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महिला आरक्षण- मुद्दाविहीन बीजेपी की तरकश में एक नया तीर

संसद के विशेष सत्र को लेकर रहस्य और रोमांच अब सामने आने लगा है। नयी संसद में पुराने मुद्दों पर विधेयक लाकर केंद्र सरकार ने पहली बार विवेकपूर्ण कार्य किया है। कांग्रेस द्वारा रोपे गए तुलसी के इस पौधे को भाजपा ने मजबूरी में ही सही लेकिन न सिर्फ अपनाया बल्कि उसमें पानी भी देने का साहस दिखाया है।

देश की आधी आबादी को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल करने की मांग और कोशिश नई नहीं है। देश की जनता को तमाम महत्वपूर्ण अधिकारों से लैस करने वाली कांग्रेस ने लम्बे समय तक देश में सत्ता करते हुए महिलाओं को उनका अधिकार देने की पहल भी की लेकिन देश की राजनीति में उदारता न होने से ये कोशिश नाकाम रही। सरकारें आती-जाती रहीं लेकिन कोई इस अधिकार को क़ानूनी जामा पहनाने में कामयाब नहीं हुआ। अब लगता है कि देश की महिलाओं का सपना पूरा होगा क्योंकि सत्ता पक्ष और विपक्ष इस मुद्दे पर शायद एक राय होकर इस विधेयक को पारित करने में सहयोग कर दें।

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जहाँ तक मुझे याद आता है कि महिला आरक्षण विधेयक तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार के समय पहली बार वजूद में आया था। कांग्रेस ने शिक्षा, सूचना और भोजन के अधिकारों के बाद महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में भी आरक्षण देने के बारे में सोचा। लेकिन कांग्रेस का सपना साकार नहीं हुआ। 1996 में पहली बार महिला आरक्षण विधेयक की विधिवत रचना की। उस समय एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री थे। महिला आरक्षण विधेयक पहली बार 1997 में संसद में पेश किया गया लेकिन पारित नहीं हुआ। उसके बाद 1998 और 1999 में भी इसे पारित करने की कोशिश की गयी लेकिन कामयाबी नहीं मिली। सरकारें आती-जातीं रहीं लेकिन महिलाओं को अधिकार देने का ये विधेयक राजनीतिक कारणों से आधार में लटका रहा। कितने ही प्रधानमंत्री आये और चले गए लेकिन बात नहीं बनी। भाजपा की सरकार भी इस बीच बनी। पहले 13 दिन की फिर पूरे पाँच साल की किन्तु भाजपा सरकार के सबसे ज़्यादा सम्माननीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी इस लंबित विधेयक पर आम सहमति नहीं बना पाए। नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा।

आखिरी बार 2010 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस विधेयक को संसद के सामने फिर पेश किया। यह राज्यसभा से पास हुआ लेकिन लोकसभा में फिर अटक गया। पूरे दस साल चार दिन सत्ता में रहने के बाद डॉ. मनमोहन सिंह भी महिला आरक्षण विधेयक को क़ानून बनाने का सपना लिए देश की सत्ता से बाहर चले गए। मजे की बात ये कि देश में बीते 9 साल 114 दिन से देश की सेवा कर रही भाजपा सरकार को भी जाते-जाते इस महत्वपूर्ण विधेयक की याद आयी है। आप इसे विसंगति कहें या दुर्भाग्य कि भाजपा और कांग्रेस ने लगातार महिला आरक्षण विधेयक का समर्थन किया फिर भी बात बनी नहीं। जातिगत राजनीति करने वाले क्षेत्रीय दलों ने इसका विरोध किया था। महिलाओं के कोटे के भीतर उप-कोटा की मांग इस बिल की बड़ी बाधा बन रही है।

लोकसभा की कुल सदस्य संख्या में महिला सांसदों की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत से कम है, और कई राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत से कम है। इस विधेयक को दोबारा पास करना भाजपा की राजनीतिक विवशता है क्योंकि अब उसके तरकश में कोई ऐसा तीर नहीं बचा है जो निशाने पर लगे। इस विधेयक का विरोध करने वाले दल आज संयोग से कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन आईएनडीआईए के साथ है। ऐसे में भाजपा को सहूलियत है कि वो इस विधेयक के ज़रिये या तो राजनीति करे या फिर एक बार फिर सचमुच महिलाओं के अधिकारों के लिए संकीर्णता से ऊपर उठकर इस विधेयक को पारित कराये। इसके लिए भाजपा को अपने चाल, चरित्र और चेहरे में तब्दीली लाना पड़ेगी। 
इस समय बीजेपी जिस ऐंठ के साथ सत्ता चला रही है और सियासत कर रही है उसे देखकर डर लगता है किन्तु संख्या बल इस समय ऐसा है कि यदि बीजेपी ईमानदारी और सौहार्द से काम ले तो विधेयक पारित हो सकता है।

इस विधेयक को लेकर कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को ख़त लिखा था लेकिन सोनिया कहें और मोदी जी सुनें ये तो मुमकिन नहीं था। कांग्रेस ने पुराने संसद भवन से विदाई के समय भी इस मुद्दे पर अपनी मांग दोहराई। मजे की बात ये कि प्रधानमंत्री ने तब अपने भाषण में इस बारे में कोई संकेत नहीं दिया था। हमेशा चौंकाने की राजनीति करने वाले प्रधानमंत्री ने आनन-फानन में कैबिनेट की बैठक में इस महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराया।

आज लोकसभा में इस विधेयक के सबसे बड़े विरोधी मुलायम सिंह यादव, लालू यादव और शरद यादव सदन में नहीं है। दो तो भगवान को प्यारे हो चुके हैं और तीसरे जमानत की ज़िंदगी जी रहे हैं। मुझे याद है कि इस विधेयक का विरोध करते हुए बड़बोले स्वर्गीय शरद यादव ने तो यहाँ तक कहा था कि “आपको क्या लगता है, छोटे बाल वाली महिलाएँ हमारी महिलाओं के बारे में बोल पाएंगी?’

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हमारे शहर में जन्मे तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी ने भी 1998 और 1999 में भी इस विधेयक को पारित करने की कोशिश की लेकिन विपक्ष, विशेषकर सपा और आरजेडी के विरोध के कारण यह पास नहीं हुआ। कांग्रेस के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 2002 में एक बार और 2003 में दो बार बिल पेश किया लेकिन बहुमत होने के बावजूद बिल पास नहीं करवाया जा सका।

इस समय बीजेपी सरकार मुद्दा विहीन है। सनातन पर हमले के बाद उसकी सुरक्षा और जी -20 की कथित कामयाबी से भी भाजपा की बात बन नहीं रही है। ऐसे में यदि महिला आरक्षण विधेयक पारित हो जाता है तो सचमुच भाजपा के तरकश में एक नया रामबाण आ जायेगा। 

(राकेश अचल के फेसबुक पेज से)

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राकेश अचल
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