महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे ने केंद्र और राज्य सरकार पर हिंदी को मराठी पर थोपने का आरोप लगाते हुए कहा, 'महाराष्ट्र में हिंदी को मराठी पर थोपने की कोई भी कोशिश बर्दाश्त नहीं की जाएगी।' शिवसेना यूबीटी नेता आदित्य ठाकरे ने भी बीजेपी के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार के तीन भाषा नीति को वापस लेने के फ़ैसले को मराठी जनता की जीत क़रार दिया। इधर, सरकार की इस नीति के ख़िलाफ़ पाँच जुलाई के विरोध मार्च की जगह अब दोनों दल विक्ट्री परेड निकालने की तैयारी में हैं।

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी एमएनएस के प्रमुख राज ठाकरे ने कहा, 'हम हिंदू हैं, लेकिन हिंदी नहीं। मराठी हमारी मातृभाषा है, और इसकी गरिमा और सम्मान पर कोई आँच नहीं आने देंगे।' राज ठाकरे ने दावा किया कि केंद्र सरकार की तीन भाषा नीति मराठी भाषा और संस्कृति को कमजोर करने की साज़िश थी। इसमें हिंदी को अनिवार्य करने की बात थी।
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उन्होंने कहा, 'मराठी भाषा तीन हजार साल पुरानी है, जबकि हिंदी को डेढ़-दो सौ साल पुरानी भाषा के रूप में देखा जाता है। इसे मराठी पर थोपना स्वीकार्य नहीं है।' राज ठाकरे ने यह भी चेतावनी दी कि अगर सरकार ने ऐसी नीतियां लागू करने की कोशिश की, तो एमएनएस सड़कों पर उतरकर इसका विरोध करेगी। उनकी यह टिप्पणी 29 जून 2025 को महाराष्ट्र सरकार द्वारा तीन भाषा नीति को वापस लेने के फैसले के बाद आई। राज ठाकरे ने सरकार के इस फ़ैसले को मराठी जनता की एकजुटता की जीत बताया और कहा, 'यह निर्णय सरकार की कोई अक्लमंदी नहीं है। यह मराठी जनता के दबाव और एकता का नतीजा है।'

तीन भाषा नीति और उसकी वापसी

महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में एक प्रस्तावित नीति के तहत स्कूलों में पहली कक्षा से तीन भाषा नीति लागू करने की योजना बनाई थी, जिसमें मराठी, हिंदी और अंग्रेजी को शामिल करने की बात थी। इस नीति के तहत हिंदी को अनिवार्य करने का प्रस्ताव था, जिसका मराठी भाषी समुदाय और कई राजनीतिक दलों ने विरोध किया। राज ठाकरे और उनकी पार्टी एमएनएस ने इस नीति को "मराठी अस्मिता पर हमला" करार देते हुए तीखी आलोचना की।

29 जून 2025 को महाराष्ट्र सरकार ने बढ़ते विरोध के चलते इस नीति को लागू करने वाले दो सरकारी रद्द कर दिए। सरकार के इस फ़ैसले को राज ठाकरे ने मराठी जनता की जीत बताया और कहा कि यह मराठी भाषा और संस्कृति के लिए एक अहम क़दम है।

आदित्य ठाकरे ने क्या कहा

शिवसेना यूबीटी नेता आदित्य ठाकरे ने भी सरकार के तीन भाषा नीति वापस लेने के फैसले को मराठी जनता और विपक्ष के दबाव का परिणाम बताया। आदित्य ठाकरे ने एक बयान में कहा, 'मराठी भाषा और संस्कृति महाराष्ट्र की आत्मा है। इसे कमजोर करने की कोई भी कोशिश बर्दाश्त नहीं की जाएगी। सरकार को यह समझना होगा कि मराठी जनता अपनी भाषा और पहचान के लिए हमेशा एकजुट रहेगी।'
आदित्य ठाकरे ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि यह नीति केंद्र के इशारे पर लाई गई थी और इसे वापस लेना सरकार की मजबूरी थी। उन्होंने यह भी कहा कि शिवसेना यूबीटी मराठी भाषा और संस्कृति की रक्षा के लिए हमेशा खड़ी रहेगी।

मराठी भाषा का मुद्दा

मराठी भाषा और संस्कृति महाराष्ट्र की राजनीति में हमेशा से एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दा रही है। शिवसेना यूबीटी और अब एमएनएस जैसे दल मराठी अस्मिता को अपनी राजनीति का आधार बनाते रहे हैं। राज ठाकरे ने इस मुद्दे को बार-बार उठाकर मराठी भाषी वोटरों के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश की है।
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दूसरी ओर, बीजेपी और उसके सहयोगी दल इस मुद्दे पर सावधानी बरतते हैं, क्योंकि महाराष्ट्र में मराठी भाषा का मुद्दा भावनात्मक और राजनीतिक रूप से अहम है। तीन भाषा नीति को वापस लेने का फ़ैसला बीजेपी के लिए एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है, ताकि मराठी वोटरों के बीच अपनी छवि को नुकसान न पहुंचे।

महाराष्ट्र में शिवसेना यूबीटी और शरद पवार गुट की एनसीपी जैसे विपक्षी दलों ने इस नीति का विरोध किया। विपक्षी नेताओं ने इसे मराठी भाषा के खिलाफ एक साजिश करार दिया और सरकार पर दबाव बनाया। इस मुद्दे पर मराठी भाषी समुदाय में भारी नाराजगी थी, जिसके चलते सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़े।
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यह विवाद महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर भाषा और क्षेत्रीय अस्मिता के मुद्दे को केंद्र में ला चुका है। राज ठाकरे और आदित्य ठाकरे जैसे नेताओं ने इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश की है, ताकि मराठी वोटरों के बीच अपनी स्थिति मजबूत हो सके। दूसरी ओर, बीजेपी के लिए यह एक सबक है कि मराठी भाषा और संस्कृति से जुड़े मुद्दों पर सावधानी बरतनी होगी।

आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह मुद्दा 2026 के विधानसभा चुनावों में भी गूंजेगा और क्या एमएनएस और शिवसेना यूबीटी इसे अपने पक्ष में भुनाने में कामयाब होंगी।