हमारे देश में पिछले करीब दो दशक से यानी जब से नव उदारीकृत आर्थिक नीतियां लागू हुई हैं, तब से सरकारों की ओर से आए दिन आंकड़ों के सहारे देश की अर्थव्यवस्था की गुलाबी तसवीर पेश की जा रही है और आर्थिक विकास के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहे सर्वे भी बताते रहते हैं कि भारत तेजी से आर्थिक विकास कर रहा है और देश में अरबपतियों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। इन सबके आधार पर तो तसवीर यही बनती है कि भारत के लोग लगातार खुशहाली की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन हकीकत यह नहीं है।

‘वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट-2020’ बताती है कि भारत खुशहाल देशों की सूची में पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल से पीछे है जबकि 2013 तक उसकी स्थिति ठीक थी। आख़िर ऐसा क्यों हुआ है।
हाल ही में जारी संयुक्त राष्ट्र की ‘वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट-2020’ में भारत को 144 वां स्थान मिला है। पिछले वर्ष भारत 140वें पायदान पर था और उससे पहले यानी 2018 में 133 वें और 2017 में 122 वें पायदान पर था। सर्वे में कुल 156 देश शामिल हैं।