10 दिसंबर को दलितों का विरोध प्रदर्शन हिंसक होने के बाद 11 से 12 दिसंबर के बीच पुलिस कार्रवाई में सोमनाथ सहित लगभग 50 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। स्थानीय लोगों का दावा है कि पुलिस रात में दलित बस्तियों में आई और यहां तक कि महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया। सोमनाथ को शंकर नगर, जो कि एक बड़ी दलित बस्ती है, से उठाया गया और दो दिनों के लिए पुलिस हिरासत में भेज दिया गया। 15 दिसंबर को परिवार को बताया गया कि सोमनाथ का "दिल का दौरा" पड़ने से मौत हो गई है।
सोमनाथ की मां विजयाबाई ने बताया कि इस डर से कि सोमनाथ की मौत पर गुस्सा और अधिक हिंसा भड़का सकता है, पुलिस ने परिवार से कहा कि वे शव को वापस परभणी नहीं ले जा सकते। पुलिस ने मुझसे पूछा कि अगर स्थिति बिगड़ती है तो क्या मैं जिम्मेदारी लूंगी। मैंने उनसे पूछा कि क्या वे मेरे बेटे की मौत की ज़िम्मेदारी लेते हैं।”
सीएम ने इसे “समुदायों को एक-दूसरे के खिलाफ लड़ाने” की साजिश बताते हुए कहा: “संविधान के अपमान का जातियों और समुदायों से कोई लेना-देना नहीं है। हम राजनेताओं को तनाव कम करने के लिए काम करना चाहिए।” सोमनाथ के परिवार के लिए 5 लाख रुपये की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि 10 दिसंबर का विरोध काफी हद तक शांतिपूर्ण था, लेकिन 200 लोगों ने इसे अशांत कर दिया। हालांकि फडणवीस ने विधानसभा में जो बताया उसे स्थानीय लोग पचा नहीं पा रहे हैं, क्योंकि परभणी में तो पुलिस ने दलित बस्ती को घेर कर उनकी पिटाई की थी। तमाम लोगों को हिरासत में लिया गया था।