आपातकाल के बीते पचास साल हो गए। रुदाली आज शुरू कर रहे हो- “आपातकाल सही था”, “जेपी ग़लत थे”, “डॉ. लोहिया और जेपी सीआईए के एजेंट थे”? सच कहूँ तो ग़ुस्सा नहीं आता, तरस आती है, हम ये नहीं कहते कि जब आपातकाल लगा या 74 का छात्र आंदोलन चला तो आप पैदा भी नहीं होंगे, यह कहना जायज नहीं है, आपका पूरा हक है इस वाक़यात को जानें और उस पर जायज़ तार्किक बहस करें। आपकी सुविधा के लिए बता दूँ - अभी वाणी प्रकाशन से एक दमदार किताब आई है “1974“। इसका संपादन किया है उस समाय के दो मशहूर पत्रकार - अम्बरीश कुमार और अरुण कुमार त्रिपाठी ने।

आपातकाल की 50वीं बरसी पर याद करें वह ऐतिहासिक लम्हा जब लोकतंत्र के नायक जयप्रकाश नारायण सीधे इंदिरा गांधी के घर पहुंचे थे। इस मुलाकात के मायने क्या थे और उस दौर में देश किन हालातों से गुज़र रहा था?
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