जैसा कि कल मैंने अपने लेख में आशंका व्यक्त की थी, सरकार और किसानों के बीच सीधी मुठभेड़ का दौर शुरू हो गया है। आठवें दौर की बातचीत में जो कटुता बढ़ी है, वह दोनों पक्षों के आचरण में भी उतर आई है। करनाल और जालंधर जैसे शहरों से अब किसानों और पुलिस की मुठभेड़ की खबरें आने लगी हैं।
कैमला: पुलिस-किसानों में मुठभेड़, सरकार क्यों अड़ी?
- विचार
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- 11 Jan, 2021

करनाल में किसानों के नाम पर किन्हीं भी तत्वों ने जो कुछ किया, क्या उसे किसानों के हित में माना जाएगा? मुश्किल ही है। क्योंकि अभी तक किसानों का आंदोलन गांधीवादी शैली में अहिंसक और अनुशासित रहा है और उसने नेताओं को भी आदर्श व्यवहार सिखाया है लेकिन अब यदि ऐसी मुठभेड़ें बढ़ती गईं तो किसानों की छवि बिगड़ती चली जाएगी।
कोई आश्चर्य नहीं कि दिल्ली के बॉर्डर्स पर डटे हुए किसान संगठनों का भी धैर्य अब टूट जाए और वे भी तोड़-फोड़ पर उतारु हो जाएं। यह अच्छा ही हुआ कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने करनाल के एक गांव में आयोजित किसानों की महापंचायत के जलसे को स्थगित कर दिया। यदि वे जलसा करने पर अड़े रहते तो निश्चय ही पुलिस को गोलियां चलानी पड़तीं, किसान संगठन भी परस्पर विरोधियों पर हमला करते और भयंकर रक्तपात होता।