चौबीस जून को जम्मू-कश्मीर के नेताओं के साथ हुई बातचीत से अगर सबसे ज़्यादा कोई खुश होगा तो वह हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। उन्हें वह सब कुछ मिल गया जो वे चाहते रहे होंगे। उन्हें एक ऐसा मेगा इवेंट मिल गया था, जिस पर देश ही नहीं, दुनिया भर की निगाहें लगी थीं और जो टीवी चैनलों तथा अख़बारों की सुर्ख़ियाँ बनने वाला था।
कश्मीर वार्ता की आड़ में संघ के एजेंडे को आगे बढ़ायेगी मोदी सरकार?
- विचार
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- 25 Jun, 2021

सरकार ने बस मुखौटा बदला है। वह कुछ समय के लिए लोकतांत्रिक और उदार दिखना चाहती है। प्रधानमंत्री के इस जुमले को कि वे दिलों और दिल्ली की दूरी को ख़त्म करना चाहते हैं, उनके पुराने जुमलों की पृष्ठभूमि के साथ ही देखा जाना चाहिए।
इवेंट भी शानदार ढंग से संपन्न हो गया। सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में बातचीत, सभी नेताओं के साथ ग्रुप फोटो और इवेंट के बाद मोटे तौर पर अच्छी-अच्छी प्रतिक्रियाएं भी। भारतीय मीडिया गदगद था, कोई भी वार्ता के संबंध में कोई सवाल या संदेह खड़ा करने के मूड में नहीं था।
फिर कोरोना महामारी से निपटने में असाधारण असफलताओं और विश्व स्तर पर छीछालेदर के बाद ये सुकून देने वाली घटना थी। कुछ समय के लिए लोगों का ध्यान बँटाने में ये सफल रही। इसे एक बड़ी पहल और उपलब्धि के तौर पर भी प्रस्तुत किया जा सकता है, चुनाव में तो इसका इस्तेमाल किया जाना तय ही है।