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फ़ाइल फ़ोटो

महाराष्ट्र में 50-50 फ़ॉर्मूला: शिवसेना के पास होगा सत्ता का रिमोट?

'आमंच ठरलंय' यानी हमने तय कर लिया है! यह बात महाराष्ट्र में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान बार-बार कही गई। सीटों के बँटवारे का फ़ॉर्मूला क्या होगा? मुख्यमंत्री कौन बनेगा? उप-मुख्यमंत्री पद होगा या नहीं? ऐसे अनेक सवालों पर इन दोनों नेताओं का यही एक जवाब होता था, जो पत्रकारों के साथ-साथ राजनीतिक विश्लेषकों के लिए एक पहेली-सा बन गया था! लेकिन अब इस पहेली के डिकोड होने या रहस्य के उजागर होने का समय आ गया है। 

महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी की पहली बार सरकार 1995 में बनी थी। उस समय बालासाहब ठाकरे जीवित थे और सत्ता का रिमोट उनके हाथ में था। लेकिन पिछली बार यह रिमोट मातोश्री से निकलकर बीजेपी के हाथों में चला गया। नतीजा यह हुआ कि शिवसेना को उनकी बहुत-सी शर्तें माननी पड़ी थी। लेकिन अब इन चुनाव परिणामों में जब बीजेपी की सरकार बिना शिवसेना के नहीं बन सकती है। ऐसे में क्या उद्धव ठाकरे यह कोशिश करेंगे कि सत्ता का रिमोट उनके कब्ज़े में रहे?

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बीजेपी के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने प्रचार के दौरान बार-बार यह बात कही थी कि हमारे विरोध में लड़ने वाला ही कोई नहीं बचा है। फडणवीस कहते थे, ‘अगला मुख्यमंत्री मैं ही बनूँगा। हमें किसी की चुनौती ही नहीं है। अखाड़े में लड़ने के लिए कोई पहलवान ही नहीं बचा। शरद पवार का राजनीतिक करियर ख़त्म हो गया है।’ लेकिन जिस तरह का चुनाव परिणाम आया है उसने बीजेपी द्वारा मँगवाये गए उन पटाखों को डिब्बे में ही बंद रहने पर मजबूर कर दिया जो दीपावली से पूर्व ‘चुनावी जीत की दीवाली’ मनाने के लिए लाए गए थे। मुंबई में बीजेपी के कार्यालय के बाहर कार्यकर्ता जीत के जश्न का इंतज़ार करते रहे और शाम होते-होते यह ख़बर आयी कि मुख्यमंत्री ने अपने विधानसभा क्षेत्र नागपुर में निकाले जाने वाले जीत के जुलूस का कार्यक्रम भी रद्द कर दिया है।

बीजेपी-शिवसेना गठबंधन द्वारा जो 220 से अधिक सीटें जीतने का दावा किया जा रहा था वह आँकड़ा घूम फिर कर 161 ही रह गया। जो सीटें हासिल हुईं वह विश्वास मत के जादुई आँकड़े से महज 15 अधिक हैं। यानी थोड़े से फेरबदल से सरकार बनाने के इस ख्वाब को बड़ा झटका लग सकता था। ‘महाराष्ट्र में बड़ा भाई कौन’ का जो यक्ष प्रश्न उद्धव ठाकरे को पिछले पाँच साल से उलझन में डाले हुए था, अब उसका जवाब वह अपनी सहूलियत के हिसाब से दे सकते हैं!

ऐसे में सरकार कैसे बनेगी और कैसी बनेगी, इसको लेकर चर्चाओं का दौर जारी है। मुख्यमंत्री नागपुर में हैं और उद्धव ठाकरे शांत चित्त अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे हैं।

ठाकरे ने प्रेस के सामने भी यह कहा है कि काफ़ी समय है सरकार बनाने के लिए। साथ ही यह भी संकेत दे दिए कि अब ‘50-50’ फ़ॉर्मूला लागू होगा। तो क्या उद्धव ठाकरे उस कथित गुप्त समझौते के पत्ते खोलने वाले हैं?

