केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जब 'मेक इन इंडिया' की सिफ़ारिश की है तो सरकारी विभाग ही विदेश से खरीद क्यों कर रहे हैं? क्या विदेशों से अलग-अलग पार्ट्स ख़रीदकर देश में एसेंबल व पैकिंग कर सप्लाई कर देने से 'मेक इन इंडिया' का मक़सद पूरा होता है? ये सवाल इसलिए कि महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले सप्ताह अपनी एलीट कमांडो यूनिट 'फोर्स वन' के लिए अमेरिका निर्मित 15 बारेट मल्टी-रोल एडाप्टिव डिज़ाइन यानी एमआरएडी स्नाइपर राइफलों और इससे जुड़े सामान का ऑर्डर दिया है। यह ऑर्डर गृह मंत्रालय की उस सिफारिश के बावजूद की गई है, जिसमें राज्य पुलिस बलों को केंद्रीय सशस्त्र बलों की खरीद नीति का पालन करने और 'मेक इन इंडिया' पहल को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है।

फोर्स वन 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के बाद आतंकवाद से निपटने के लिए स्थापित की गई थी। यह देश की तीसरी ऐसी फोर्स है जो अपने सैनिकों को इस अत्याधुनिक स्नाइपर राइफल से लैस कर रही है। राइफलों का आयात भारतीय कंपनी द्वारा पार्ट्स के रूप में किया जा रहा है, जो इन्हें यहां असेंबल और पैकिंग कर रही है। दिप्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार कंपनी का दावा है कि यह प्रक्रिया 'मेक इन इंडिया' की ज़रूरतों को पूरा करती है। हालाँकि, जानकारों का कहना है कि यह आंशिक असेंबलिंग पूर्ण स्वदेशी उत्पादन से अलग है और आयात पर निर्भरता को कम नहीं करती।
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एमएचए की सिफारिश और खरीद नीति

गृह मंत्रालय ने पिछले साल के डीजी-आईजी सम्मेलन में यह सिफारिश दोहराई थी कि राज्य पुलिस बलों की खरीद नीतियाँ केंद्रीय सशस्त्र बलों के अनुरूप हों और 'मेक इन इंडिया' को प्राथमिकता दें। मंत्रालय का उद्देश्य रक्षा उपकरणों के उत्पादन में स्वदेशी कंपनियों को बढ़ावा देना है, ताकि आयात पर निर्भरता कम हो और आत्मनिर्भर भारत की दिशा मजबूत हो। तो क्या महाराष्ट्र पुलिस का यह ऑर्डर इस नीति का उल्लंघन है?

इस सवाल का जवाब ढूंढने से पहले यह जान लीजिए कि गृह मंत्रालय ने मेक इन इंडिया को लेकर क्या कहा था। गृह मंत्रालय द्वारा पिछले साल की डीजी-आईजी कॉन्फ्रेंस की सिफारिश में कहा गया था कि राज्य पुलिस बलों की खरीद नीतियाँ केंद्रीय सशस्त्र बलों की नीतियों का पालन करें और 'मेक इन इंडिया' पहल को बढ़ावा देने पर ध्यान दें। डीजी-आईजी कॉन्फ्रेंस राज्यों के विभिन्न पुलिस बलों, केंद्रीय बलों के प्रमुखों और वरिष्ठ अधिकारियों का वार्षिक जमावड़ा है।

'मेक इन इंडिया' को लेकर क्या सिफारिश?

दिप्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार कॉन्फ्रेंस में सिफारिश की गई थी, "राज्य पुलिस द्वारा हथियारों की खरीद सशस्त्र बलों की तर्ज पर की जाए, जिसमें 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा देने पर ध्यान हो।' एमएचए की नयी सिफारिशों में भी राज्य पुलिस बलों की खरीद में 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। इस साल अप्रैल में एमएचए ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस प्रमुखों और गृह सचिवों को लिखे पत्र में कहा कि वह पुलिस आधुनिकीकरण के लिए काम कर रहा है। पत्र में यह भी कहा गया कि सार्वजनिक खरीद में मेक इन इंडिया को प्राथमिकता दी जाए। इसमें कहा गया था कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भी डीजीपी-आईजीपी कॉन्फ्रेंस की सिफारिशों के अनुरूप हथियारों की खरीद की प्रक्रिया अपनानी चाहिए।
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ह्यूजेस प्रिसिजन मैन्युफैक्चरिंग के प्रबंधक अविनाश राही ने दिप्रिंट को बताया कि गोवा में कंपनी के विनिर्माण संयंत्र में हथियारों को असेंबल और पैक करने के लिए आयात शुल्क को घटकों में जोड़ा गया है। उन्होंने कहा, "इस सौदे के तहत 30,000 गोला-बारूद पूरी तरह से गोवा के हमारे विनिर्माण संयंत्र में बनाए जाएंगे और अगले साल तक इनमें से अधिकांश सहायक उपकरण और हथियार भारत में 'मेक इन इंडिया' पहल के तहत निर्मित किए जाएंगे।" उन्होंने आगे कहा, "हमारा बैरेट के साथ कुछ वर्षों से सहयोग है, और सभी उपकरण संयुक्त राज्य अमेरिका से आयात किए जाते हैं, जिसके बाद उन्हें भारतीय बलों के खरीदारों को डिलीवर करने से पहले असेंबल और पैक किया जाता है। सब कुछ 'मेक इन इंडिया' पहल के अनुसार अंतिम उत्पाद के लिए तैयार किया जाता है।"

भारतीय स्नाइपर राइफल क्यों नहीं?

हाल ही में फरवरी 2025 में आयोजित 'ऑल इंडिया पुलिस कमांडो प्रतियोगिता' में बेंगलुरु की एसएसएस डिफेंस द्वारा निर्मित स्वदेशी 'सेबर .338' स्नाइपर राइफल ने अमेरिकी बारेट एम82 .50 कैलिबर को पीछे छोड़ते हुए प्रथम स्थान हासिल किया। राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड यानी एनएसजी ने इस भारतीय राइफल का उपयोग किया। फोर्स वन ने पिछले साल यह प्रतियोगिता जीती थी, लेकिन इस बार दूसरे स्थान पर रही। जानकारों का कहना है कि यदि महाराष्ट्र पुलिस ने स्वदेशी विकल्प चुना होता तो यह 'मेक इन इंडिया' को मजबूती देता।
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फोर्स वन के हथियारों की स्थिति

मुंबई हमलों के बाद स्थापित फोर्स वन आतंकवादी खतरों से निपटने के लिए प्रशिक्षित है। इसमें लगभग 1000 कमांडो हैं, जो एनएसजी की तर्ज पर काम करते हैं। फिलहाल भारतीय पुलिस बलों में पुराने .303 लॉय एन्फील्ड राइफलें और एसएलआर जैसे हथियार प्रचलित हैं, लेकिन एलीट यूनिट्स में आधुनिक हथियार जैसे एके-47, हेकलर एंड कोच एमपी5 और आयातित स्नाइपर राइफलें हैं। 

इधर, भारतीय सेना ने अमेरिकी एसआईजी सॉयर असॉल्ट राइफलों के लिए 837 करोड़ रुपये का सौदा किया, जो स्वदेशीकरण के प्रयासों को झटका माना गया। 

बहरहाल, फोर्स वन के कमांडो जल्द ही इन राइफलों से लैस होंगे, लेकिन सवाल बाकी है: क्या यह 'मेक इन इंडिया' को मजबूत करेगा या कमजोर?