loader

तीरथ पर 'तीर' से घायल होंगी ममता भी!

उत्तराखंड में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को अपदस्थ करने वाला बाण क्या पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को भी घायल करने वाला साबित होगा? एक तीर से दो निशाने- ऐसी कोशिश हर शिकारी करता है। क्या सियासत की दुनिया में बीजेपी खुद को सबसे बड़ा शिकारी साबित करने की कोशिश में है? 

‘मुक्ति का मार्ग’ बना ‘तीरथ वध’

बीजेपी यह जान चुकी थी कि तीरथ सिंह रावत में दम नहीं कि वह अपनी सरकार की वापसी या बीजेपी की जीत का तीर्थाटन करा सकेंगे। संभवत: यही वजह है कि ‘बयानवीर’ तीरथ पर कभी आलाकमान ने अंकुश नहीं लगाया। नेतृत्व की चुप्पी से आह्लादित होते रहे तीरथ सिंह रावत गलतियां दोहराते रहे। भ्रष्टाचार के किस्से भी पनपे। और, आखिरकार कुंभ का ठीकरा भी उन पर ही फोड़ दिया गया। 

मोदी-शाह का नेतृत्व महाकुंभ के आयोजन से पैदा हुए कोरोना-शोक की वजह न मान लिया जाए, इसकी व्यवस्था ‘तीरथ वध’ के जरिए कर दी गयी है। एक तरह से नेतृत्व के लिए ‘मुक्ति का मार्ग’ बन गया ‘तीरथ वध’।

‘वर्चुअल’ संवैधानिक संकट!

‘तीरथ वध’ की वजह संवैधानिक संकट की आड़ में गढ़ी गयी है। एक ऐसा संवैधानिक संकट जो उपस्थित हुआ ही नहीं। कोरोना के दौर में वर्चुअल मीटिंग-वर्चुअल रैली करते-करते वर्चुअल संकट का भी अभ्यास कर लिया गया। यह उत्तराखंड में वर्चुअल है लेकिन पश्चिम बंगाल में एक्चुअल होगा! 

क्या सचमुच पश्चिम बगाल में उपचुनाव उसी तर्ज पर नहीं हो सकते हैं जिस तर्ज पर उत्तराखंड में नहीं होने के आसार बताते हुए बीजेपी अगले कदम की ओर चल पड़ी है? कहीं यह चुनाव आयोग के लिए मौन निर्देश तो नहीं?

ताज़ा ख़बरें
माना कि संवैधानिक व्यवस्था में छह महीने के भीतर एक मुख्यमंत्री के लिए निर्वाचित होना जरूरी है। माना कि जब चुनाव में एक साल बाकी रह जाए तो चुनाव कराने से चुनाव आयोग इनकार भी कर सकता है। माना कि कोविड की महामारी में अदालतों की फटकार सुनते रहे चुनाव आयोग में साहस नहीं कि उपचुनाव संपन्न कराए। मगर, क्या वास्तव में उत्तराखंड में ऐसी स्थिति पैदा हो गयी थी कि तीरथ सिंह रावत के लिए निर्वाचित होने के अवसर खत्म हो गये थे?
चुनाव आयोग ने ऐसी कोई घोषणा नहीं की थी कि 10 सितंबर से पहले उत्तराखंड में चुनाव नहीं कराए जा सकते। फिर संवैधानिक संकट खड़ा कैसे हुआ? कैसे यह स्वयं मान लिया गया कि 10 सितंबर से पहले चुनाव आयोग चुनाव नहीं करा सकता?

मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को इस बाबत परेशान होना चाहिए था, लेकिन उन्होंने स्वयं प्रश्न खड़ा किया और स्वयं उत्तर भी बन गये। ऐसा तीरथ सिंह रावत ने अपनी मर्जी से किया या कि बीजेपी आलाकमान की मर्जी ही उनकी मर्जी बन गयी? 