इस ‘50-50’ फ़ॉर्मूला का एक सीधा-सा अर्थ अब तक जो निकाला जाता रहा है वह है- ढाई-ढाई साल दोनों पार्टियों के मुख्यमंत्री रहेंगे। ऐसे में देवेंद्र फडणवीस के उस दावे का क्या होगा जो वह हर सभा में करते थे कि अभी भी मैं ही मुख्यमंत्री हूँ और चुनाव बाद भी मैं ही रहूँगा। गुरुवार को जैसे ही शिवसेना की सीटों का आँकड़ा बढ़ने लगा था, पार्टी के नेताओं के दिल में से जैसे कुछ पुरानी बातें बाहर निकलने लगी थीं। उद्धव ठाकरे के दिल से भी ऐसी ही बातें प्रेस के सामने निकलकर आयीं। उन्होंने कहा कि सीटों के बँटवारे के समय मैंने भारतीय जनता पार्टी की बहुत-सी अड़चनों का ध्यान रखा और उनकी सहूलियत के हिसाब से सीटों का गठबंधन किया, लेकिन ऐसा मैं हर दम थोड़े ही करता रहूँगा। उन्होंने कहा कि अब वह समझौता लागू करने का वक़्त आ गया है जो तय हुआ था। 

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बाला साहब से किया वादा पूरा करने में जुटे हैं उद्धव?

उद्धव ठाकरे ने विधानसभा चुनावों में कम सीटें मिलने के बावजूद गठबंधन नहीं तोड़ा था। वह अपने कई भाषणों में यह कहते रहे कि उनकी पहली प्राथमिकता अपनी पार्टी को बचाने की है। शायद उन्हें इस बात का अंदेशा था कि जैसे कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के विधायक, नेता अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी में जा रहे थे वैसा उनकी पार्टी के साथ भी हो सकता था। गठबंधन को व्यावहारिक बताने के लिए उद्धव ठाकरे यह भी कहते थे कि उन्होंने अपने पिता शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे से यह वादा किया है कि एक न एक दिन वह किसी ‘शिव सैनिक’ को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर ज़रूर बिठाएँगे। तो क्या उद्धव अब अपने उस वादे को पूरा करने जा रहे हैं? 

वैसे कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बालासाहब थोरात की तरफ़ से उन्हें एक खुला प्रस्ताव मिला है। थोरात का यह प्रस्ताव पत्रकारों के सवाल के जवाब में आया। उनसे पूछा गया कि क्या शिवसेना को साथ लेकर कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस सरकार बनाने के विकल्प सोच सकती है? इस पर उन्होंने कहा-

पहले शिवसेना को हिम्मत दिखानी चाहिए। शिवसेना को बीजेपी के प्रभाव में नहीं रहना है और उससे घबराना भी नहीं है, यह उन्हें तय करना होगा। यदि वे इस दिशा में आगे बढ़ते हैं तो हम दोनों पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं से इस बारे में चर्चा कर सकते हैं।


बालासाहब थोरात, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष

वैसे पत्रकारों ने यही सवाल राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रमुख शरद पवार से भी पूछा था। शरद पवार ने इस बार इस सम्बन्ध में कोई खुली पहल नहीं की। पिछली बार बीजेपी को बहुमत से थोड़ा दूर देख पवार ने यह घोषणा कर दी थी कि उनकी पार्टी बिना शर्त समर्थन देने को तैयार है। पवार के इस वक्तव्य से बाद उनकी काफ़ी किरकिरी हो गयी थी क्योंकि शिवसेना ने गठबंधन में शामिल होकर सरकार बना ली थी। 

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी मीडिया के समक्ष एक बात कहकर अटकलों को बढ़ा दिया है कि कुछ निर्दलीय विधायक उनके साथ हैं? तो क्या सरकार के गठन को लेकर आने वाले कुछ दिनों तक रस्साकसी चलती रहेगी?

वैसे शिवसेना के नेताओं का जो रुख देखने को मिल रहा है उससे यह बात तो साफ़ है कि वे समझौते के लिए अपनी बहुत-सी शर्तें लादने वाले हैं। मंत्रिमंडल में बराबर की हिस्सेदारी, मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्रिमंडल में अतिरिक्त सीट, प्रदेश के अनेक महामण्डल में उनकी पार्टी के नेताओं को अध्यक्ष का पद जो पिछली सरकार के पूरे कार्यकाल के दौरान भरे ही नहीं गए, आदि। शिवसेना को भले ही कम सीटें मिली हैं लेकिन बीजेपी की घटी हुई सीटों की वजह से इस बार का समीकरण उलझने वाला है। शरद पवार इस बार बीजेपी को सहज समर्थन देने की बजाय इस इंतज़ार में रहेंगे कि दोनों के बीच कोई टकराव की स्थिति उत्पन्न हो ताकि सत्ता का नया समीकरण बनाया जा सके। कांग्रेस -राष्ट्रवादी कांग्रेस और उनकी सहयोगी पार्टियों का आँकड़ा भी 100 के क़रीब है, इसलिए नए समीकरण बनने के विकल्प कई हो सकते हैं।

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संजय राय
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