आदिपुरुष फिल्म पर विवाद क्या बिना कारण है? इसके संवाद पर इतने सवाल क्यों उठ रहे हैं? मनोज मुंतशिर के संवाद में आख़िर क्या गड़बड़ियाँ हैं?
“तम अभ्यभाष सौमित्रे सुग्रीव सचिवम् कपिम्।वाक्यज्ञं मधुरैर वाक्यैः सनेहयुक्तम अरिंदमम।।”
न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ–यजुर्वेद धारिणः।न अ–साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम्।।
नूनम् व्यकरणम् कृत्स्नम् अनेन बहुधा श्रुतम् |बहु व्याहरता अनेन न किंचित् अप शब्दितम् ||
वाल्मीकि हो या तुलसी या फिर मैथिलीशरण गुप्त, पूरी रामकथा में हनुमान जी की भाषा उनके ज्ञानपक्ष को उद्घाटित करती है। कंबन, कृतिवास आदि बाकी के सभी रामायणों में भी हनुमान ज्ञानशील भक्त के तौर पर दिखते हैं।
मैं मेघनाथ कहलाता हूँ, बैरी को सदा हराया है।जीता है मैंने स्वर्गलोक, पद इन्द्रजीत का पाया है।।पर तू भयभीत न हो मन में, बल नहीं तुझे दिखलाउंगा।श्रीमान पिताजी के सम्मुख, केवल तुझे ले जाऊँगा।।हनुमत बोले युद्ध कर, बातों का क्या काज।इन्द्र्जालिये खेल ले, इंद्रजाल सब आज।।यदि तुझको कुछ बन पड़े नहीं, तो अभी पिता को बुलवाले।क्यों खड़ा हुआ मुहँ तकता है, अपने सब कर्तब दिखलाले।।तेरा मेरा रण ही क्या है, मैं तुझको खेल खिलाता हूँ।तू मेघनाथ कहलाता है, मैं रामदास कहलाता हूँ।।तू इन्द्रजीत छलवाला है, मैं कामजीत बलवाला हूँ।तू दीपक है, मैं हूँ मशाल, रविकुल रवि का उजियाला हूँ।।
लंकेश्वर की सभा में, पहुंचे जभी कपीश।क्रोधित होकर उसी क्षण, बोल उठा दशशीश।।रे वानर तू कौन है, क्या है तेरा नाम।आया क्यों दरबार में, क्या है मुझसे काम।।तू कौन कहाँ से आया है, कुछ अपनी बात बता बनरे।उद्धान उजाड़ा क्यों मेरा, क्या कारण था बतला बनरे।।लंका के राजा का तूने, क्या नाम कान से सुना नहीं।तू इतना ढीठ निरंकुश है, मेरे प्रताप से डरा नहीं।।मारा है अक्षकुवंर मेरा, तो तेरा क्यों न संहार करूं।तू ही न्यायी बनकर कहदे , तुझसे कैसा व्यवहार करूं।।ब्रह्मफ़ांस से मुक्त हो, बोले कपि सविवेक।उत्तर कैसे एक दूँ, जब हैं प्रश्न अनेक।।दशमुख की प्रश्न-पुस्तिका के, पन्ने क्रम-क्रम से लेता हूँ।पहला जो पूछा सर्व प्रथम, उसका ही उत्तर देता हूँ।।सच्चिदानंद सर्वदानंद, बल बुद्धि ज्ञान सागर हैं जो।रघुवंश शिरोमणि राघेवेंद्र, रघुकुल नायक रघुवर हैं जो।।जो उत्त्पत्ति स्थिति प्रलय रूप, पालक पोषक संहारक हैं।इच्छा पर जिनकी विधि-हरिहर, संसार कार्य परिचालक हैं।।जो दशरथ अजर बिहारी हैं, कहलाते रघुकुल भूषण हैं।रीझी थी जिनपर सूपर्णखा, हारे जिनसे खरदूषण हैं।।फिर और ध्यान देलो जिनकी, सीता को हरकर लाये हो।मैं उन्हीं राम का सेवक हूँ, तुम जिनसे वैर बढाये हो।।