क्या मोदी सरकार भारत देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की तैयारी मैं है? इस सवाल से कुछ लोग चौंकेंगे, कुछ ख़ुश होंगे तो कुछ निराश। यह एक सवाल है जिसका इंतज़ार लंबे समय से संघ परिवार कर रहा था। जब से लोकसभा के चुनाव में बीजेपी को तीन सौ से अधिक सीटें मिली हैं तब से मोदी सरकार की सारी कोशिशें उसी दिशा में हैं। इसलिए मई के बाद से सरकार की तरफ़ से हर वह कोशिश हुई है जो संघ के एजेंडे को डंके की चोट पर लागू कर रही है। इस दौरान अर्थव्यवस्था बद से बदतर हुई है पर उस ओर सरकार का ध्यान नहीं है। सारा ध्यान हिंदू मुसलमान पर है। मौजूदा नागरिकता क़ानून पर उठा विवाद इस प्रक्रिया से उठी चिंगारी से लगी आग का एक प्रतिबिंब मात्र है। लोग सड़कों पर उतर रहे हैं क्योंकि वे समझ रहे हैं कि भारत का लंबे समय तक सेक्युलर बने रहना मुश्किल हो जाएगा अगर मोदी सरकार इसी राह पर चलती रही या इसी तरह से उसको जनादेश मिलता रहा।

उन मुसलमानों का क्या होगा जो अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाएँगे? उनके बारे में सरकार ऐसा भरोसा नहीं देती। क्यों? इस ‘क्यों’ में ही छिपा है ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने का राज। गोलवलकर ने यूँ ही नहीं कहा था कि मुसलमानों के भारत में कोई नागरिक अधिकार नहीं होने चाहिए। दीन दयाल उपाध्याय भी इसी संदर्भ में कहते हैं कि मुसलमानों को देश से बाहर तो नहीं भेज सकते। पर वह संविधान को बदलने की बात करते हैं।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।