पाक की कमेटी में कई ऐसे सिख हैं, जो खालिस्तान का समर्थन करते हैं। ऐसे में डर यह है कि कहीं करतारपुर के बहाने वह खालिस्तान की माँग को फिर से उठाने की कवायद तो नहीं कर रहा।
पाकिस्तान के करतारपुर में स्थित दरबार साहिब गुरुद्वारा भारत और पाकिस्तान संबंधों की एक नई अग्निपरीक्षा है। पाकिस्तान की डगमगाती अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसकी ख़राब स्थिति के लिए यह आवश्यक है कि भारत के साथ कोई सार्थक राजनायिक पहल करके वह अपनी गिरती हुई साख को बचा ले। परन्तु पिछले दिनों अधिकारी स्तर पर हुई बातचीत के बहुत ही सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आये हैं। पाकिस्तान ने कहा है कि दरबार साहिब गुरुद्वारा करतारपुर कॉरिडोर के बारे में 80 प्रतिशत मुद्दों पर सहमति बन गई है और आगे की बातचीत की रुपरेखा तैयार है। लेकिन भारत की तरफ़ से इस बारे में कोई बयान नहीं आया है। सूत्रों के अनुसार, इस मुद्दे पर भारत-पाक के बीच गंभीर विवाद हैं।
सबसे पहली बात यह है कि भारत को पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अन्दर खालिस्तान समर्थकों की मौजूदगी स्वीकार नहीं है। इस विषय पर भारत ने अपनी तीख़ी आपत्ति भी जताई है। यही कारण है कि 14 मार्च 2019 की पहली बैठक के बाद भारत ने खालिस्तान समर्थक गोपाल सिंह चावला और बिशन सिंह के समिति में होने के कारण अगली बैठक जो 2 अप्रैल 2019 को होनी थी, में भाग लेने से मना कर दिया था।चावला, बिशन सिंह को हटाया
गोपाल सिंह चावला पाकिस्तान के दुर्दांत आतंकवादी हाफ़िज सईद का निकट सहयोगी है और उसका कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों को संचालित करने में भी बड़ा हाथ रहा है।
फिर भी पाकिस्तान अपने प्रयासों में ईमानदार नहीं दिख रहा है। उसने बिशन सिंह को कमेटी से हटाया तो ज़रूर पर आमिर सिंह, जो एक जाना-माना खालिस्तानी समर्थक है, को कमेटी का सदस्य बनाया है। इसके अलावा मनिंदर सिंह, तारा सिंह और कुलजीत सिंह जैसे लोग पाकिस्तान की सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी में हैं और ये तमाम लोग खालिस्तानी विचारधारा के हैं। यह देखना होगा कि भारत की सरकार इन नामों पर कब अपनी असहमति जताती है। तकनीकी रूप से यह पाकिस्तान का आंतरिक मामला है कि वह किसे गुरुदवारा प्रबंधक कमेटी में रखे या न रखे। परन्तु इन नियुक्तियों से पाकिस्तान की मंशा पर शक होता है कि कहीं करतारपुर के बहाने वह खालिस्तान की माँग को फिर से उठाने की कवायद तो नहीं कर रहा।
चूँकि यही प्रबंधक कमेटी यात्रियों के करतारपुर आगमन पर उनके साथ समन्वय और सहयोग करने वाली है। अतः यह आवश्यक है कि उसमें भारत विरोधी तत्व नहीं हों।
कई मसलों पर असहमत है भारत
इसके इलावा पाकिस्तान की शर्त यह भी है कि तीर्थ यात्रियों को शुल्क के साथ परमिट लेना होगा जबकि भारत किसी भी वीज़ा परमिट या किसी शुल्क के पक्ष में नहीं है। यहाँ पर पुनः पाकिस्तान की मंशा संदिग्ध प्रतीत होती है। अब कोई व्यक्ति समूह के साथ तीर्थ यात्रा पर जा रहा है या अकेले, इससे पाकिस्तान की सुरक्षा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
पाकिस्तान बड़े समूहों में तीर्थ यात्रियों को दरबार साहिब गुरुद्वारे के दर्शन करवाकर उन्हें कट्टरवादी सोच और खालिस्तान के समर्थन के लिए माहौल बनाने की कोशिश तो नहीं करना चाहता है?
पाकिस्तान को अगर परिपक्व राष्ट्र के रूप में दिखना है तो उसे भारत के प्रस्तावों पर खुले दिमाग से विचार करना चाहिए। अगर वह चाहता है कि करतारपुर कॉरिडोर के ज़रिये भारत के साथ संबंधों में विश्वास और मधुरता आये तो पाकिस्तान को ये मसले तत्काल सुलझाने होंगे ताकि गुरुनानकदेव की 550वीं जयंती तक भारत की तरफ़ से अच्छी संख्या में तीर्थयात्री दरबार साहिब गुरुद्वारे के दर्शन कर सकें।