गणतंत्र की स्थापना यानी संविधान लागू किये जाने की हीरक जयंती का जश्न शुरू हुआ। दुनिया की नज़रें भारत पर टिक गईं। दुनिया ने ये देखकर ताली बजाई कि सबसे बड़े लोकतंत्र और स्वयंभू विश्वगुरू ने संसद में अपना पूरा वक्त उस नेता को गालियां देने में खर्च कर दिया जिसने इस देश में संसदीय लोकतंत्र की नींव रखी थी।
मोदी को नेहरू से कौन बचाएगा!
- विचार
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- 29 Mar, 2025

आखिर मोदी संसद में अपनी 11 साल की उपलब्धियों के बारे में कुछ कहते तो क्या कहते? क्या वक्त बीतने के साथ ही नरेंद्र मोदी नेहरू के सामने खुद को और ज्यादा निहत्था और असहाय नहीं पाएंगे?
चालीस और पचास के दशक में एशिया से लेकर लैटिन अमेरिका और अफ्रीका तक जितने भी देश आज़ाद हुए, उनमें देखते-देखते लोकतंत्र का नामो-निशान मिट गया। सिर्फ भारत में प्रजातांत्रिक व्यवस्था बची रही। आखिर क्या फर्क था? सबसे बड़ा फर्क सत्ता के शीर्ष पर जवाहर लाल नेहरू जैसे किसी व्यक्ति के होने और ना होने का था।
राकेश कायस्थ युवा व्यंग्यकार हैं। उनका व्यंग्य संग्रह 'कोस-कोस शब्दकोश' बहुत चर्चित रहा। वह 'प्रजातंत्र के पकौड़े' नाम से एक व्यंग्य उपन्यास भी लिख चुके हैं।