SC खारिज कर चुका है तर्क

9 मई, 2018 को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने प्रमोद लक्ष्ण गुणाधे बनाम निर्वाचन आयोग के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 151-ए के तहत दिए गये इस तर्क को खारिज कर दिया था कि जब अवधि कम है तो चुनाव कराना जरूरी नहीं है। हालांकि वह मसला लोकसभा चुनाव के संदर्भ में था लेकिन किसी भी चुनाव के संदर्भ में यह लागू होता है।

CM Mamata banerjee bypolls 2021 in bengal - Satya Hindi

मुख्य न्यायाधीश ने कहा था, “अधिनियम उचित अधिकारी को यह दायित्व भी देता है कि वह देखे कि कोई चुनाव क्षेत्र अनिश्चित काल के लिए प्रतिनिधित्वहीन न रहे। ऐसा इसलिए क्योंकि चुने हुए प्रतिनिधि पर अपने चुनाव क्षेत्र के लोगों की चिंताओं को व्यक्त करने की जिम्मेदारी होती है। अगर उनको क़ानून में इस तरह का अधिकार मिला है तो वोटरों को उनके इस अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता है।”

यह आश्चर्य का विषय है कि 10 मार्च को तीरथ सिंह रावत ने शपथ ली और 2 जुलाई को उन्होंने इसलिए इस्तीफा दे दिया क्योंकि उन्हें 10 सितंबर तक निर्वाचित होने का विश्वास नहीं था। 10 मार्च 2021 से आगे उत्तराखंड विधानसभा का कार्यकाल मार्च 2022 तक यानी पूरे एक साल के लिए था।

छह महीने के भीतर निर्वाचित होने की शर्त 10 सितंबर को पूरी होती, जिसके बाद भी 6 महीने का समय था। ऐसे में तीरथ सिंह में विश्वास की कमी किसने पैदा की- चुनाव आयोग ने या फिर बीजेपी आलाकमान ने?
जैसा कि ऊपर चर्चा है कि जन प्रतिनिधित्व कानून पर सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट व्याख्या के बाद किसी संवैधानिक संकट की संभावना ही नहीं रह जाती है। ऐसी कोई आशंका तभी पैदा हो सकती थी जब खुद चुनाव आयोग चुनाव कराने की जिम्मेदारी को निश्चित समय पर पूरा करने की संभावना से इनकार कर देता। लेकिन, ऐसी कोई स्थिति नहीं बनी।
तीरथ सिंह रावत प्रकरण ने पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के लिए सीधा संदेश दिया है। 5 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाली ममता बनर्जी के लिए 5 नवंबर से पहले निर्वाचित होना जरूरी है।

ममता को छोड़नी होगी कुर्सी 

उत्तराखंड ही की तरह पश्चिम बंगाल में भी विधानपरिषद नहीं है। ऐसे में अगर चुनाव आयोग 5 नवंबर से पहले चुनाव नहीं कराता है तो ममता के लिए मुख्यमंत्री पद पर बने रहना संभव नहीं रह जाएगा। चुनाव आयोग कोविड की महामारी को अपने फैसले की विवशता के रूप में पेश कर सकता है। अगर ऐसा हुआ तो ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ जाएगा और अपनी जगह किसी और को कुर्सी पर पदासीन करना होगा।

विचार से और ख़बरें

हालांकि चुनाव आयोग की ऐसी मंशा को चुनौती देने के लिए ममता बनर्जी अदालत का रुख कर सकती हैं मगर संवैधानिक संकट को रोक पाने में वे सफल हो जाएं, इसकी भी कोई गारंटी नहीं है। क्या ऐसी ही स्थिति की संभावना का ताना-बाना बुनने का काम बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व कर रहा है? 

क्या इसीलिए तीरथ सिंह रावत का ‘बलिदान’ लिया गया है? तीरथ सिंह रावत को बीजेपी नेतृत्व कहीं और स्थापित कर खुश कर सकता है। मगर, पश्चिम बंगाल में तीरथ के बहाने जो तीर छोड़ा गया है उससे बचने के लिए ममता बनर्जी को अभी से मशक्कत करनी होगी। मतलब कि सियासत अब कुर्बानी लेने लगी है।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
प्रेम कुमार
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें