हिन्दुस्तान के इतिहास में पहली बार 1990 में लोगों को अहसास हुआ कि इस देश में चुनाव आयोग जैसी कोई संस्था भी है, जिसके पास कोई ताक़त भी है और वह स्वतंत्र तौर पर काम कर सकती है। वर्ना अन्य सरकारी एजेंसियों की तरह यह भी एक सरकारी एजेंसी की तरह है , ऐसी धारणा आम लोगों के मन में सहज रूप से विद्यमान थीं।