‘वंदे मातरम्’ के 150वें वर्ष पर, जिसे भारत की संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया था, बीजेपी ने एक खुला झूठ बोला। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने “जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में अपने सांप्रदायिक एजेंडे को बढ़ावा देते हुए 1937 में केवल ‘वंदे मातरम्’ का छोटा रूप अपनाया।” प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस झूठ को दोहराते हुए कहा कि 1937 में राष्ट्रीय गीत की महत्वपूर्ण पंक्तियाँ हटा दी गईं और यह तक कहा कि इससे देश में विभाजन के बीज बोए गए।
गांधी व टैगोर का ‘वंदे मातरम्’ और पीएम मोदी का इतिहास ज्ञान!
- विचार
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- 9 Nov, 2025


गांधी व टैगोर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वंदे मातरम् संबंधी बयान के बाद गांधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर के विचार फिर चर्चा में हैं। दोनों नेताओं ने इस गीत को किस संदर्भ में देखा था और आज इसका राजनीतिक इस्तेमाल क्या संकेत देता है?
गांधी और टैगोर की नज़र में ‘वंदे मातरम्’
इस संदर्भ में यह याद करना ज़रूरी है कि 23 अगस्त 1947 को कोलकाता में एक प्रार्थना सभा में जब किसी ने "अल्लाह-ओ-अकबर" कहा और अन्य लोग "वंदे मातरम्" बोलने लगे तो गांधीजी ने साफ़ किया कि “वंदे मातरम्” कोई धार्मिक नारा नहीं, बल्कि एक राजनीतिक उद्घोष है।
उन्होंने बताया कि कांग्रेस ने इस विषय पर गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर से राय ली थी। टैगोर के सुझाव के अनुसार कांग्रेस कार्यसमिति के हिंदू और मुस्लिम दोनों सदस्यों ने यह निर्णय लिया कि गीत के शुरुआती दो छंद किसी को आपत्तिजनक नहीं लगते और इन्हें सबको मिलकर गाना चाहिए। गांधीजी ने कहा- “इसे कभी भी मुसलमानों का अपमान करने या उन्हें ठेस पहुँचाने के लिए नहीं गाना चाहिए।”





















